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अंतिम विदाई किसी का इंतजार नहीं करती है

जब कोई किरदार निभाता हूं तो उसकी पूरी खोज करता हूं कि कौनसा धर्म है, कौन से गाँव का है, कब की कहानी है, क्या संस्कार हैं आदि.शायद इसीलिए मेरी अदाकारी में दिखावटीपना नहीं होता है


एके हंगल – जमीन से जुड़े अभिनेता


ak hangal2‘एके हंगल’ उन अभिनेताओं में से एक थे जो अपने अभिनय के कारण मशहूर हुए. एक फरवरी, 1917 को कश्मीरी परिवार में जन्म लेने वाले एके हंगल ने 26 अगस्त, 2012 की सुबह दुनिया को अलविदा कह दिया. पेशावर से करांची तक एके हंगल ने अपना बचपन बिताया और फिर हिन्दुस्तान के बंटवारे के समय 1949 में मुम्बई आ गए थे. एके हंगल ने बचपन से ही अपनी जिन्दगी में तमाम संघर्ष किए थे.


एके हंगल ने अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद अपने बेटे विजय की परवरिश अकेले ही की थी. एके हंगल के बेटे विजय की भी पत्नी की मृत्यु 1994 में हो गई थी. फिल्मों के साथ-साथ एके हंगल को नाटक में भी अभिनय करने में सफलता प्राप्त हुई. एके हंगल 18 वर्ष के थे जब उन्होंने नाटकों में अभिनय करने की शुरुआत की थी.नमक हराम’, ‘शोले’ और ‘शौकीन’ जैसी फिल्मों में किए गए एके हंगल के अभिनय को हमेशा याद किया जाएगा. 1966 में आई फिल्म ‘तेरी कसम’ से एके हंगल ने फिल्मों में अभिनय की शुरुआत की थी और उस समय एके हंगल की उम्र 50 वर्ष थी. 1977 में शोले और आइना जैसी फिल्मों ने एके हंगल को पहचान दिलाई. एके हंगल ने अवतार, कोरा कागज, शौकीन, बावर्ची जैसी मशहूर फिल्में की. 2006 में एके हंगल को फिल्मों में अभिनय के लिए पद्म भूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था.

ए. के. हंगल – आखिरी वक्त भी उपेक्षा के शिकार


एके हंगल अपने आप को कुछ बातों में बहुत खुशनसीब मानते थे जैसे कि उन्हें आजादी की लड़ाई में भाग लेने का अवसर मिला था और जिस कारण एके हंगल करांची की जेल में भी बंद रहे थे. हाल ही में एके. हंगल हाई ब्लड प्रेशर और किडनी सहित कई बीमारियों से परेशान थे पर पैसे की कमी के कारण वो अपना इलाज समय पर नहीं करा पा रहे थे जिसके चलते कुछ अभिनेताओं ने एके हंगल की मदद भी की थी.


ak hangal3संगीत से प्यार का नाता

एके हंगल को संगीत से बहुत गहरा प्यार था जिस कारण सन् 1993 में मुंबई में होने वाले पाकिस्तानी डिप्लोमैटिक फंक्शन में एके हंगल के हिस्सा लेने की वजह से शिव सेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे ने एके हंगल के वर्तमान और भविष्य दोनों ही फिल्मों पर रोक लगा दी थी. इसका असर उनकी फिल्मों पर भी पड़ा और करीब दो साल तक एके हंगल बेरोज़गार रहे थे. निर्माता-निर्देशक एके हंगल को अपनी फिल्मों मे रोल देने से कतराने लगे जिस कारण ‘रूप की रानी चोरों का राजा’, ‘अपराधी’ जैसी कई फिल्मों से उनके किरदार निकाल दिए गए थे.


एके हंगल ऐसे अभिनेता थे जिनके अभिनय को सराहने के लिए कुछ फिल्में ही काफी थीं पर एक बात का दुख शायद हमेशा रहेगा कि फिल्मों में दादा, पिता, चाचा जैसे अनेक चरित्र किरदार अदा करने वाले एके हंगल को अंतिम विदाई देने बस कुछ ही कलाकार पहुंचे लेकिन इंडस्ट्री का कोई भी बड़ा कलाकार उन्हें अंतिम विदाई देने नहीं पहुंचा. किसी ने सच ही कहा है कि गर्व से मरने वाले और अपनी तमाम जिन्दगी संघर्ष करने वाले लोगों की अंतिम विदाई किसी का इंतजार नहीं किया करती है.


इन फिल्मों ने जंग-ए-आजादी की याद दिलाई

तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं

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