‘बेगम जान दिखने में बहुत सुंदर थीं. नाजुक-सा शरीर. सफेद चमकती हुई गोरी चमड़ी लेकिन दिन भर बंद कमरे में अकेले घुटती रहती. नवाब साहब को मुर्गा लड़ाई, शिकार, नाच-गान किसी का शौक नहीं था. वो तो बस नौजवान, गोरे-गोरे, पतली कमरों के लड़के, जिनका खर्च वे खुद बर्दाश्त करते थे. बेगम जान से शादी करके तो वे उन्हें कुल साजो-सामान के साथ ही घर में रखकर भूल गए और वह बेचारी दुबली-पतली नाजुक-सी बेगम तन्हाई के गम में घुलने लगी थीं.’
‘लिहाफ’ कहानी का छोटा-सा हिस्सा, जिसपर अश्लीलता का मुकदमा चल गया था. इस्मत चुगतई ने ऐसी कहानी लिखी, जिसमें नवाब को अपनी बेगम में कोई दिलचस्पी नहीं थी. उन्हें कम उम्र लड़के भाते थे. वहीं अकेलेपन की मारी और उपेक्षा की शिकार हुई बेगम जान अपनी नौकरानी में दैहिक सुख ढूंढ़ने लगती है. इस्मत ने अपने बचपन के दिनों की एक घटना को कहानी में पिरोया है, लेकिन इस कहानी में मनोस्थिति, समाज आदि भावों को समझने की जगह, कई लोगों को ‘लेस्बियन’ और ‘गे’ पर घूमती कहानी काफी अश्लील लगी और लेखिका इस्मत पर अश्लीलता का मुकदमा हो गया. जरा सोचिए, जिन मुद्दों को आज भी तिरछी निगाहों से देखा जाता है, उन्हें उस दौर में कितना अश्लील समझा जाता होगा?
इस्मत जिन्हें यौन कहानियों की लेखिका कहा जाने लगा
इस्मत की ज्यादातर कहानियों में औरतों की यौन व्यथा, यौन कुंठा आदि विषय देखने को मिलते हैं. उनकी कहानियां विवादों से भरी रही, लेकिन उनका कहना था ‘मुझे नहीं लगता कि कहानियां अश्लील है. मुझे दिक्कत है कि औरतों को भोगने की वस्तु से ज्यादा और कुछ नहीं समझा गया. मैं बस उस समाज को लिखती हूं, जो खुद पर्दे में छुपा हुआ है. आपको अगर इन कहानियों से कामवासना की बू आती है, तो आपके पास पढ़ने को बहुत कुछ है.’
जब इस्मत चुगतई और मंटो पर चला मुकदमा
मंटो और इस्मत चुगतई बेहद अच्छे दोस्त थे. इस्मत की लिखी ‘लिहाफ’ को अश्लील मुद्दा मानते हुए उन्हें अदालत में तलब किया गया था. अदालत के मुताबिक उन्होंने ऐसे मुद्दे पर लिखा था, जिसे अश्लील और असमाजिक माना जाता था. लिहाफ में ‘लेस्बियन’ और ‘गे’ मुद्दे और हालातों पर आधारित एक सच्ची घटना को कहानी का रूप दिया गया था. वहीं मंटो की कहानी ‘बू’ को अश्लील माना गया था. इसमें ‘छाती’ शब्द को अश्लील माना गया. अदालत में उपस्थित गवाह के मुताबिक औरतों के सीने को छाती कहना अश्लीलता है यानि उनके वक्षों का उल्लेख किया जाना अश्लील से भी अश्लील बात है. इस्मत चुगताई के लिखे इस संस्मरण में अदालत में जो कुछ भी हुआ, उसे विस्तार से बताया गया है.
“यह कहानी अश्लील है?” मंटो के वकील ने पूछा.
“जी हाँ.” गवाह बोला.
“किस शब्द में आपको मालूम हुआ कि अश्लील है?”
गवाह : शब्द “छाती!”
वकील : माई लार्ड, शब्द “छाती” अश्लील नहीं है.
जज : दुरुस्त!
वकील: शब्द “छाती” अश्लील नहीं.
गवाह: “नहीं, मगर यहाँ लेखक ने औरत के सीने को छाती कहा है.” मंटो एकदम से खड़ा हो गया, और बोला “औरत के सीने को छाती न कहूं तो मूंगफली कहूं.” कोर्ट में ठहाका लगा और मंटो हंसने लगे. “अगर अभियुक्त ने फिर इस तरह का छिछोरा मजाक किया तो अदालत की अवेहलना (कंटेम्पट ऑफ कोर्ट) के जुर्म में बाहर निकाल दिया जायेगा या फिर सजा दी जायेगी.” मंटो को उसके वकील ने चुपके-चुपके समझाया और वो समझ गए. बहस चलती रही और घूम-फिरकर गवाहों को बस एक ‘छाती’ मिलता था जो अश्लील साबित हो पाता था.
खैर, मामला जैसे-तैसे निपटाया गया. बड़ी दिलचस्प बात थी कि किसी भी धमकी, आरोप आदि का इस्मत पर कोई फर्क नहीं पड़ता था और उनकी अगली कहानी छपकर आ जाती थी.
24 अक्टूबर 1991 को इस्मत अपनी ढेरों अफसानों को हम सब के बीच छोड़कर दुनिया को अलविदा कह गईं…Next
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