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फिल्मों में कहानी कहां गुम हो गई ?

Bollywoodबीते काफी समय से बॉलिवुड में ऐसी-ऐसी फिल्में बन रही हैं जिन्हें देखकर लगता है कि क्या वाकई अब कुछ नया और अलग करने के लिए नहीं रह गया है? क्या जिस चीज के लिए बॉलिवुड को जाना जाता था वह आउट ऑफ फैशन हो गया है मतलब ड्रामा, एक्शन और सदाबहार गाने. आजकल की फिल्मों में ड्रामा तो देखने को मिलता ही नहीं है, कहानी या तो सिक्वल होती है या फिर रियल लाइफ स्टोरी पर आधारित कोई फिल्म.


पहले की फिल्मों में बेशक अधिक ड्रामा होता था पर उन फिल्मों में विषय बहुत ही बेहतरीन होता था. फिल्म की कहानी में हीरो, हिरोइन, विलेन, हीरो की मां-बहन और अन्य सभी किरदार मौजूद होते थे जो फिल्म को एक आदर्श कहानी बना देते थे. फिल्मों में गाने कुछ इस तरह से फिट किए जाते थे कि वह फिल्म में रम जाते थे. गानों के बोल भी संगीतकारों की कुशलता का प्रमाण होते थे. गानों के बोल लोगों की जुबां पर लंबे समय तक रहते थे. सदाबहार गीत और संगीत से भरी इन फिल्मों को देखने वाले दर्शकों की संख्या भी अधिक होती थी.


लेकिन जब से फिल्मों में बाजारीकरण हावी हुआ है और कम लागत में ज्यादा मुनाफा बनाने की आदत फिल्मकारों पर हावी हुई है तब से फिल्मों में कहानी का अभाव सा हो गया. फिल्मों में अब कहानी में मसाला, हॉट सीन और फूहड़ संवाद देखने को मिलते हैं और जब फिल्मकारों को यह भी सही नहीं लगता तो वह पुरानी फिल्मों का सिक्वल बनाने पर लग जाते हैं. सिक्वल में भी वह ना पुराना रंग रख पाते हैं ना ही वह पुरानी बात. सिक्वल फिल्मों में भी बिना मसाले के कहानी पूरी नहीं की जाती. अब फिल्मकारों ने एक नया फंडा अपनाया है और वह है रियल लाइफस्टोरी पर फिल्में बनाने का. रियल लाइफ पर आधारित फिल्मों को बनाना फिल्मकार साहस का कार्य मानते हैं पर इसके पीछे का सच तो यही है कि विषय की कमी की वजह से ऐसे विषय चुने जाते हैं.


आज हिन्दी फिल्मों का स्तर गिर रहा है और ऐसे में दिग्गज फिल्मकार मैदान छोड़कर ना जानें कहां गुम हो गए हैं. सुभाष घई जैसे निर्देशकों ने तो जैसे रिटायरमेंट ही ले ली है और महेश भट्ट और यशराज जैसे फिल्मकार मार्केट की पसंद की फिल्में बनाने में व्यस्त है.


आज सिनेमा को अपना वही पुराना अस्तित्व वापस चाहिए. आखिर कितना झेलेगा दर्शक सिक्वल फिल्मों को. डॉन 2, धूम 3, अग्निपथ, वांटेड 2, दबंग 2, हाउसफुल 2 जैसी तमाम सिक्वल फिल्में बॉक्स ऑफिस पर आने को हैं ऐसे में कुछ नया देख पाना बहुत मुश्किल है. आखिर क्यूं फिल्मकार कुछ नया सोच नहीं पा रहे हैं !


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