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कभी गैराज में काम करते थे गुलजार, पाकिस्तान में हुआ था जन्म

अपनी कलम से सारी कायनात को गुलजार कर दिया, दशकों से भारतीय फिल्म उद्द्योग को पटकथा, कविता, संवाद और गीत देने वाले सम्पूर्ण सिंह कालरा उर्फ गुलजार ने जिंदगी में कई उतरा चढ़ाव देखे लेकिन उनकी कलम से उनका साथ कभी नहीं छोड़ा। आज गुलजार साहब अपना 84वां जन्मदिन मना रहे हैं, ऐसे में चलिए एक नजर उनके जिवन के सफर पर।

Shilpi Singh
Shilpi Singh18 Aug, 2018

 

 

 

पाकिस्‍तान के दीना में जन्में थे गुलजार

 

 

गुलज़ार का जन्म पाकिस्‍तान के दीना में 8 अगस्त 1936 को हुआ था। बता दें दीना शहर से तीन किलोमीटर दूर कुर्ला नामी गांव में हुआ था। गुलजार का पूरा नाम है सम्पूर्ण सिंह कालरा है। गुलज़ार ने बचपन का ज़्यादा समय दीना में ही बिताया, लेकिन बंटवारे के बाद गुलजार हिंदुस्‍तान आ गए और अब यही के हो गए हैं।

 

गुजलाज शुरूआती दिनों में गैरेज में काम करते थे

 

 

मुंबई में रोजी रोटी कमाने आए गुजलाज शुरूआती दिनों में एक गैरेज में बतौर मैकेनिक का करना शुरू कर दिया। वह खाली समय में शौकिया तौर पर कवितायें लिखने लगे। गैरेज के पास ही एक बुकस्टोर वाला था जो आठ आने के किराए पर दो किताबें पढ़ने को देता था। गुलज़ार अक्सर उससे लेकर किताबे पढ़ा करते और किवातएं लिखते थे।

 

विमल रॉय से मुलाक़ात, बदली ज़िंदगी

 

 

हर दिन की तरह गुलाजर अपने काम में मशगूल थे उसी दौरान मशहूर डायरेक्टर विमल रॉय की कार ख़राब हो गयी। विमल संयोग से उसी गैरेज पर पहुंचे जहां गुलज़ार काम किया करते थे। विमल रॉय ने गैरेज पर गुलज़ार को देखा, उनकी किताबें देखी। पूछा कौन पढता है ये सब? गुलज़ार ने कहा- मैं! विमल रॉय ने गुलज़ार को अपना पता देते हुए अगले दिन मिलने को बुलाया। गुलज़ार साहब विमल रॉय के बारे में बाद करते हुए आज भी भावुक हो जाते हैं और कहते हैं कि ‘जब मैं पहली बार विमल रॉय के दफ़्तर गया तो उन्होंने कहा कि अब कभी गैरेज में मत जाना’।

 

पहले गाने ने मचाई  धूम

 

 

विमल रॉय जिन्हें गुलज़ार विमल दा कहते थे उनके साथ रहते हुए गुलज़ार की प्रतिभा निखरकर सामने आने लगी और साल 1963 में आई फ़िल्म ‘बंदिनी’। बिमल रॉय की इस फ़िल्म में धर्मेंद्र, अशोक कुमार और नूतन जैसे बड़े स्टार थे। इस फ़िल्म के सभी गाने शैलेंद्र ने लिखे थे लेकिन एक गाना संपूर्ण सिंह कालरा यानी गुलज़ार ने लिखा था। फ़िल्म का वो गाना ‘मोरा गोरा अंग लेइ ले, मोहे श्याम रंग देइ दे’ ख़ूब पसंद किया गया और वहां से शुरू हो गयी गुलज़ार की यात्रा।

 

राखी से हुए अलग लेकिन नहीं लिया तलाक

 

 

1973 में गुलजार ने अभिनेत्री राखी से शादी कर ली, हालांकि शादी के बाद राखी और उनके बीच काम को लेकर अनबन शुरू हो गई। राखी और गुलजार ने आखिरकार खुद को एक दूसरे से अलग कर लिया, लेकिन दोनो ने कभी तलाक नहीं लिया। राखी औऱ गुलजार की एख बेटी भी है मेघना जो बॉलीवुड में अपने निर्देशन को लेकर चर्चा का विषय बन हुई हैं।

 

ग्रैमी अवार्ड से सम्‍मानित हैं गुलजार साहब

 

 

गुलजार साहब 20 बार फिल्मफेयर तो 5 बार राष्ट्रीय पुरस्कार अपने नाम कर चुके हैं। 2010 में उन्हें फिल्‍म ‘स्लमडॉग मिलेनेयर’ के गाने ‘जय हो’ के लिए ग्रैमी अवार्ड से सम्‍मानित किया गया था। उन्हें 2013 में ‘दादा साहेब फालके’ अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है।…Next

 

 

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