आजकल बॉलिवुड में एक ट्रेंड चल पड़ा है कि अगर फिल्म में कोई दृश्य या गाना जो जरूरी तो है पर सेंसर बोर्ड की नजर में अश्लील है तो उसे “ए” सार्टिफिकेट के साथ पास करा लो. आजकल अपनी फिल्मों को एडल्ट फिल्म की श्रेणी में रखे जाने पर भी फिल्मकारों को कोई आपत्ति नहीं. उनका तो साफ कहना है पैसा यहां से भी मिलेगा और वहां से भी. हाल के दिनों में मर्डर 2, देल्ही बेली, नो वन किल्ड जेसिका, रागिनी एमएमएस जैसी कई फिल्में हैं जिन पर सेंसर बोर्ड ने कैंची चलाने की बजाय सिर्फ “ए” सार्टिफिकेट देकर अपना पल्ला झाड़ लिया.
और यह इसी “ए” ग्रेड के मेहरबानी है कि बॉलिवुड को अब “द डर्टी पिक्चर” जैसी मसाला फिल्म देखने को मिल रही हैं साथ ही कुछ दिनों में “ब्लू फिल्म” नाम की हॉट एंड बोल्ड फिल्म भी देखने को मिलेगी.
वैसे सेंसर बोर्ड हमेशा कुछेक फिल्मों पर अपनी मेहरबानी दिखा ही देता है. तो चलिए नजर डालते हैं बीते हुए सालों और हाल के दिनों की कुछ ऐसी फिल्मों पर जिस पर सेंसर बोर्ड मेहरबान दिखा.
फायर: साल 1996 में दीपा मेहता की यह बहुचर्चित फिल्म भारत में पहली ऐसी फिल्म थी जिसमें महिलाओं के लेस्बियन रूप को दिखाया गया था. फिल्म को सेंसर बोर्ड ने क्यूं और किस तर्ज पर पास किया पता नहीं. पर फिल्म में ऐसे कई दृश्य थे जिन्हें देख लोग शर्म के मारे पानी-पानी हो गए. उस समय के हिसाब से यह एक बेहद बोल्ड फिल्म थी.
एक छोटी सी लव स्टोरी: साल 2002 में आई इस फिल्म को लेकर भी कम बवाल नहीं हुआ था पर फिल्म के निर्माता ने सेंसर बोर्ड से “ए” ग्रेड लेकर इस फिल्म को पर्दे पर उतार ही डाला. इस फिल्म में कई ऐसे दृश्य थे जो पहले सिर्फ ब्लू फिल्म या सी ग्रेड फिल्म में ही देखने को मिलते थे. अगर यह कहा जाए कि इस फिल्म के बाद ही हिन्दी सिनेमा में “मर्डर” और “जिस्म” जैसी अर्द्धनग्न फिल्में करने की हिम्मत आई तो गलत नहीं होगा. इस फिल्म के बाद तो जैसे हर दूसरा और तीसरा फिल्मकार मसाला फिल्में बनाने के बाजार में उतर गया.
देल्ही बेली: इस फिल्म को देखने के बाद कई लोगों का कहना है कि“अगर आपने देल्ही बेली अपने परिवार के साथ देख ली तो आप वीरता पुरस्कार पाने के हकदार बन जाएंगे.” इस फिल्म में शायद ही कोई ऐसी गाली हो जिसे इस्तेमाल में ना लिया गया हो. बहन मां की गालियों के बिना तो इस फिल्म में कोई संवाद है ही नहीं. अगर गलती से इस फिल्म का टीवी वर्जन नहीं बनाया गया होता और टीवी पर इसका सैटेलाइट वर्जन यानि जैसी फिल्म सिनेमाघरों में दिखाई गई थी वैसे ही टीवी पर भी दिखाई जाती तो फिल्म में डायलॉग कम बीप की आवाज ज्यादा होती. फिल्म के निर्माताओं ने फिल्म को “ए” ग्रेड से पास करवा भारतीय दर्शकों के लिए ऐसी फिल्म परोस दी जो गालियों से भरपूर थी.
ना मुन्नी आती ना शीला: अगरसेंसर बोर्ड की कैंची में तेजधार होती तो ना ही हमें फिल्मों में “शीला” देखने को मिलती और ना ही “मुन्नी”. इन दोनों गानों ने भारत में रहने वाली ना जाने कितनी मुन्नियों और शीलाओं को परेशान किया. पर सेंसर बोर्ड ने अपने नरम रवैये से फिल्मों में इन गानों को आने दिया.
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