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इत्तेफ़ाकन अशोक की जन्म तिथि बन गई किशोर के मौत की तारीख

अशोक कुमार, किशोर कुमार के बड़े भाई थे जो उन्हें हिन्दी सिनेमा में लेकर आए और मौका दिया गायिकी की दुनिया में अपना मुकाम बनाने का. ‘किशोर कुमार: मेरा जीवन कोरा कागज, कोरा ही रह गया’ इस लेख में हमने आपको किशोर कुमार के जीवन से जुड़ी दिलचस्प बातें बताईं और इन्हीं बातों का सिलसिला इस लेख में भी जारी रहेगा.


kishore kumarयह वास्तविक सच है कि अशोक कुमार हिन्दी सिनेमा में किशोर कुमार से पहले स्थापित थे लेकिन फिल्मों में काम के लिए किशोर कुमार ने खुद मेहनत की. अशोक कुमार का जन्म 13 अक्टूबर, 1911 को हुआ था और किशोर कुमार की मृत्यु 13 अक्टूबर 1987 को हुई थी. दोनों भाइयों के बीच 13 अक्टूबर की तारीख समान है. एक ने 13 अक्टूबर को जन्म लिया और दूसरे ने इसी तारीख पर दुनिया को अलविदा कह दिया. अशोक और किशोर कुमार दोनों भाइयों को ही दुनिया एक ही तारीख पर याद करती है पर सिर्फ अंतर यह है कि अशोक जैसे कलाकार को 13 अक्टूबर की तारीख के दिन जन्म लेने के लिए याद करती है और किशोर कुमार को इसी तारीख पर दुनिया से अलविदा कहने के लिए याद करती है.

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  • किशोर कुमार ने एस.डी. बर्मन के लिए 112 गाने गाए और उनका यह सफर उनके आखिरी दिनों तक जारी रहा.
  • किशोर कुमार को बतौर गायक सबसे पहले उन्हें वर्ष 1948 में ‘बाम्बे टाकीज’ की फिल्म ‘जिद्दी’ में सहगल के अंदाज में ही अभिनेता देवानंद के लिए ‘मरने की दुआएं क्यों मांगू’ गाने का मौका मिला.

  • ‘रूप तेरा मस्ताना’ गाने के लिए किशोर कुमार को बतौर गायक पहला फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला.
  • 1964 में ‘दूर गगन की छांव’ और 1971 में ‘दूर का राही’ फिल्म के बाद किशोर दा के अभिनय की मिसाल भी दी जाने लगी.
  • किशोर कुमार के कुछ प्रसिद्ध गीत हैं जिन्हें आज भी याद किया जाता है. सागर जैसी आंखों वाली, रात कली एक ख्वाब में आई…, तेरे चेहरे में…, सिमटी सी शरमाई सी, ये नैना ये काजल, पल भर के लिए, प्यार दीवाना होता है,  छूकर मेरे मन को.
  • किशोर कुमार ने अपने सम्पूर्ण फिल्मी कॅरियर में 600 से भी अधिक फिल्मों के लिए अपना स्वर दिया.साल 1987 में किशोर कुमार ने यह निर्णय लिया कि वह फिल्मों से संन्यास लेने के बाद वापस अपने गांव खंडवा लौट जाएंगे. वह अकसर कहा करते थे कि “दूध जलेबी खायेंगे खंडवा में बस जाएंगे लेकिन उनका यह सपना अधूरा ही रह गया. 13 अक्टूबर, 1987 को दिल का दौरा पड़ने की वजह से उनकी मौत हो गई. उनकी आखिरी इच्छा के अनुसार उनको खंडवा में ही दफनाया गया.

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