सिनेमा में एक वह भी दौर था जब अभिनेत्रियों की सादगी और नजाकत देख कर दर्शक दीवाने हो जाया करते थे. उनकी छवि इतनी कोमल बन चुकी थी कि उन्हें संवाद भी सरल और सहज दिए जाते थे. उनके कपड़े और बात करने के तरीके में शालीनता साफ-साफ दिखाई देती थी. लेकिन वह दौर अब गुजरा जमाना बन गया है. नए जमाने के साथ कदम बढ़ाने के लिए नए-नए पैंतरों और रिवाजों को सीखते हुए अब बॉलिवुड और उसकी अभिनेत्रियों में जो परिवर्तन आया है उसकी कल्पना शायद उस काल में किसी ने नहीं की होगी.
भारतीय महिलाओं से हमेशा शालीनता की अपेक्षा की जाती है लेकिन अब जिन महिलाओं को हम पर्दे पर देख रहे हैं उनका और शालीनता का आपस में कोई संबंध नहीं है. पहले फिल्म के हीरो विलेन को गालियां देते थे, शोले में वीरू द्वारा गब्बर से बोला गया संवाद, कुत्ते मैं तेरा खून पी जाउंगा, तो कोई कभी भूल नहीं सकता. लेकिन अब गालियों का डिपार्टमेंट महिलाओं ने अपने हाथ में ले लिया है. अक्खड़ और जिद्दी किरदारों को निभाते हुए अभिनेत्रियों ने अपनी संवाद आदायगी को भी पूरी तरह परिवर्तित कर लिया है. आज वह विलेन से लड़ाई भी करती हैं और उसे जी भर के गालियां भी सुनाती हैं.
बात केवल महिलाओं के नए अवतार पर ही समाप्त नहीं होती. प्राय: फिल्म के अभिनेताओं की भाषा शैली भी नए रंगों से बच नहीं पाई है. गालियां और अक्खड़ भाषा का प्रयोग करना तो भारतीय अभिनेताओं को शुरू से ही सुहाता रहा है. लेकिन अब तो रुक्ष भाषा का खुलकर प्रयोग करना और बेमतल किसी को गाली देना, कोई ना मिले तो खुद को ही दे देने वाला स्वभाव हमारे फिल्मी हीरो की पहचान बन गया है. पिछले कुछ दिनों में आई फिल्में जैसे गोलमाल थ्री, बैंड-बाजा-बारात, इश्कजादे, इश्कियां आदि फिल्मों का उदाहरण लिया जाए तो आज फिल्मी दुनियां में गालियों और उत्तरी भारत के कस्बाई इलाकों की भाषा बड़े ही सहज ढंग से बोली जाती है.
बैंड-बाजा-बारात की हीरोइन अनुष्का शर्मा का जब फिल्म के नायक रणवीर कपूर से झगड़ा होता है तो वह बड़े ही बोल्ड अंदाज में उसे कहती है – शादी मुबारक, तेरे बाप का न है, तू गांव जा और गन्ने उगा. फिल्म तो सुपरहिट रही ही साथ ही फिल्म के संवाद तो दर्शकों की जुबान पर ही चढ़ गए. वैसे जाट लैंड में प्रचलित बोली को लेकर पहली बार बड़ा प्रयोग वर्ष 2006 में विशाल भारद्वाज ने फिल्म ओमकारा में किया था. इस फिल्म की पृष्ठभूमि पूरी तरह उत्तर-प्रदेश पर केन्द्रित थी. इस फिल्म में अजय देवगन और सैफ अली खान दोनों ने ही जाटों के अंदाज में डायलॉग बोले थे. लेकिन इससे कहीं ज्यादा गौर करने वाली बात यह है कि यह कोई पहला मौका नहीं था जब उत्तर भारतीय परिवेश पर फिल्मों का निर्माण हो रहा है. मदर इंडिया, नया दौर, शोले, लगान और न जाने कितनी ही फिल्में पश्चिमी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखण्ड के परिवेश पर आधारित थीं, लेकिन इन फिल्मों में कभी भी यहां की भाषा नहीं बोली गई. इसका आशय स्पष्ट है कि अब निर्माता-निर्देशक युवाओं को जोड़ने के लिए खुद को कूल दिखाने की कोशिश में लगे हैं. इसके लिए गालियां क्या फिल्मों में अभद्र भाषा का भी प्रयोग किया जाए तो भी उन्हें इससे कोई हर्ज नहीं है.
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