हिंदू धर्म में स्कंदमाता की उपासना का बड़ा महत्व माना जाता है। खासकर नवरात्र में तो स्कंद माता की आराधना से जीवन के सभी रुके काम पूरे हो जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक माता को गुड़हल या फिर लाल गुलाब का पुष्प अर्पित करना महत्वपूर्ण माना गया है। पूजा के दौरान इन दोनों पुष्प को अर्पित करने से माता प्रसन्न होती हैं और याचक की सभी याचनाओं को पूरा करने का वरदान दे देती हैं।
शारदीय नवरात्र के पांचवें दिन स्कंद माता की पूजा करने का विधान है। इस दौरान याचक व्रत रखने के साथ ही विशेष विधियों के तहत पूजा कर माता को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। मान्यता है कि हिमालय की पुत्री ही स्कंद माता हैं और वह स्कंद पुत्र कार्तिकेय की मां भी है। स्कंदमाता मां दुर्गा का पांचवां स्वरूप भी हैं। इसीलिए उन्हें स्कंतमाता के नाम से भी जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार जब धरती पर बाणासुर का अत्याचार बढ़ गया तो रिषि मुनियों ने तपस्या शुरू कर दी और बाणासुर के अत्याचार से मुक्त करने के लिए प्रार्थना करने लगे। जब यह बात स्कंदमाता तक पहुंची तो उन्होंने मुनियों को शांत रहने और उनके कष्टों को हरने का वरदान दिया। उनके पुत्र कार्तिकेय ने बाणासुर के अत्याचारों से लोगों को मुक्त कर दिया।
स्कंद माता ने धरती पर होने वाले अत्याचारों को खत्म करने के लिए 6 मुख वाले पुत्र को जन्म दिया, जिसे सनतकुमार और स्कंद के नाम से जाना गया। बाद में उन्हें कार्तिकेय भी कहा गया। स्कंद माता कार्तिकेय को अपनी गोद में रखती हैं और उन्हें दुनियभर के बालकों से बड़ा स्नेह है। मान्यता है कि स्कंदमाता को प्रसन्न करने के लिए छोटे बच्चों को नवरात्र के पांचवें दिन माता की पूजा करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। कहा जाता है कि इस दिन जिस घर के बच्चे स्कंदमाता की पूजा में लीन रहते हैं वहां के कष्ट हमेशा के लिए दूर हो जाते हैं।
मान्यता है कि माता को प्रसन्न करने के लिए पूजा विधि में गुड़हल और लाल गुलाब के पुष्प को शामिल करना अनिवार्य है। याचक को सुख समृद्धि हासिल करने के लिए माता को इन दोनों पुष्पों को अर्पित करना अनिवार्य है। पूजा विधि के तहत नवरात्र के पांचवें दिन स्नान करने के बाद लाल रंग का गुलाब और गुड़हल का पुष्प अर्पित करें। मां दुर्गा का यह रूप करुणा से भरा हुआ है। मान्यता है कि स्कंद माता की पूजा करने के से उनके पुत्र कार्तिकेय भी प्रसन्न होते हैं और वह याचक के दुखों का नाश कर देते हैं।
शेर की सवारी करने वाली स्कंदमाता की गोद में हमेशा सनतकुमार यानी कार्तिकेय विराजमान रहते हैं। माता की चार भुजाओं में दो में कमल पुष्प और एक हाथ को अभय मुद्रा में रखती हैं। इसके अलावा एक हाथ से वह पुत्र कार्तिकेय को संयमित करती हैं। माता का आसन कमल होने के चलते उन्हें पद्मासन देवी के नाम से भी जाता है। माता की पूजा के दौरान उनका पसंदीदा श्लोक या देवी सर्वभूतेषु मां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ का अवश्य उच्चारण करना चाहिए।
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