आपने कभी ‘विद्रोही’ कहे जाने वाले लोगों के बारे में पढ़ा है? या अगर आपके आसपास ऐसे लोग हैं, जिन्हें विद्रोही स्वभाव का कहा जाता है, तो जरा गौर कीजिएगा ऐसे लोग आत्मविश्वास से भरपूर होते हैं। ये कभी अपनी बात कहने से पीछे नहीं हटते, साथ ही काफी भावुक होते हैं तभी तो किसी भी बात पर इनकी प्रतिक्रिया आसानी से बाहर आ जाती है।
ऐसे ही विद्रोही संगीतकार कहे जाते थे ओपी नैय्यर। आज उनका जन्मदिन है। पराग डिमरी की लिखी हुई किताब ‘दुनिया से निराला हूं, जादूगर मतवाला हूं! : ओपी नैय्यर’ में ओंकार प्रसाद नैय्यर की जिंदगी के कई दिलचस्प पहलुओं को बताया गया है। आइए, जानते हैं संगीत की दुनिया के जादूगर ओपी नैय्यर से जुड़ी दिलचस्प बातें।
जिद्दी, विद्रोही और नर्म दिल भी ओपी
16 जनवरी 1926 को लाहौर में जन्मे ओ पी नैय्यर ने साल 1952 में फिल्म ‘आसमान’ से अपने फिल्मी सफर की शुरुआत की थी। लेकिन उनको अपने हुनर की असली पहचान मिली गुरुदत्त की फिल्मों से। इनमें ‘आरपार’, ‘मिस्टर एंड मिसेज 55’, ‘सीआईडी’ और ‘तुम सा नहीं देखा’ जैसी फिल्में शामिल है। ओपी नैय्यर के बारे में कहा जाता है कि बड़े जिद्दी और विद्रोही स्वभाव के आदमी थे। अपनी शर्तों पर काम करने वाले ओपी काफी इमोशनल और नर्मदिल भी थे। अभिनेता शम्मी कपूर से ऐसा ही एक दिलचस्प किस्सा जुड़ा हुआ है।
शम्मी कपूर के कॅरियर में एक दौर ऐसा आया था, जिसमें उनकी फिल्में लगातार फ्लॉप हो रही थीं। पराग डिमरी लिखते हैं, 18 फ्लॉप फिल्में देने के बाद शम्मी कपूर फिल्म इंडस्ट्री छोड़कर रोजी-रोटी कमाने के लिए किसी और काम को करने तक के बारे में सोचने लगे थे। ऐसे में उन्हें देव आनंद की रिजेक्ट की हुई फिल्म ‘तुमसा नहीं देखा’ ऑफर हुई। इस फिल्म में ‘सिर पर टोपी लाल, हाथ में रेशम का रूमाल’ गाने से फिल्म मेकर्स को बहुत उम्मीदें थीं। शुरुआत में गाना सिर्फ फिल्म की नायिका अमिता पर फिल्माया गया था।
शम्मी के शुभचिंतकों ने उन्हें समझाया कि अगर किसी तरह से इस गाने को नायक-नायिका पर फिल्माया जाए, तो दर्शक नायिका के साथ नायक को भी लम्बे समय याद रखते हुए थियेटर से निकलेंगे। लेकिन इसके लिए ओपी नैय्यर से दुबारा रिकोर्डिंग की बात करनी पड़ेगी। जोकि बेहद मुश्किल दिख रहा था। शम्मी ने अपने कॅरियर को पटरी पर लाने के लिए हार नहीं मानी और ओपी को मनाने उनके घर चल दिए। शाम को खूबसूरत बनाने के लिए शम्मी ने ओपी के साथ जाम टकराते हुए और उनके बेटे को उपहार और शगुन में 100 रुपए थमाते हुए आखिरकार ओपी का दिल जीत ही लिया। इसके बाद शम्मी को मिस कोको कोला, तुमसे नहीं देखा, बसंत, कश्मीर की कली, मुजरिम, हम सब चोर हैं जैसी शानदार फिल्मों ने नायक बना दिया। जिसका क्रेडिट ओपी नैय्यर को दिया जाता था।
1 लाख फीस से लेकर बैन होने तक ओपी नैय्यर
ओपी को उनके पहले गाने के लिए 12 रुपए मिले थे। ओपी ने इसके बाद एक-एक कर हिट गाने देना शुरू किया। उनके गानों को लोग इस कदर पसंद करने लगे कि वह फिल्म में म्यूजिक देने के लिए 1 लाख रुपए तक चार्ज करने लगे। ओपी नैय्यर ने 50 और 60 के दशक में इतने कामयाब गीत कंपोज़ किए है कि उन्हें किसी लिस्ट में पिरोना मुश्किल है। उनके गाने उड़े जब-जब ज़ु्ल्फें तेरी, मेरा नाम चिन-चिन चू, ये देश है वीर जवानों का, लेके पहला पहला प्यार, बाबूजी धीरे चलना आज भी लोगों के दिलों मे बसते हैं।
एक और दिलचस्प किस्सा ओपी से जुड़ा हुआ है। 50 के दशक के दौरान आल इंडिया रेडियो ने नैय्यर के संगीत को ज्यादा मॉर्डन और पश्चिमी कल्चर से प्रेरित बताते हुए उनके गानों पर बैन लगा दिया था, और इनके गाने भारतीय रेडियो पर काफी लंबे समय तक नहीं बजाए गये। हालांकि, इस बात से उन्हें ज्यादा फर्क नहीं पड़ा और ओपी पूरी जुनून के साथ एक से बढ़कर एक सुपरहिट गाने देते रहे। जो आज भी पुराने गाने सुनने वालों के शौकीनों के दिल में बसे हुए हैं।
‘दुनिया में औरत की गोद में आया था और जाऊंगा भी औरत की गोद से’
ओपी नैय्यर बेहद जिंदादिली के साथ अपनी जिंदगी के किस्से बताते थे। एक इंटरव्यू में जब उनसे औरतों के प्रति उनके झुकाव को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने बड़ी बेबाकी और मजाकिया लहजे में कहा “मैं तो ये मानता हूं औरतों की वजह से ही मर्द की कद्र है, मैं दुनिया में एक औरत की गोद में ही आया था और जाऊंगा भी औरत की गोद से। मैं तो मौत को भी इसलिए पसंद करूंगा क्योंकि मौत ‘आता नहीं’ बल्कि ‘आती है’।
उनकी ये बात भी सच हुई। उन्हें जब दिल का दौरा पड़ा तो ओपी अपनी मुंह बोली बेटी की गोद में गिर पड़े। 28 जनवरी 2007 को ओपी नैय्यर दुनिया को अलविदा कह गए…Next
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