कहानियों में कुछ भी हो सकता है लेकिन बॉलिवुड और टॉलिवुड की कहानियों में वह होता है जो शायद आपने कभी सोचा भी न हो. पहले हिन्दी सिनेमा प्यार के लिए जाना जाता था, प्यार हुआ, इजहार हुआ, फिर तकरार और इनकार के बाद विलेन की एंट्री होती थी और इस तरह हीरो-हीरोइन सारे गिले-शिकवे भूलकर फिर से एक हो जाते थे. जब से इंडिया में छोटा पर्दा और धारावाहिकों का ज़माना आया, यह कांसेप्ट थोड़ा बदल गया. या यूं कहना चाहिए कि जब से क्रांतिकारी एकता कपूर इन छोटे परदे पर छाईं यह कांसेप्ट बदल गया. उनके कारनामे ऐसे हैं की भगवान भी शायद एक मिनट के लिए कन्फ्यूज हो जाए. ज़रा आजकल के सीरियल्स की कहानियों में होने वाली इन ख़ास खूबियों पर पर नजर डालिए:
एकता के सीरियल्स में प्यार जरूर होता हैलेकिन कुछ इस तरह: पहले लड़के-लडकी में फिल्मी या ट्रेडिशनल अंदाज में प्यार होता है, बिना किसी दिक्कत शादी भी हो जाती है. पर मोड़ा आता है जब अचानक हीरो-हीरोइन झगडा कर अलग हो जाते हैं. अलग होते हैं तो होते हैं, तिस पर लडकी हीरो के छोटे या बड़े भाई या दोस्त से शादी करती है या लड़का हीरोइन की छोटी या बड़ी बहन या दोस्त से शादी करता है. इतना होने के बाद भी दोनों अलग नहीं होते. हीरो-हीरोइन में वापस पहले वाला प्यार जग जाता है और वे वापस से अपनी शादियाँ तोड़कर अपने पहले प्यार (हीरो-हीरोइन) से शादी कर लेते हैं. पते की बात तो यह है कि ये सीरियल्स सुपर-डुपर हिट भी होते हैं. अब ‘बड़े अच्छे लगते हैं’ को ही ले लीजिए.
साजिश: इन सीरियल्स की साजिश की क्या बात करें. कहाँ-कहाँ और किस-किस से साजिशें होती हैं. यह जलेबी की तरह इतनी घूमती हैं की शरलाक होम्स की जासूसी कहानियां भी फेल कर जाएं.
साजिश के अनोखे सूत्रधार: साजिशों की लम्बी चेन में साजिश करने वाला भी परिवार का कोई बहुत करीबी होता है. कभी बुआ, कभी चाची, कभी मामा, कभी मामी, यहाँ तक की बहन से सौतन बन गई अपनी छोटी या बड़ी बहन भी साजिशकर्ता हो सकती हैं.
हीरो-हिरोइन की मौत: जब सब कुछ सही चल रहा होता है तो अचानक कहानी के मुख्या किरदारों (हीरो-हीरोइन) में किसी की मौत हो जाती है. पहली बार ऐसा एकता कपूर के ‘सास भी कभी बहू थी’ में हुआ. हाहाकार मच गया हो जैसे, दर्शकों की तब ऐसी ही कुछ प्रतिक्रियाएं थीं (क्योंकि अब उन्हें पता है इसके बाद क्या होने वाला है). मरने के कई सालों बाद जब दूसरे मुख्य किरदार को वे शादी कर सेटल कर चुके होते हैं तो अचानक मरे हुए किरदार की एंट्री होती है.
प्लास्टिक सर्जरी: हैरानी तो नहीं होगी पढ़कर क्योंकि यह आप भी जानते हैं,; हाँ, पढ़ते हुए ऐसे दृश्य याद कर आपको हंसी जरूर आएगी. कई बार मौत के बाद मुख्य किरदार जब वापस आते हैं तो उनका चेहरा बदल चुका होता है. बेचारे को अपने ही परिवार में अपनी पहचान साबित करने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है.
डिजायनर गहने और कपडे: अगर महिला सशक्तिकरण की बात करें तो शायद इन सीरियल्स ने (एकता कपूर की ‘क्योकि सास भी कभी बहू थी’, ‘कहानी घर-घर की’ जैसे सीरियल्स से शुरुआत हुई थी) इन्डियन लेडीज को इकोनॉमिकली बहुत स्ट्रॉंग बना दिया है. ऐसा हम नहीं इन सीरियल्स में मिडिल क्लास फैमिली में भी आधी रात में भी गहनों और मेकअप से लदी महिलाएं कह रही हैं.
औरतों और दादा-दादी की उम्र: अगर औरतें इन सीरियलों को सीरियसली लेने लगें तो शायद इसके प्रोड्यूसर-डायरेक्टर और अभिनेता-अभिनेत्रियों के पास लेटर्स-ईमेल्स की लाइन लग जाएगी यह जानने के लिए कि उनकी उम्र कैसे नहीं बढ़ती और दादियाँ इतना लंबा कैसे जीती हैं. सीरियल की मुख्य अभिनेत्री अपनी शादी में जितनी ख़ूबसूरत दिखती है, अपने बच्चों के बच्चे हो जाने के बाद भी वे इतनी ही ख़ूबसूरत दिखती हैं. भले ही उनके पति बूढ़े दिखने लगें लेकिन वे बूढ़ी नहीं दिखतीं. ऐसे ही नाती-पोतों तक के बूढ़े होकर मर जाने के बाद भी दादियाँ ज़िंदा रहती हैं.
सीरियल के हीरो की कमाई: ज्यादातर हीरो बिजनेस करते हैं. उसमें भी फटाफट वे अमीर बनते हैं और एक मिनट में गरीब भी बन जाते हैं. एक प्रेजेंटेशन पर उनकी किस्मत टिकी होती है. एक प्रेजेंटेशन सक्सेसफुल होता है और वे बिलेनियर बन जाते हैं और एक झटके में रोड पर रहम खाने की नौबत आ जाती है.
मानना पडेगा की भारतीय टेलीविजन खासकर एकता कपूर की इमेजिनेशन पावर का मुकाबला कोइ नहीं कर सकता. जिस तरह प्यार और जोडियाँ एकता कपूर के सीरियल्स और उनकी देखा-देखी अन्य धारावाहिकों में भी शुरू हुई हैं, भगवान भी शायद इसे देखकर चकरा जाए की आखिर उसने किसके साथ किसकी जोड़ी बनाई.
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