हिन्दी सिनेमा जगत में कभी भी खलनायकों की सशक्त उपस्थिति से इंकार नहीं किया जा सकता. फिल्मों में नायकों के साथ खलनायकों ने भी अपना नाम कमाया है. चाहे अमरीश पुरी हों या कादिर खान या गुलशन ग्रोवर सभी ने लोगों के दिलों में जगह बनाई है फिर चाहे वह नाकारात्मक छवि की वजह से ही क्यूं ना हो. ऐसे ही एक खलनायक हैं प्रेम चोपड़ा. प्रेम चोपड़ा ने हिन्दी सिनेमा में एक ऐसा स्थान बनाया है जहां पर उन्होंने कम फिल्में करने के बाद भी लोगों के दिलों में जगह बनाई है.
एक खलनायक की छवि को उन्होंने तराश कर पर्दे पर उतारा है. कई फिल्मों में उन्होंने खलनायकी के विभिन्न पहलुओं को छूआ है जिसके लिए उन्हें फिल्मफेयर नामांकन भी मिले. लाहौर में जन्मे और शिमला में पले-बढ़े प्रेम चोपड़ा का वह डायलाग प्रेम नाम है मेरा, प्रेम चोपड़ा आज भी लोगों के दिल में कंपन पैदा कर देता है. वह अपने चार दशक के फिल्मी कॅरियर में धर्मेंद्र से लेकर उनके बेटे सनी देओल तक लगभग सभी अभिनेताओं की फिल्मों में खलनायक का रोल निभा चुके हैं.
प्रेम चोपड़ा का जीवन
प्रेम चोपड़ा का जन्म 23 सितंबर, 1935 को लाहौर में हुआ. उनके पिता का नाम रनबीर लाल और माता का रूपरानी था. भारत विभाजन के बाद उनका परिवार शिमला आ गया और उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा वहीं से पूरी की. इसके बाद उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा पूरी की. अभिनय से लगाव उन्हें कॉलेज के दिनों से ही शुरू हुआ.
प्रेम चोपड़ा का कॅरियर
कॉलेज पूरा करने के बाद उन्होंने मुंबई में टाइम्स ऑफ इंडिया में काम करना शुरू किया. साथ ही वह फिल्मों में एंट्री करने के लिए अपना दम लगाते रहे. इसके बाद वर्ष 1962 में उन्हें एक पंजाबी फिल्म में काम करने का मौका मिला. फिल्म “चौधरी करनैल सिंह” बॉक्स ऑफिस पर सुपर डुपर हिट हुई. इस फिल्म के साथ प्रेम चोपड़ा का कॅरियर भी चमक उठा.
अपने शुरुआती दौर में उन्होंने फिल्म “शहीद” में सुखदेव का रोल निभाया था जिसे लोगों ने खूब सराहा था. 1964 में बनी “वो कौन थी” ने प्रेम चोपड़ा को हिन्दी सिनेमा में अहम स्थान दिला दिया और इसके बाद मनोज कुमार की “उपकार” से तो प्रेम चोपड़ा हिन्दी सिनेमा के लीड विलेन बन गए. इस दौर में प्रेम चोपड़ा ने “झुक गया आसमान”, “डोली”, “दो रास्ते”, “पूरब और पश्चिम”, “प्रेम पुजारी”, “कटी पतंग”, “हरे रामा हरे कृष्णा” आदि जैसी फिल्में की.
फिर आई 1973 में फिल्म “बॉबी”. निर्माता निर्देशक राजकपूर के निर्देशन में बनी फिल्म “बॉबी” में उनके द्वारा बोला गया डॉयलाग आज भी लोगों के बीच लोकप्रिय है जिसमें उन्होंने कहा था “प्रेम नाम है मेरा, प्रेम चोपड़ा”. साल 1976 में फिल्म “दो अनजाने” में उन्होंने अमिताभ बच्चन के दोस्त की भूमिका निभाई थी. अपने दमदार अभिनय के लिये वह सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए.
साल 1983 में फिल्म “सौतन” का संवाद “मैं वो बला हूं जो शीशे से पत्थर को तोड़ता हूं” भी प्रेम चोपड़ा द्वारा बोला गया था जो लोगों के बीच बहुत मशहूर हुआ.
प्रेम चोपड़ा ने अपने कॅरियर में देवानंद, मनोज कुमार, राजकपूर, मनमोहन देसाई और यश चोपड़ा जैसे फिल्मकारों के साथ अत्याधिक कार्य किया. देवानंद के साथ उन्होंने “हरे रामा हरे कृष्णा”, ”प्रेम पुजारी”, “देस परदेस” और ‘लूटमार” जैसी फिल्में की तो वहीं मनोज कुमार के साथ “पूरब और पश्चिम”, “उपकार” जैसी फिल्मों में नजर आए. प्रेम चोपड़ा ने अपने चार दशक लंबे सिने कॅरियर में अब तक लगभग 300 फिल्मों में अभिनय किया.
आज भी प्रेम चोपड़ा सिनेमा जगत में अपना काम कर रहे हैं. “दिल्ली 6”, “रॉकेट सिंह: सेल्समैन ऑफ द ईयर”, “गोलमाल 3” जैसी फिल्मों में उन्होंने कॉमेडियन की भूमिका निभाई है.
प्रेम चोपड़ा ने राज कपूर की पत्नी की बहन उमा के साथ शादी की थी. प्रेम चोपड़ा की तीन बेटियां हैं.
फिल्मों में क्रूर दृश्य करने वाले प्रेम चोपड़ा असल जिंदगी में बेहद शांतिप्रिय व्यक्ति हैं. पर्दे और पर्दे के बाहर उन्होंने अपनी अलग-अलग छवि बना रखी है. आज जब हिन्दी सिनेमा से परंपरागत विलेन गायब दिखते हैं तो हमें प्रेम चोपड़ा जैसे अभिनेताओं का ख्याल अनायास ही आ जाता है.
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