‘तोड़ चलो ये जंजीरे सारी कि तुम्हारे पास खोने के लिए कुछ नहीं और पाने के लिए पूरा जहां है’ महान दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने ये नारा दासप्रथा और गुलामी की जंजीरें को तोड़कर एक नव क्रांति लाने के लिए दिया था. लेकिन आज के परिवेश में बेशक दासप्रथा की जंजीरों से हम आजाद हो चुके हैं लेकिन अभी भी कहीं न कहीं हम अपनी सोच और समाज के बनाए दकियानूसी बन्धनों के गुलाम हैं. बॉलीवुड में हमेशा से ऐसी फिल्में बनती रही है जिन्होंने लोगों का समाज के प्रति नजरिया बदलने और समाज में मौजूद कई दकियानूसी विषयों पर प्रकाश डाला है. पेश है बॉलीवुड की ऐसी दमदार फिल्में.
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वॉटर
विधवाओं की जिदंगी और समाज के प्रति उनके रवैये पर बनी दीपा मेहता की इस फिल्म को दर्शकों के बीच बहुत सराहा गया था.
डोर
नागेश कुकुनूर की ये फिल्म बेशक बॉक्स ऑफिस पर कोई कमाल नहीं कर सकी, लेकिन दर्शकों के एक खास वर्ग ने इस फिल्म को खूब सराहा. इस फिल्म में विधवा महिलाओं पर सामाजिक बंदिशों को बखूबी दिखा गया है.
स्वदेश
गांवों में जातिवाद, ऊंच-नीच आदि मतभेदों को दूर करके कैसे एक शहर से आया लड़का नई बुलंदियों पर पहुंचाता है, इस फिल्म में बेहतरीन तरीके से दिखाया गया है.
प्रेमरोग
शादी और प्यार के प्रति समाज के नजरिए को दिखाती इस फिल्म में महिलाओं के विरूद्ध होने वाले दोहरे व्यवहार और मानसिकता के इर्द-गिर्द घूमती इस फिल्म को आज भी पसंद किया जाता है.
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दामिनी
एक रेप पीड़ित लड़की को इंसाफ दिलाने के लिए एक दूसरी लड़की को समाज, कानून और परिवार से किस कदर जूझना पड़ता है, फिल्म की कहानी इसी पर आधारित है.
अछूत कन्या
अछूत कन्या’ भारतीय समाज के एक काले पक्ष को उजागर करती है. जो छुआ-छूत पर आधारित एक प्रेम कहानी है.
मातृभूमि
महिला शिशु हत्या व घटती महिलाओं की संख्या के मुद्दे पर प्रकाश डालती ये फिल्म कुछ असली घटनाओं, जैसे महिलाओं की गिरती संख्या व भारत के कुछ भागों में पत्नी खरीदने की प्रथा को उजागर करती है.
फॉयर
इस्मत चुगतई के उपन्यास ‘लिहाफ’ पर बनी इस फिल्म में होमोसेक्सुअल रिलेशन को दिखाया गया है. साथ ही समाज के दोहरे मापदंडों को भी दिखाया गया है.
लज्जा
समाज में महिलाओं के प्रति भेदभाव और दोहरी मानसिकता को दिखाती इस फिल्म में समाज पर व्यंग किया गया है.
मॉय ब्रदर निखिल
एचआईवी पॉजिटिव एक लड़के के जीवन पर आधारित इस फिल्म में समाज में एचआईवी पॉजिटिव लोगों के साथ समाज का व्यवहार बखूबी दिखाया गया है.
आरक्षण
आरक्षण से प्रभावित लोगों के जीवन, जनाक्रोश और आंदोलन की जटिलताओं को उजागर करती इस फिल्म को सभी ने सराहा.
सत्याग्रह
भ्रष्टाचार और दूसरी कई वास्तविक घटनाओं को फिल्म के माध्यम से बखूबी दिखाया गया है. फिल्म में अन्ना हजारे के आंदोलन की छाप भी देखने को मिलती है.
इंग्लिश- विंग्लिश
एक विदेशी भाषा को सही से न बोल पाने के कारण किस कदर अपने ही देश के लोगों को, अपने ही देश के लोगों द्वारा बार-बार अपमानित होना पड़ता है. इस फिल्म में बखूबी दिखाया गया है.
मृत्युदंड
गांव में भेदभाव और जातिगत समीकरणों पर आधारित इस फिल्म को दर्शकों के द्वारा सभी ने सराहा था…Next
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