‘वो अपने पिता की फलों की दुकान पर बैठा करता था. एक छोटी-सी दुकान. जिसपर शायद ही किसी की नजर पड़ती थी. वहां वो लड़का खड़ा होकर फल बेचाकर करता था. देखने में गोरा, खूबसूरत नैन-नक्श कुल मिलाकर एक सुंदर नौजवान. जिसे देखकर पलभर के लिए कोई भी रूककर सोचेगा कि ये यहां क्या कर रहा है, इसे तो कहीं ओर होना चाहिए. बस, ऐसा ही कुछ सोचा था एक अभिनेत्री ने. उस अभिनेत्री की नजरों ने फल बेचने वाले यूसूफ खान को सुपरस्टार दिलीप कुमार बना दिया.
हिंदी फिल्म जगत की पहली ‘किसिंग क्वीन’ थी ये अभिनेत्री
देविका रानी को हिंदी फिल्मों की पहली नायिका के तौर पर देखा जाता है. ‘कर्मा’ फिल्म से अपने कॅरियर की शुरूआत करने वाली देविका रानी ने उस दौर में अपने बोल्ड अंदाज से धमाका मचा दिया था. दरअसल, उन दिनों आम वर्ग के लोग फिल्म जगत से जुड़े हुए लोगों को सम्मान की नजर से नहीं देखते थे. भारतीय समाज की मर्यादा को बरकरार रखते हुए फिल्मों में प्रेम दृश्य पर्दे से नदारद रहते थे. ये वो वक्त था जब किसिंग सीन को प्रतीकात्मक चीजों से जोड़कर फिल्मांया जाता था. लेकिन 1933 में देविका ने फिल्म ‘कर्मा’ में 4 मिनट का लिप लॉक किसिंग सीन देकर सभी को चौंका दिया था. इस सीन के बाद देविका रानी की खूब आलोचना की जाने लगी. इन सभी आलोचनाओं को दरकिनार करते हुए देविका ने फिल्म करना जारी रखा और हिंदी जगत की पहली नायिका बनकर इतिहास रच दिया.
देविका ने जब पहली बार देखा था दिलीप को
देविका रानी महज चंद सालों में बॉलीवुड की नामी अभिनेत्री बन चुकी थी. साथ ही वो बॉम्बे टॉकीज की मालकिन भी थी. रोजाना की तरह वो अपनी आलीशान गाड़ी में बैठकर शूटिंग के लिए जा रही थी. कुछ फल लेने के लिए उन्होंने अपनी गाड़ी, फल की दुकान के आगे रूकवाई. ये दिलीप कुमार की छोटी-सी दुकान थी. देविका की नजर फल तोल रहे सुंदर नौजवान पर पड़ी. उन्हें अपनी फिल्म ‘ज्वार भाटा’ याद आई. उन्हें ये लड़का उस फिल्म में रोल करने के लिए भा गया. इसके बाद देविका अक्सर उस दुकान पर आने-जाने लगी. धीरे-धीरे उन्होंने दिलीप से बातचीत बढ़ाई.
जब दिलीप ने रखी दिहाड़ी की शर्त
एक रोज देविका ने दिलीप से फिल्मों में काम करने के लिए कहा. दिलीप साहब को इस वक्त तक भी पता नहीं था कि ये महिला कौन है. उन्होंने साफ इंकार करते हुए कहा ‘मेरी दुकान का कितना घाटा होगा, आजकल वैसे ही धंधा मंदा चल रहा है’. लेकिन बहुत मनाने पर दिलीप कुमार ने देविका के सामने एक शर्त रखी. उनके मुताबिक अगर देविका रोजाना की उतनी दिहाड़ी दे, जितनी वो फल बेचकर कमाते हैं तो वो उनके साथ चल सकते हैं. मायानगरी की रानी के लिए ये काम मुश्किल नहीं था. फिर युसुफ खान नाम का ये लड़का देविका के साथ शूटिंग पर जाने लगा.
स्वभाव से बेहद शर्मीले थे दिलीप
दिलीप साहब स्वभाव से बहुत शर्मीले थे. वो कैमरे के सामने आते ही मुस्कुराने लगते थे. कभी-कभी वो अपने अंदाज में कैमरे के सामने बचपने में काफी बातें कह जाते थे. जिसपर देविका मुस्कुराकर उन्हें काम समझाती थी.
डर के मारे नहीं बताई थी किसी को अपनी असलियत
उन दिनों नौजवानों का फिल्मों में जाना यानि बिगड़ना या आवारा होना समझा जाता था. इस वजह से युसूफ खान से दिलीप कुमार बन चुके इस अभिनेता ने अपने घर में ये बात किसी को नहीं बताई थी कि वो फल की दुकान छोड़कर फिल्मों में काम करने जाते हैं
पहली फिल्म में छा गए थे दिलीप साहब
1944 में आई दिलीप कुमार की पहली फिल्म ‘ज्वार भाटा’ जिसमें दिलीप कुमार की एक्टिंग से ज्यादा उनकी खूबसूरती की तारीफ हुई. इसके बाद तो दिलीप ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. आज भी दिलीप साहब के चाहने वालों की कमी नहीं है.
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