कहते हैं कि वेश्याएं अपनी नजाकत से किसी का भी मन लुभा सकती हैं. आखिरकार वेश्याओं का काम ही लोगों के मन को लुभाना होता है पर सोचिए जरा आपको कहा जाए कि अब वेश्याएं मन को लुभाने का काम नहीं करेगी तो आपको यह सुनकर अजीब लगेगा या फिर आप इस सोच में पड़ जाएंगे कि वेश्याएं यदि लोगों के मन को लुभाने का काम नहीं करेगी तो कौन करेगा? आपके सभी सवालों के जवाब ‘ब्लैक एंड व्हाइट एंड सेक्स’ में मिल जाएंगे. हर फिल्मकार-निर्माता अपने अंदाज से फिल्म को बनाता है कुछ ऐसा ही विंटर ने किया है.
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‘ब्लैक एंड व्हाइट एंड सेक्स’ ऐसी फिल्म है जिसमें वेश्याओं को एक अलग ही अंदाज के साथ दिखाया गया है. आज तक लोगों को यही लगता था कि एक वेश्या का काम लोगों के मन को लुभाने का होता है पर इस फिल्म ने इस धारणा को तोड़ करके समाज के समक्ष एक नई धारणा प्रदर्शित की है. ‘ब्लैक एंड व्हाइट एंड सेक्स’ फिल्म के निर्माता विंटर का भी यही कहना है कि यह फिल्म सिर्फ समाज की वेश्याओं को लेकर सोच बदलने के लिए बनाई गई है और साथ ही विंटर ने बताया कि केन्द्रीय पात्र में एक वेश्या के तौर पर सेक्स और कामुकता को लेकर यह फिल्म सोचने के लिए मजबूर करने वाली है. हैरत वाली बात है कि इस गंभीर फिल्म की कहानी दो साल में पूरी हुयी और आठ दिन के अंदर फिल्म की शूंटिग खत्म कर ली गई और इसमें आठ अभिनेत्रियों ने भूमिका निभाई है. पिछले सप्ताह इस फिल्म को बेहतरीन प्रयोगात्मक फिल्म की श्रेणी में आस्ट्रेलियाई टीचर्स ऑफ मीडिया (एटीओएम) पुरस्कार से नवाजा गया था.
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विंटर जैसे निर्देशकों का यह मानना है कि फिल्म बनाने के पीछे गंभीर विचारों का होना जरूरी है क्योंकि गंभीरता ही फिल्म को एक नया नजरिया देती है. विंटर का ब्लैक एंड व्हाइट एंड सेक्स जैसी फिल्म को बनाने के पीछे यही कारण था कि वेश्याओं को लेकर रूढ़िवादी धारणाओं को तोड़ना और समाज को एक नया नजरिया देना कि एक वेश्या सबसे पहले एक इंसान और उसके बाद एक महिला होती है. वास्तव में यह सच है कि मनोरंजन जगत में ऐसी फिल्मों की जरूरत है जो लोगों का मनोरंजन कर सकें और समाज को एक नया नजरिया दे सकें. हमारा इस लेख को जागरण जंक्शन के मंच पर लिखने का यही कारण है कि मनोरंजन की दुनिया को इस गंभीर तरीके के साथ भी देखा जा सकता है.
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