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देखो ये मैंने क्या लिखा है,और देखो क्यों लिखा है ।
दांस्ता अपनी बयां करके लिखा है
उलझनों की सीढीयों को लिखा है
सवालातों के पहाड़ों को लिखा है
देखो ये …………………………………….
हमें जो रोकते हैं मंजिल को पाने में
मैंने उन राहों के अटकलों को लिखा है
सूझती नहीं कोई राह हमें
मैंने ऐसी गुमनाम राहों को लिखा है
देखो ये ……………………………………….
राहों का ढूँढ़ा है खयालातों में
मैंने उन खयालातों का लिखा है
देखे हैं सपने अनेकों मन में
मैनें उन सुनहरे सपनों को लिखा है
अरमान भी है अनेकों दिल में
मैंने उन अरमानों को लिखा है
देखो ये ……………………………………….
विचार आते हैं कई मेरे मन में
मैंने उन विचारों को लिखा है
किरणें प्रफुल्लित हुई है नवयुग की बेला में
मैंने उस सुप्रभात को लिखा है
देखो ये …………………………………………….
पाया है मैंने बहुत कुछ नयेपन में
मैंने उन बुलन्दियों को लिखा है
राह मेरी है मंजिल में
मैंने उस राह-ए-मंजिल को लिखा है
पाया है मैंने बहुत कुछ जीवन में
मैंने उस नवजीवन को लिखा है
देखो ये …………………………………………
हमें क्या पता हम हैं कौन
मैंने उन बेनाम सवालों को लिखा है
कुछ तो होगा खास इस जन्म में
मैंने उस पुनर्जन्म को लिखा है
देखो ये …………………………………………
लवविवेक मौर्या(लखीमपुर खीरी)
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