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ग़ालिब की शायरी

Famous Quotations
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galibलाज़िम था कि देखो मिरा रास्ता कोई दिन और

तन्हा गए क्यों अब रहो तन्हा कोई दिन और

मिट जाएगा सर, गर तिरा पत्थर न घिसेगा

हूं दर पर तिरे नासिया फर्सा  कोई दिन और

आये हो कल, और आज ही कहते हो कि जाऊं

मानो, कि हमेशा नहीं अच्छा, कोई दिन और

जाते हुए कहते हो, कयामत को मिलेंगे

क्या खूब, कयाम़त का है गोया कोई दिन और

हां ऐ फ़लके-पीर  जवां था अभी ‘आरिफ’

क्या तेरा बिगड़ता, जो न मरता कोई दिन और

तुम माहे-शबे-चारदहम  थे, मिरे घर के

फिर क्यों न रहा घर का वह नक्शा कोई दिन और

तुम कौन से ऐसे थे खरे, दादो-सितद  के

करता मलकुल-मौत  तक़ाज़ा, कोई दिन और

मुझसे तुम्हें नफरत सही नैयर  से लड़ाई

बच्चों का भी देखा न तमाशा कोई दिन और

गुजरी न बहर हाल यह मुद्दत खुशो-नाखुश

करना था, जवांमर्ग, गुज़ारा कोई दिन और

नांदा हो, जो कहते हो, कि क्यों जीते हो ‘गालिब’

क़िस्मत में है, मरने की तमन्ना कोई दिन और

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रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए

धोए गए हम ऐसे कि बस पाक हो गए ॥

सर्फ़-ए-बहा-ए-मै हुए आलात-ए-मैकशी

थे ये ही दो हिसाब सो यों पाक हो गए ॥

रुसवा-ए-दहर गो हुए आवार्गी से तुम

बारे तबीयतों के तो चालाक हो गए ॥

कहता है कौन नाला-ए-बुलबुल को बेअसर

पर्दे में गुल के लाख जिगर चाक हो गए ॥

पूछे है क्या वजूद-ओ-अदम अहल-ए-शौक़ का

आप अपनी आग से ख़स-ओ-ख़ाशाक हो गए ॥

करने गये थे उस से तग़ाफ़ुल का हम गिला

की एक् ही निगाह कि बस ख़ाक हो गए ॥

इस रंग से उठाई कल उस ने ‘असद’ की नाश

दुश्मन भी जिस को देख के ग़मनाक हो गए ॥

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हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है

तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है

न शोले में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा

कोई बताओ कि वो शोखे-तुंदख़ू क्या है

ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न हमसे

वरना ख़ौफ़-ए-बदामोज़ी-ए-अदू क्या है

चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन

हमारी ज़ेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा

कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल

जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है

वो चीज़ जिसके लिये हमको हो बहिश्त अज़ीज़

सिवाए बादा-ए-गुल्फ़ाम-ए-मुश्कबू क्या है

पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो चार

ये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू क्या है

रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी

तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है

बना है शह का मुसाहिब, फिरे है इतराता

वगर्ना शहर में “ग़ालिब” की आबरू क्या है

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