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दीवान-ए-ग़ालिब…

Famous Quotations
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ghalibघर जब बना लिया तिरे दर पर, कहे बिग़ैर

जानेगा अब तू न मिरा घर कहे बिग़ैर


कहते हैं, जब रही न मुझे ताक़ते सुख़न

जानूं किसी के दिल की मैं क्योंकर, कहे बिगै़र


काम उससे आ पड़ा है, कि जिस का जहान में

लेवे न कोई नाम, सितमगर कहे बिग़ैर


जी ही में कुछ नहीं है हमारे वगरना हम

सर जाये या रहे, न रहें पर कहे बिगै़र


छोड़ूंगा मैं न, उस बूते- काफ़िर का पूजना

छोड़े न खल्क़ गो मुझे काफिर कहे बिगैर


मक़सद है नाजो़-गम्जा, वले गुफ्तगू में, काम

चलता नहीं है दश्न-ओ-खंजर कहे बिग़ैर


हरचंद, हो मुशाहिद-ए-हक़  की गुफ़्तुगू

बनती नहीं है, बादा-ओ-सागर कहे बिगैर


बहरा हूं मैं, तो चाहिए दूना हो इल्तिफ़ात

सुनता नहीं हूं बात, मुकर्रर  कहे बिग़ैर


‘ग़ालिब’, न कर हुजूर में तू बार-बार अर्ज़

जा़हिर है तेरा हाल सब उन पर, कहे बिग़ैर




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एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब


एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब

ख़ून-ए-जिगर वदीअत-ए-मिज़गान-ए-यार था


अब मैं हूँ और मातम-ए-यक शहर-ए-आरज़ू

तोड़ा जो तू ने आईना तिम्सालदार था


गलियों में मेरी नाश को खेंचे फिरो कि मैं

जाँ दाद-ए-हवा-ए-सर-ए-रहगुज़ार था


मौज-ए-सराब-ए-दश्त-ए-वफ़ा का न पूछ हाल

हर ज़र्रा मिस्ले-जौहरे-तेग़ आबदार था


कम जानते थे हम भी ग़म-ए-इश्क़ को पर अब

देखा तो कम हुए पे ग़म-ए-रोज़गार था



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फिर इस अंदाज़ से बहार आई


फिर इस अंदाज़ से बहार आई

के हुये मेहर-ओ-माह तमाशाई


देखो ऐ सकिनान-ए-खित्ता-ए-ख़ाक

इस को कहते हैं आलम-आराई


के ज़मीं हो गई है सर ता सर

रूकश-ए-सतहे चर्ख़े मिनाई


सब्ज़े को जब कहीं जगह न मिली

बन गया रू-ए-आब पर काई


सब्ज़-ओ-गुल के देखने के लिये

चश्म-ए-नर्गिस को दी है बिनाई


है हवा में शराब की तासीर

बदानोशी है बाद पैमाई


क्यूँ न दुनिया को हो ख़ुशी “ग़ालिब”

शाह-ए-दीदार ने शिफ़ा पाई .



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दोनों जहाँ देके वो समझे ये ख़ुश रहा



दोनों जहाँ देके वो समझे ये ख़ुश रहा

यां आ पड़ी ये शर्म की तकरार क्या करें


थक थक के हर मक़ाम पे दो चार रह गये

तेरा पता न पायें तो नाचार क्या करें


क्या शमा के नहीं है हवा ख़्वाह अहल-ए-बज़्म

हो ग़म ही जां गुदाज़ तो ग़मख़्वार क्या करें


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