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तुम्हारी कहानी : ११

The Show Must Go On
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11 Chapter Jagran Junction

तुम्हारी कहानी : ११

[प्रकरण १० के अंत में आपने पढ़ा: अचानक वो मेरे बहोत करीब आ गयी. इतनी करीब की मैं उसकी गर्म सांसोंको अपने चहेरेसे टकराते हुए महसूस कर रहा था.उसकी आवाज़में मदहोशी और शोखी घुल गए जब उसने मुझसे कहा,
“शी वैरी वेल नोज़ ध लीथल इम्पैक्ट ऑफ़ योर चार्म्स. तुम्हारे दिलकश अंदाज़का जानलेवा असर वो अच्छी तरहसे जानती है.”
उसके इस बेबाक अंदाज़ने मुझे हिला दिया. अणिमाकी बात सही थी. मंदाकिनीकी बेबाकी और निर्भयता मुझे हदसे ज्यादा आकर्षीत कर रहे थे. हालांकि वो मेरे अज़ीज़ दोस्तकी पत्नी थी और मैं इस बात को लेकर बहोत ही सचेत था कि मेरा उसके साथ एक हद से ज्यादा करीबी रिश्ता न हो. पर एक स्त्री और पुरुषका करीबी रिश्ता किस वक़्त मर्यादाओंके बाँध तोड़ देगा ये कोई नहीं कहे सकता. और मंदाकिनी जज़्बातोंका एक ऐसा सैलाब थी जिसका उफान कभी भी नैतिकताकी दीवारको ढहा सकता था. उसकी मस्ती भरी निगाहोंसे निगाहें मिलाकर मैंने कहा,
“तारीफ़ करूँ तो किसकी करूँ? अंदाज़ ए क़त्ल की या कातिलकी उस मासूमियतकी जो क़त्ल करके शिकारको शिकारी करार दे रही है?” ] आगे पढ़िए…

मेरे शायराना अंदाज़ पर वो मुस्कुराई. हल्कीसी मुस्कुराहटके साथ मैनेभी उसकी मुस्कुराहटका प्रत्युत्तर दिया. मेरी ओर एकटक देख रही उसकी मुस्कुराती हुई आँखें हल्कीसी उदास हुई और वो हल्कीसी थरथराती आवाज़में बोली,

“मेरी मर्यादा मैं जानती हूँ आकाश. मेरे लिए तुम एक रूमानी ख्वाब हो. मैं इसे कभी नहीं पा सकती. लेकिन जब तक ये ख्वाब मेरे सामने है मैं उसे जी तो सकती हूँ. मैं हर उस पल को जी भरके जीना चाहती हूँ जो तुम्हारे साथ बीत रहा है. तुम्हारे सामने मैं जैसी हूँ वैसी ही दिखना चाहती हूँ.” बोलते बोलते उसकी आँखें नम हो गयी.

उसकी भावनाओंको मैं अच्छी तरहसे समझ सकता था. लेकिन उसके शब्दोंका अर्थघटन मेरे लिए बहोत ही पीड़ा दायक था. अरनॉब मेरा बहोत ही अज़ीज़ दोस्त था. मंदाकिनी उसकी बीवी थी. उसका इस प्रकार मेरी ओर आकर्षित होना मुझे बिलकुल गवारा नहीं था. मेरे लिए सबसे पीड़ादायक और भयावह बात यह थी की मैं उसे चाह कर भी रोक नहीं पा रहा था. मैं अरनोबको बतौर दोस्त सिर्फ चाहता ही नहीं था पर उसका सन्मान भी करता था. वो एक बहोत ही सन्निष्ठ और कुशल प्रशासनिक अधिकारी था. उसके जैसे अफसरोंके हाथमें मेरे देश और समाजका भविष्य सुरक्षित था. ये वही लोग है जो हमारे देशको उज्जवल भविष्यकी ओर ले जाएंगे. यही कर्तव्यनिष्ठा मैंने मंदाकिनीमे भी देखि थी. मैं चाहता था कि उनके जीवनके कुछ पल खुशियोंसे सजा दूँ. यही तो मेरा काम था : एंटरटेनमेंट, मनोरंजन. मनोरंजनके व्यवसायमे रहकर मैंने मनोरंजनका बहोत गहरा अर्थ समजा है. मनोरंजन सिर्फ हंसाने हंसानेसे नहीं होता. मनोरंजनका अर्थ होता है मनमे दबी हुई हर भावनाको सतह पर लाकर उसे मुक्त करना, बहा देना. ईन भावनाओंमे दर्द भी शामिल है और ख़ुशी भी, प्रेम भी है और वासना भी, करुणा भी है और क्रोध भी, डर भी है और विद्रोह भी. जज़्बातके हर रंगको जब हम फिल्मके माध्यमसे मुक्त करते है तब वास्तवमे मनोरंजन होता है.

मैंने मंदाकिनीके हाथको अपने हाथमे लेकर हलकेसे सहलाकर पूछा,

“क्या तुम अपने जीवनसे खुश नहीं हो?”

उसने अपनी पलकें उठाकर मेरी ओर देखा. उसकी आंखोंमें मुझे समंदरकी गहराई दिखी. उसमे उठता हुआ तूफ़ान मैंने महसूस किया. मैं अब भी उसकी हथेली अपने हथिलियोंके बीचमे थामे हुए था. उसने अपनी दूसरी हथेली मेरे हाथ पर रखी. उसका यह स्पर्श मुझे दहकता हुआ महसूस हुआ. यह एक ऐसा क्षण था जिसमे शब्द संवेदनाओंकी अभिव्यक्तिके लिए असहाय हो जाते है. नेत्र चतुष्टयका संधान और स्पर्शका सेतु हृदयतलसे बहनेवाली ऋजु से ऋजु भावनाओंका यथार्थ बोध कराते है. उसकी बायीं पलकके किनारेसे एक अश्रुबिंदु हलकेसे टपका जो उसके गाल परसे ओसबिन्दुकी तरह सरकता चमकता आगे बढ़ा और हमारे जुड़े हुए हाथों पर गिरकर बिखर गया. उसने हौलेसे अपने हाथ मेरे हाथ से अलग किये और उठ कर मेरे से थोड़ी दूर जाकर, मेरी और पीठ कर खड़ी रही. धीरेसे उसने अपनी नम आँखोंको पोंछने लगी. रातके समय बैकयार्डमें बने गार्डेनमेंसे जूही की ख़ुशबू अपनेमे समेटे हुए हवा चल रही थी. मैंने सिगरेट जलाई और एक कश लिया. मैं उसे डिस्टर्ब करना नहीं चाहता था. मंद मंद बाहेती हवाके संसर्गसे चलित होते पत्तोंकी सरसराहट और एक लयमे हो रहा झिंगुरोंका समूह गान रातके सन्नाटेको जीवन दे रहे थे. ऐसा लग रहा था कि ये सरसराहट और झिंगुरोंका समूह गान रात्रिकी सदा काल पहचान हो.

मैं सोच ही रहा था कि मंदाकिनी मेरी और मुड़ी. उसके होठों पर अब हलकी सी मुस्कराहट थी. लेकिन होठोंकी मुस्कराहट उसकी आँखोंको नहीं छू रही थी. हवाके तेज़ झोंकोंमे उसकीखुली हुई घुंघराली घनी ज़ुल्फ़ें उड़ रही थी. काली घनी ज़ुल्फ़ोंके बीच दमकता उसका गोरा चहेरा बहोत ही सुन्दर लग रहा था. वो आकर मेरे सामने चेयर पर बैठी और बोली,

“मैं बहोत खुश हूँ आकाश, बहोत ही खुश. क्योंकि मैं मेरा जीवन दिल से नहीं दिमागसे जी रही हूँ. मैं एक आर्मी अफसरकी बेटी हूँ. मेरी परवरिश पूरी शिस्तके साथ हुई है. मेरे निर्णयोंमे दिलका कोई योगदान नहीं होना चाहिए ये मैंने बचपनमे ही सिख लिया था. मैंने इश्क़ भी किया तो सोचसमझकर एक ऐसे इन्सानसे जिसका उज्जवल भविष्य हो. और देखो क्या हांसिल किया मैंने? हमारे पास पैसा है, पावर है और एक ज़बरदस्त भविष्य है. हम लोग किसी परी कथाके राजा रानी जैसा जीवन जी रहे है. गाडी पर झगमगाती हुई लाल लाइट और दरवाज़े पर तैनात हाथमें बन्दुक लिए हुए गार्ड जो हमेशा हमारा स्वागत सल्यूटसे करते है. मेरे पतिका शासन इंसानो पर है और मैं जंगल और जंगलके जीवों पर शासन कराती हूँ. ईट इज़ आ फेयरी टेल लाइफ. क्या समस्या हो सकती है मुझे?” वो मुस्कुराई और उठकर मकानके अंदर चली गई.

जब वो वापस आयी तब उसके हाथमें वाइनकी एक बोतल और दो ग्लास थे. उसके पीछे पीछे धम्मा दादा हाथमे कॉर्क ओपनर लेकर दौड़ते दौड़ते आये. उनके हाथसे ओपनर लेकर उसने कॉर्क खोल और दोनों ग्लास रेड वाइनसे भर दिए. एक ग्लास मुझे देकर उसने अपना ग्लास ऊपर उठाया और कहा,

“लेट अस ड्रिंक फॉर ध डिसिप्लिन एंड इंटेलिजेंस. चियर्स.”

मैंने मुस्कुराकर अपना ग्लास उसके ग्लास से टकराया. उसके शब्दोंमें डिसिप्लिन और इंटेलिजेंसके लिए उलाहना भरी पड़ी थी. लेकिन मैंने खामोश रहना पसंद किया. उसने इशारा करके धम्मा दादाको बची हुई वाइन फ्रिजमें रखनेको कहा. धम्मा दादा वाइनकी बोतल लेकर मकानके अंदर चले गए. कुछ देर खामोश रहकर हम अपने अपने ग्लाससे चुस्कियां लेते रहे. फिर वो बोली,

“मेरी परवरिश शिस्त और दिमागसे निर्णय लेनेकी हुई है. मेरी जिंदगीके हर अहम फैसले मैंने ऐसेही लिए है. लेकिन मेरी एक समस्या है, जेनेटिक प्रॉब्लम. मेरी माँ एक पोएट, कवयत्री, थीं. वो कवितायें लिखती थी. मेरे नाना संगीतकार थे. जब मैं तीन सालकी थी तब ही मेरी माँ मुझे छोड़कर ईश्वरके पास चली गई. लेकिन विरासतमे वो मुझे ये कमबख्त डीएनए (DNA ) दे गयीं जो मुझे अक्सर जज़्बाती बना देता है. वैसे तो शिस्तका कवच बहोत ही मज़बूत है पर फिरभी कभी कभार मेरा दिल मुझ पर हावी हो ही जाता है. बचपनमे जब भी मैं जज़्बाती हो जाया कराती थी तब मेरे डैडी अक्सर मुझे ये कहा करते थे कि ये मेरी माँकी विरासत है जो मुझे एक जज़्बाती बेवकूफ याने इमोशनल फूल बना देती है. तुम्हारा दोस्त और मेरे प्यारे पति मेरी उस अवस्थाको पैरानोइया यानीकि एक तरहक पागलपन करार देते हैं. उन्होंने कुछ जाने माने साइकोलोजिस्ट और साइकियाट्रिस्टसे मेरा चेक अप करवाकर अपनी मान्यताओंकी पुष्टि भी की है. लेकिन ये बात अगर सबको पता चल जाय तो मैं अपनी नौकरी खो सकती हूँ इस लिए मुझपर उपकार करके मेरी इस विक्षिप्त मानसिक स्थितिको गोपनीय रखा गया है.” कहकर वो ठहाका मारकर हंसी. उसकी इस हँसीमे साथ देना मेरे लिए मुमकिन नहीं था क्योंकि इसमें उसके दिल का दर्द छलक रहा था. मैं खामोशीसे उसे देखता और सुनता रहा. होठों पर मुस्कराहट और आंखोंमें दर्दके साथ उसने मेरी और देखा और फिर एक ही घूंटमे वो अपने ग्लासमे बची सारी वाइन पी गयी, धम्मा दादाको आवाज़ लगाकर उसने उन्हें बाकी बची वाइन लाने को कहा. वाइनकी बोतल आते ही उसने मेरी और देखा तो मैंने उसे अपना गिलास दिखाया जो आधे से भी ज्यादा भरा हुआ था. उसने दोबारा अपना ग्लास पूरा भरा और मेरी और देखकर बोली,

“देखो आकाश, तुम्हारी दोस्त सिर्फ पागल ही नहीं, पर शराबी भी है.”:

धम्मा दादाने मेरी और देखा तो मैंने उनको जानेके लिए इशारा किया. मेरे लिए बड़ी ही विचित्र परिस्थिति खड़ी हो रही थी. मन्दाकिनिकी भावनाओंमे वाइनका हल्का सा सुरूर भी घुलने लगा था. मेरे मनमे अब भी अणिमाके चेतावनी भरे शब्द गूंज रहे थे. मैंने मन्दाकिनिकी ओर देखा. वो जैसे अपने आपमें खोने लगी थी. अपनी आँखें बंद कर वो कुछ गुनगुना रही थी. उसके चहेरे पर बार बार हल्कीसी मुस्कान आ जाती थी. ऐसा लगता था जैसे वो अपने मन ही मन किसीसे बात कर रही थी. क्या सचमुच उसे पागलपनका दौरा पड़ता होगा? क्या वो सचमुच पैरानॉइड है? या वो मेरे प्रेम में दीवानी हो रही है? मैं सोचता रहा.

(क्रमश:)

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