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तुम्हारी कहानी २
उसकी तस्वीरको मैं एक टक देखता रहा. अनायास मेरी आँखें बहने लगी थी. तभी मी पीछेसे धम्मा दादाकी आवाज़ आई :
“आप ही की खींची हुई यह तस्वीर है न साहब? जाने से पहले उन्होंने ही यह तस्वीर बड़ी करवाकर यहाँ लगवाई थी”
,मेरे लिए अब खड़े रहना मुश्किल था. पास के एक सोफे पर मैं बैठ गया. हाँ, मेरीही खींची हुई तस्वीर थी यह. आजसे तक़रीबन उन्नीस साल पहले जब मैं उसके साथ एक रेन फारेस्टका लोकेशन देखने गया था. मेरी अगली फिल्म के लिए मुझे घना जंगल चाहिए था. ब्लू जीन्स और खाखी सफारी शर्टमे वो बहोत खूबसूरत लग रही थी. जंगल और जंगली जानवरोंसे उसका लगाव और उसकी फुर्तीली चाल देख कर मेरे उसका नाम वाइल्ड कैट रखा था जिसे उसने खुशीसे स्वीकार कर लिया था.. इतनाही नहीं उसने ये भी कहा था की मुझे उससे बच के रहना चाहिए क्योंकि मेरे रूपमे उसे जीवनका सबसे पसंदीदा शिकार मिल गया था.
अचानक मेरी आँखों के सामने वो हराभरा घना जंगल किसी चित्रपटकी तरह उजागर हो गया जहां मैंने उसे एक उन्मुक्त गर्विष्ठ शेरनिकी तरह विचरण करते देखा था. वो जंगल जिसने मेरे सामने उसका वास्तविक रूप उजागर किया था. वो जंगल जिसमे मैंने अपने जीवनके सबसे करीबी दोस्तको पाया था.
इससे पहले कि मैं बीते हुए लम्होंमें पूरी तरह खो जाता कांचकी खनकने मुझे वापस वर्तमानके साथ जोड़ दिया.धम्मा दादा चायका ट्रे लेकर आ रहे थे. सोफा सेट के बीचमे रखे हुए सेंटर टेबल पर उन्होंने ट्रे रखा और कपमें उबलता हुआ चायका पानी डाला, फिर उसमे मिल्क पॉटसे थोड़ा दूध मिलाया. फिर शुगर क्यूबकी ओर देखकर मेरी ओर देखा. इतनी ग़मग़ीनीमे भी मेरे होटों पर बरबस हल्कीसी मुस्कराहट आ गई. उनके मूक प्रश्नक उत्तर देते हुए मैंने कहा,
“हमेशा की तरह. अब तक तो मुझे डायबिटीज नहीं हुआ.”
धम्मा दादाके चहेरे पर भी हल्कीसी मुस्कराहट आ गयी. उन्होंने तीन शुगर क्यूब डाले और फिर चम्मच से घोलने लगे.
“इतनी मीठी चाय पीते रहोगे तो तुम्हे बहोत जल्द डायबिटीज हो जाएगा.” एक बार उसने कहा था.
“लगी शर्त? मुझे डायबिटीज नहीं होगा.” मैंने उसे जवाब दिया था.
धम्मा दादा भी मेरे साथ जुड़ गए थे. चायमें शक्कर घोलते घोलते बोल उठे थे,
“जो ज्यादा मीठा पसंद करते हैं, उनकी ज़बानभी मीठी होती है.”
मैंने ताली बजाकर कहा था, “वाह धम्मा दादा. सही समय पर सही डायलाग.”
“सिर्फ ज़बान ही नहीं, होंठ भी मीठे होंगे.” धम्मा दादाके वहांसे जाने के बाद बड़े ही मोहक अंदाजमें उसने कहा था
उसकी बात सुनकर मैं चौंक गया था.
“आई एन्वी योर वाइफ. जलती हूँ मैं तुम्हारी बिवीसे.” बड़ी ही बेबाकी से उसने कहा था. उसकी बात सुनकर मेरे हाथ से चाय का कप छूटते छूटते रहे गया था.
तभी धम्मा दादाकी आवाज़ने मुझे वापस वर्त्तमान के साथ जोड़ा.
“वैसे तो बड़ी ही खुश मिजाज़ थीं! भावनाओंका दरिया थीं वो. उसमे जब उफान आता था तब बेकाबू हो जाती थीं वो. उसके जीवन में शायद आप अकेलेही ऐसे इंसान थे जो उसके इस उफान को समज पाते थे और शांत भी कर पाते थे.”
तभी ड्राइंग रूम में पड़े लैंड लाइन फोनकी रिंग बजने लगी. मेरा ध्यान उस फ़ोन की ओर गया. वही पुराना कार्डलेस फ़ोन जो उस जमानेमे लेटेस्ट माना जाता था. धम्मा दादाने फ़ोन रिसीव किया और कुछ बात करके मेरे हाथमें कार्डलेस रिसीवर देते हुए कहा,
“दिल्लीसे साहबके फ़ोन है.”
मैंने रिसीवर हाथमे लेते हुए सोचा, “तकरीबन सत्रह साल बाद अर्नोबसे बात करूँगा. वो भी इस गमगीनी के माहौल में.”
हमदोनोकी बातचीतका प्रारम्भका विषय मन्दाकिनिकी अकाल मृत्यु ही रहा. संवेदनाकेँ शब्दोंके आदान प्रदानके बाद उसने मुजसे कहाकि मंदाकिनीने मेरे लिए एक लैपटॉप ख़रीदा था जिसे मेरे ठहरनेवाले कमरेमे रखवा दिया गया है. उसमे उसीने कुछ वीडियोभी लोड किये है जो सिर्फ मेरे देखने के लिए है. उसकी बात सुनते सुनते मुझे अजीब लग रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे एक पति अपनी स्वर्गवासी पत्नीके प्रेमीसे उसकी आखरी ख्वाहिशें बयां कर रहा हो. मानो पत्नी पत्नी न रहकर पतिके खास दोस्तकी प्रेमीकाकी भूमिका अदा कर रही हो. वास्तवमे अर्नोब मेरे चन्द अत्यंत करीबी दोस्तोंमेंसे एक रहा है. मैं कभीभी उसकी पत्नीके जीवनमे दूसरा आदमी नहीं बनना चाहता था. आज जब वो जीवन त्याग चुकी थी तब हम दोनोके हृदयमे अति तीव्र वेदना थी. यह एक अलग बात थी की मेरे पास मेरा खुशहाल परिवार था जिसमे मेरी पत्नी और दो बच्चे थे, एक लड़की और एक लड़का. फिरभी मैं इस बातसे इंकार नहीं कर सकता था कि मंदाकिनीने बड़ी ही ख़ास जगह बनाली थी मेरे दिल में और दिमाग में भी. अचानक मेरे मनमे अर्नोबसे मिलाने की तीव्र इच्छा जाग उठी. मैंने अर्नोबसे पूछा कि वो कब आने वाला है तो उसने बताया कि अगले डेढ़ महीने तक तो वो नहीं आ सकता क्योंकि उसे विदेश मंत्रीके साथ सात देशोंकी यात्रा पर जाना है और बादमे यूनाइटेड नेशन्समें होनेवाली विदेश मंत्रियोंकी आंतर राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंसमे हिस्सा लेनेके लिए अमेरिका जाना है. जब भी हो सके तब जल्द ही मिलेंगे और हप्ते में एक दो बार टेलीफोन पर बात कर लेंगे ऐसे वादेके साथ हमारा टेलीफोनिक संवाद पूरा हुआ.
अर्नोब इन दिनों केंद्र सरकारके विदेश मंत्रालयम डेपुटेशन पर था. उसकी व्यस्तता मैं समझ सकता था. उसके पास उसकी बिवीके मरनेका मातम मनानेका भी समय नहीं था.
धम्मा दादाने मेरा सामान अतिथि कक्षमे लगा दिया था. स्नानादि करके मैंने अपने कपडे बदले और अपना सामान रखने के लिए अलमारी खोली. अल्मारीमे बड़े सलीके से सिल्वर कलरका नया लैपटॉप रखा हुआ था. अचानक कमरेमे एक विशिष्ट खुशबु फ़ैल गई. ये खुश्बूसे मैं अच्छी तरहसे परिचित था. यह खुशबु उसके पसंदीदा फ्रेंच परफ्यूम चेनल ५ की थी. मुझे अचानक उसकी मौजूदगीका अहेसास हुआ. क्या ऐसा हो सकता है? मैं सोच में पद गया. मैंने लैपटॉप हाथमे लिया और राइटिंग टेबल पर रखा. अचानक मुझे ऐसा अहेसास हुआ जैसे मैं लैपटॉप उसके हाथ से ले रहा हूँ. मैंने लैपटॉपका पावर सप्लाई केबल इलेक्ट्रिक सॉकेट में प्लग किया और स्विच ऑन की. बादमे लैपटॉप खोल उसे भी टर्न ऑन किया.
तभी दरवाज़े पर धम्मा दादाने दस्तक दिए. वो मेरे लिए मेरा पसंदीदा ड्रीन्क, सोडा और आइस बकेट लेकर आये थे. अचानक उन्होंने लंबी सांस ली और बोले,
“वो यहीं पर है. ये उन्हीके पसंदीदा इत्र की खुशबू है.”
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