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तुम्हारी कहानी : ५
कुछ देर मैं मॉनिटरकी ओर देखता रहा. मेरे मनमे विचारोंका बवंडर उठा था.उसके बात करनेके अन्दाज़से और जिस तरहसे उसने मेरे लिखनेके लिए सारा इंतज़ाम कियाथा उसे देखकर ऐसा कतई नहीं लग रहा था कि वो किसी परेशानीमे से गुज़र रही हो और उसने अपना जीवन समाप्त करनेका निर्णय लिया हो. सबकुछ उसने बड़े सलीके से किया था. रात्रीके भोजनके बाद मैं थोड़ी देर सो गया. सुबह तीन बजे मेरे मोबाइलका अलार्म बज ओर मैं बिस्तरसे बाहर आ गया. धम्मा दादाको मैंने बता दिया था कि मैं सुबह तीन बजे उठाकर लिखने बैठूंगा. जब तक मैं स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त हुआ धम्मा दादाने मेरे लिए चाय बना दी थी. चाय के साथ साथ वो अगरबत्तीका एक पैकेट भी लेकर आये थे. कहनेकी आवश्यकता नहीं कि अगरबत्तीका इंतज़ाम भी वही करके गयी थी क्योंकि वो जानती थी कि रोज़ लिखनेका काम प्रारम्भ करनेसे पहले मैं दो अगरबत्ती श्री सरवती माताजीके नामसे प्रकटा दिया करता था.
माँ सरस्वती देवीकी वंदनाके बाद मैंने चाय पी और मंदाकिनीके दिए हुए लैपटॉप पर लिखना प्रारम्भ किया.
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तकरीबन बीस साल बीत चुके है अब. उन दिनों मैं जंगल और आदिवासी जीवनशैलीकी पार्श्वभूमि पर फिल्म बना रहा था. इस इलाकेमें विकसीत शहरों, पहाड़ियां, नदियां और जंगलोंका एक अद्बुत समन्वय रहा है. अरनॉबसे मेरी मुलाकात उन दिनोमे हुई थी जब मैं मेरी फिल्म के लिए पट – कथा और संवाद लीख रहा था. अरनॉब दासगुप्ता उस समय राज नगर जिलेके डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट थे. हमारी मुलाकात एक सांस्कृतिक कार्यक्रममे हुई थी. जब उन्हें ये ज्ञात हुआ कि मैं उनके डिस्ट्रिक्टमे अपनी अगली फिल्म का शूटिंग करने वाला हूँ तब उन्होंने बड़ी गर्मजोशीसे मेरा स्वागत किया और हर संभव सुविधा देनेका वादा किया. पट-कथा और संवाद लिखनेके सीलसिलेमे तीन चार महीने तक वहां आना जाना होता रहा. वो जगह मुझे व्यक्तिगत रूप से बहोत पसंद आ गयी थी. मुझे अक्सर प्राकृतिक सान्निध्यमें बैठकर लिखनेकी आदत थी. कई बार मैं कार लेकर जंगलों और पहाड़ियोंमे या किसी नदीके किनारे पहोंच जाता और खुले आसमान के निचे बैठ कर अपनी कल्पनाओंको शब्दोंमें उतारता. मेरी इस प्रकृतिको निसर्गकी गोदमे बसा हुआ राज नगर रास आ गया था. मैंने मन ही मन ये तय कर लिया था कि भविष्यमे भी मैं यही पर आ कर अपनी दूसरी फिल्मोके लिए भी लिखूंगा.
राज नगरको स्वतन्त्र डिस्ट्रिक्ट बने उस समय चार या पांच साल ही हुए थे और उसके सर्वांगी विकास तथा प्रवासन प्रचारके लिए अरनॉब अथाह महेनत कर रहे थे. उन्हें खुदको इस विस्तार और शहरसे इतना लगाव हो गया था कि उन्होंने अपना निजी मकान इसी शहरके थोड़े बाहरी विस्तारमे बना लिया था. हमारी बातचीतके दौरान मुझे यह ज्ञात हुआ कि उनकी पत्नी श्रीमती मंदाकिनी दासगुप्ता इसी विस्तारमे बतौर फारेस्ट अफसर नियुक्त हुई थी और इस क्षेत्रकी तमाम वन्य सृष्टि उनके अधिकार क्षेत्रमे थी.
एक दिन बातोंबातोमे अरनोबने मुझे बताया कि उनकी धर्म पत्नी मंदाकिनी मेरी बहोत मदद कर सकती है. उसके बाद वो अचानक चुप हो गया. अब तक हमारे बीच काफी घनिष्ठ दोस्ती हो चुकी थी. वो हमेशा अपनी बिवीके विषयमे ज्यादा कुछ कहनेसे कतराता था. जबकी मेरे पारिवारिक जीवनके बारेमे वो काफी कुछ जानता था. मैं समझने लगा था कि उसका दाम्पत्य जीवन शायद उतना खुशहाल नहीं है. आज जब उसने खुदने बात छेड़ी और फिर वो चुप हो गया तो मैंने भी उसे ज्यादा पूछना उचित नहीं समजा.
उन्ही दिनों राज नगर डिस्ट्रिक्टमे पर्यावरण सप्ताहका आयोजन किया गया.इत्तफाकसे दो साल पहले मैंने ‘पर्यावरण और वृक्ष’ विषय पर एक शार्ट फिल्म बनाई थी जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ था. पर्यावरण सप्ताहके आयोजनके अन्तर्गत होनेवाले विभिन्न कार्यक्रममे से एक मेरी फिल्मका प्रदर्शन भी था. इसका आयोजन वन विभागने किया था. स्वाभाविक रूप से इस कार्यक्रममें मुझे अतिथि विशेषके रूपमे निमंत्रित किया गया था. तब पहलीबार मेरी मन्दाकिनिसे मुलाक़ात हुई. हरे रंगकी साडीमे वो बहोत खूबसूरत लग रही थी. अपने भाषणमें उसने मेरी फिल्मकी बहोत तारीफ़ की. मंच पर अरनोबने मेरी उससे औपचारिक पहचान करवाई. हमारे बीच ज्यादा बात नहीं हो पायी क्योंकि वो स्वाभाविक रूप से अति व्यस्त थी.
दूसरे दिन अरनॉबका फ़ोन आया. रात्रि भोजके लिए उसने मुझे अपने घर आमंत्रित किया. मुझे ख़ुशी हुई क्योंकि मेरा परिवार मुम्बईमे रहता था और मैं अपने कामसे अक्सर घर से दूर रहा करता था. अधिकांश मेरा खाना पीना होटल और रेस्टोरेंटमें होता था. एक तरह हम फिल्मवालोंका जीवन जिप्सी या बनजारों जैसा होता है. हर किसीको रास नहीं भी आये. लेकिन जो इस व्यवसायमे आकंठ डूबे हुए है उनकी फ़ितरत जिप्सिनुमा होती है. मेंभी उसमे अपवाद नहीं रहा.मुझे खानाबदोशिकी ज़िन्दगीमे लुत्फ़ आता है. फिरभी कभी कभार घरके बने खानेकी इच्छा प्रबल हो जानाभी स्वाभाविक है. इसीलिए मैंने अरनॉबका न्योता सहर्ष स्वीकार किया लेकिन मज़ाक मजाकमें ये ज़रूर पूछ लिया कि क्या मंदाकिनीभी यही चाहती है? चंद पलोँकी ख़ामोशी के बाद उसने कहा कि ये न्योता उसीकी ओर से है.
शामको जब मैं उसके वहां जाने के लिए तैयार हो रहा था तब मुझे ये नहीं मालूम था कि विधाताने मेरे जीवनकी स्क्रिप्टमे बहोत ही दिलचस्प ट्विस्ट लिखा है. मैं मंदाकिनी नामके एक ऐसे सैलाबसे टकराने जा रहा था जो मेरे समूचे अस्तित्वको हिला कर रख देगा.
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हम दोनों खामोश थे. अरनोबकी कार उसके आवासकी ओर आगे बढ़ रही थी और बहादुरमेरी कार लेकर हमारे पीछे आ रहा था. हमारी पहेली मुलाकातके बाद अरनोबने मेरे रहनेकी व्यवस्था सरकारी सर्किट हाउसमें करवा दी थी. उसके बाद मैं जब भी राज नगर आता था, सर्किट हाउसमें ही ठहरता था. शामको जब अरनॉब मुझे लेनेके लिए आया तब हम दोनोके बीचमें कुछ बातें हुई. इस वक़्त मैं उसी के बारे में सोच रहा था.
“देखो आकाश, इससे पहले कि तुम मंदाकिनीसे मिलो उसके बारेमे मैं तुम्हे कुछ बातें बता देना चाहता हूँ. उसकी मनोदशा सामान्य नहीं है. यूँतो वह बहोत ही काबिल अफसर है. अपने काममे वो लाजवाब है. पर पर्सनल लाइफमें कभी कभी उसका व्यवहार अजीब सा हो जाता है. अपने आप पर उसका कोई कण्ट्रोल नहीं रहता. चीखती चिल्लाती है और कभी कभी हिंसक भी हो जाती है.” अरनोबने मुझे बताया था.
उसकी बात सुनकर मैं आश्चर्यचकित हो गया.
“तुम कहना क्या चाहते हो?” मैंने पूछा.
“यही कि समटाइम्स शी बिहेव्ज़ लाइक आ पैरानॉयड. एक तरह के पागलपन का दौरा पड़ता है उसे.” अरनोबने उत्तर दिया.
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