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तुम्हारी कहानी : ८

The Show Must Go On
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8 Chapter Jagran Junction

तुम्हारी कहानी : ८

[प्रकरण ७ के अन्तमे आपने पढ़ा: “एक्चुअली अचानक मुझे कल सुबह दिल्ली जाना हुआ है. हमारे डिस्ट्रिक्टके डेवलपमेंटके लिए उसे स्पेशल केटेगरीमें क्लासीफाय करनेके लिए मुख्या मंत्रीश्रीने खुद केंद्र सरकारसे सिफारिश की है. आज शामको ही दिल्लीसे फ़ोन आयाथा कि सम्बंधित मिनिस्ट्रीके सेक्रेटरीसे मिलकर जल्दसे जल्द हमारा केस उन्हें समजाया जाय और उनके गाइडेन्समें ही सारे डाक्यूमेंट्स तैयार किए जाय. ये बहोत अहम् बात है इसलिए मेरा खुदका वहां जाना अति आवश्यक है. चीफ मिनिस्टरके कार्यालयने कल दोपहर बारह बजेका मेरा अपॉइंटमेंट तय किया है. चीफ मिनिस्टरकी कॉन्स्टिट्यून्सी हमारे ही डिस्ट्रिक्टमे है इस लिए उसका महत्व ओर बढ़ जाता है.”
अरनोबकी बात मैं ध्यानसे सुन रहा था.
“ईसलिये सुबह चार बजेकी फ्लाइटसे मुझे दिल्लीके लिए रवाना होना है. रातको ढाई बजे मुझे घरसे ऐरपोर्टके लिए निकलना होगा. मन्नो, आई मीन मंदाकिनी, आज इसीलिए अपसेट हो गई थी. उसने तुम्हारे लिए बड़े उत्साहसे तुम्हारे लिए डिनरका आयोजन किया था और मेरा यूँ जाना हुआ.” अरनॉबने अपनी बात का समापन करना किया.] आगे पढ़िए…

तभी मंदाकिनी वहां आयी और उसने बताया कि बंगलेके बैकयार्ड में सब सजा दिया है. बंगलेके पीछे एक शेड बना हुआ था जिसके नीचे तीन टेबल लगे थे और हरेक टेबलके इर्दगिर्द चार चार कुर्सियां रखी गई थी. कुछ और कुर्सियां और टेबल सलीके से जमाके एक तरफ रखे गए थे. एक कोनेमे तंदूर था और साथ में एक गैसका चूल्हा भी था. वहीँ साथमे एक लंबा सर्विस काउंटर बना हुआ था. कुल मिलाकर चालीस पचास लोगोंकी छोटी सी पार्टी के लिए बहोत ही बढ़िया इंतज़ाम वहाँ पर था.

ड्रिंक लेते लेते मैंने मंदाकिनीको मेरी फिल्मकी पूरी कहानी सुनाई. बड़ी एकाग्रतासे उसने फिल्मकी कहानी को सुना. कहानी सुनने के दौरान वो एक कागज़ पर कुछ नोट्स भी बनाती गई. अरनॉबभी बीच बीचमें मंदाकिनीको सजेशन देता रहा.डिनर लेते वक़्त उसने कहा कि इस तरहसे अगर यहां फिल्म बनती है तो वो मुख्य मंत्रीजी से बात करके कुछ विशेष सहयोगकाभी आयोजन करनेकी कोशिश कर सकते है ताकि ईस आदिवासी विस्तारमे फिल्म उद्योग और प्रवासन उद्योगको बढ़ावा मिले. दिल्लीमे होनेवाली उसकी मीटिंगमे भी उसने विकासके ईस पहेलुका समावेश करनेका निर्णय कर लिया था. उनको देखकर मुझे अहेसास हुआकि जिस तरहसे ये पति पत्नी हर बातमे अपने विस्तारके विकासकी संभावनाए तलाशते है उसे देखते हुए यह अवश्य लगता है कि हमारे देश का भविष्य ऐसे अफसरोंके हाथमे मात्र सुरक्षित ही नहीं पर उज्जवल है.

जब हमने डिनर ख़तम किया तब रातके करीब डेढ़ बज रहे थे. अरनॉबने मुझसे कहाकि मेरे लिए उसने पहले माले पर उसके बेडरुमके पास ही गेस्ट रूम तैयार करावा लिया है. मेरे ड्राइवर बहादुरको तो धम्मा दादाने कबका खाना खिलाकर सुला दिया था. मेरे रुकनेके लिए की गयी सारी व्यवस्थासे धम्मा दादाने मुझे अवगत कराया. उनको धन्यवाद देकर ड्राइंगरूममें आकर मैं अरनॉबका इंतज़ार करने लगा. राह देखते देखते मेरी आंखोंमें नींद भरने लगी थी. लगभग आधे घंटे बाद अरनॉब तैयार होकर नीचे आया. गुल्लू पीछे पीछे उनका बैग लेकर आया.

“मन्नो सो गई है.” अरनॉब ने कहा.
“मैं समझ सकता हूँ.” मैंने कहा. वास्तवमे मेरी आँखें भी नींद से बोझील हो रही थी. देर रातका समय और उपरसे शराबका सुरूर. अरनॉबने मुझे सोनेके लिए कहा लेकिन मैंने उसके साथ चन्द क्षण और बिताना पसनद किया. तभी धम्मा दादा वहां चाय लेकर आये. मैंने भी अरनोबके साथ चाय पीकर अपने आपको थोड़ा सा जाग्रत करनेकी कोशिश की पर कुछ ज्यादा असर नहीं हुआ.

अरनोबके जाने के बाद मैं अपने रूम में गया. कमरेका ए.सी. चालू था इसलिए कमरेमें बहोत बढ़िया ठंडक थी. ठंडी हवाका स्पर्श होते ही मेरी आँखें फिरसे बंद होने लगी. अब निंदसे लडनेका मेरा कोई इरादा नहीं था इसलिए मैंने अपने आपको बिस्तरके हवाले कर दिया और नींदने अपनी मायावी चादरमे मुझे लपेट लिया.

निंदसे जागतेही मैंने अपनी कलाई पर बंधी घडी पर नज़र डाली. दिनके दो बज रहे थे. तुरंत मैं बिस्तरसे उठा और रूमसे अटैच्ड बाथरूममे गया. अपने चहेरे पर ठंडा पानी डालकर मैं पूरी तरहसे सतर्क हो गया. मुझे जल्द ही सर्किट हाउस जाना था क्योंकि मेरा सारा सामान वहां पड़ा था. बाथरूमसे बाहर आते ही मैं चौंक गया. निंदमे से जागने के बाद मैं पहलीबार अपने कमरेको ध्यानसे देख रहा था. मेरा सारा सामान मेरे कमरेमे आ चुका था. राइटिंग टेबल पर मेरा इलेक्ट्रॉनिक टाइपराइटर पड़ा था. बाजुमें मेरी सब फाइलें राखी गई थी. एक आकर्षक पेन स्टैंडमें मेरी पेन रखी हुई थी. मुझे यूँ लगा कि मैं खुद किसी दिलचस्प कहानीका किरदार बन गया हूँ और लिखनेवालेने कहानीको एक अनोखा मोड़ दीया है. तभी मुझे ये भी महसूस हुआ कि मेरे कमरेमे हलकी सी खुश्बु फ्रेंच परफ्यूम चैनल ५ की फैली हुई है. तभी मेरा ध्यान टाइपराइटर पर चिपकाये गए पिले रंगके छोटेसे कागजकी ओर गया, जिसे स्टिकी नोट कहते हैं. उसमे लिखा था,
“गुड मॉर्निंग. बेडके दाहिने बाजू इंटरकॉम है. १ नंबर मेरे कमरेका है, २ नंबर स्टाफ क्वार्टरका है. नंबर ४ मैन गेट सिक्योरिटीका, ५ ड्राइंगरूम और ६ बैकयार्डका है. ७ किचन, ८ स्टडी अर्थात अरनोबके इनहाउस कार्यालयका और ९ धम्म दादाके कमरेका है. 0 डायल करके कोईभी बाहरका नंबर डायल सकते हो.
लंचके लिए मैं वेइट करुँगी.
मन्नो ”
मैं सोचमे पड़ गया. ये क्या हो रहा था? क्या इसका मतलब ये था कि मुझे अब यहीं रहना है? मैंने ५ नंबर डायल किया. गुल्लूने फ़ोन उठाया जिसे मैंने चाय लाने को कहा और फिर मैं कपडे लेकर बाथरूममे चला गया.
जब मैं बाहर आया तब टेबल पर चायका ट्रे रखा हुआ था. चाय पीते पीते मैं जो कुछ भी हो रहा था उसके बारेमे सोचने लगा. तभी कमरेके दरवाज़े पर दस्तक हुए. मैंने अंदर आनेको कहा और दरवाज़ा खुला, उसके साथ ही पूरा कमर चैनल ५ की खुश्बु से महक उठा. एक दूसरेका अभिवादन करनेके बाद उसने कहा,
“आप सो रहे थे और मैं आपका सामान ले आयी. शायद आप नाराज़ हो मुझसे.” उसके होटों पर हल्कीसी मुस्कराहट और आवाज़में शरारत थी.
“नाराज़ नहीं, पर डरा हुआ हूँ मैं.” मैंने उसीकी तरह हल्केसे शरारत भरे अंदाजमें कहा.
“डरे हुए? वो क्यों?” उसने शरारती भोलेपनसे पूछा.
“क्योंकि ज़िन्दगीमे पहेली बार मेरा अपहरण हुआ है.” मैंने शरारतसे अपना चहेरा गंभीर बनाते हुए कहा. वो अपनी मुस्कराहट रोक नहीं पाई.
“क्या मैं ईस अपहरणकी वजह जान सकता हूँ?” मैंने मज़ाक मजाकमें ही पूरी परिस्थिति समझनेके हेतु उससे पूछा.
“क्योंकि आप एक बहोत ही दिलचस्प इनसान है.” उसने थोड़े नटखट अंदाजमें कहा.
“अरनॉब क्या सोचेगा?” मैंने गम्भीरताके साथ उसे पूछा.
“ये उसीका आईडिया है.” उसने जवाब दिया.
“मुझे सोता हुआ छोड़कर यूँ सर्किट हाउस से मेरा सामान ले आना?” मैंने पूछा.
“नहीं! उनका आईडिया आपको हमारे घर ठहरनेके लिए इनवाइट करनेका था. यूँ सामान ले आना मेरा आईडिया था.” उसने थोड़ा शर्माकर कहा.
“मुझे जगाना भी ज़रूरी नहीं समझा?” मैंने उसकी आँखमे देख कर धीमे से सवाल किया. मैं उसका मन भांपना चाहता था.
“क्योंकि मैं आपको अपना दोस्त मानने लगी थी.” बोलते बोलते उसकी आँखें बहने लगी. उसका यह प्रतिभाव मेरेलिए अनअपेक्षित था.
“और अब आप रो ईस लिए रही हैं कि मैं आपकी दोस्तीके काबिल नहीं. सही बात है?” मैं उसे रुलाना नहीं चाहता था. मैं अब तक ये बात समझ चुका था कि ये सन्नारी जो कि एक बहोत ही काबिल और सन्निष्ठ अफसर थी उसके अंदर एक जज़्बातोंसे लबालब भरी औरत छिपी हुई थी जिसे अपने आपको प्रदर्शित करने का मौका नहीं मिल रहा था.

“नहीं, मैं महसूस कर रही हूँ कि मैं आपकी नज़रोंमें आपकी दोस्तीके काबिल नहीं.” उसने सिसकते हुए कहा. उसकी आंखोंसे सावन भादों बह रहे थे.
कल रात जो कुछभी हुआ था उससे मुझे यही लगा था कि ये एक ऐसी औरत है जिसके अंदर अब भी बचपन ज़िंदा है. मैं उसे वाकई पसंद करने लगा था. मैंने उसकी ओर अपना हाथ बढ़ाया और कहा,
“मंदाकिनीजी, क्या आप मुझसे दोस्ती करेंगी?”
मैंने जैसा सोचा था वैसाही उसने किया. अपनी नज़र दूसरी ओर घुमा ली और फिर कहा,
“आकाशजी, मंदाकिनीजी दोस्तिजीमे तकल्लुफ्जी पसन्दजी नहीजी करतीजी.”
“मंदाकिनी, मुझसे दोस्ती करोगी?” मैंने मुस्कुराते हुए उसे फिरसे पूछा.
उसने वापस अपना खूबसूरत चहेरा मेरी ओर घुमाया और मेरी आँखें उसकी आंखोंसे मिली. उसके होठों पर हल्कीसी मुस्कान थी पर आँखों में संवेदनाओं का सागर उमड़ रहा था. उसी क्षण मुझे अहेसास हुआ कि उसके साथ दोस्ती को दोस्तीके दायरे तक सिमित रखना बहोत मुश्किल होगा. वो संवेदनाका ऐसा उफान अपनेआपमे संजोये हुए बैठी थी जिसे बहने के लिए रास्ता और वजह चाहिए थे. वो रास्ता, वो वजह उसे मुझमे दिख रहे थे. अगर इसे मैं सम्हाल नहीं पाता तो एक साथ बहोत सारी ज़िन्दगियाँ तबाह हो सकती थी. लेकिन अब मैं खुद दोस्ती के लिए हाथ बढ़ा चुका था. उसने धीरे से अपना हाथ उठाया और मेरा हाथ थाम लीया.


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