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सालगिरह का दुआओं से लबरेज़ तोहफ़ा…

Firdaus Diary
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पिछली एक जून को हमारी सालगिरह थी…उस रोज़ हम अपने घर में थे…अपनी अम्मी, भाइयों, भाभी, बहन और दीगर रिश्तेदारों के साथ…जब हम घर होते हैं, तब इंटरनेट से दूर ही रहना पसंद करते हैं…आख़िर कुछ वक़्त घरवालों के लिए भी तो होना ही चाहिए न…


हमें सालगिरह की आप सबकी ढेर सारी शुभकामनाएं मिलीं…हमारा फ़ेसबुक का मैसेज बॉक्स आप सबकी दुआओं से भरा हुआ था…इसी तरह हमारे मेल के इनबॉक्स भी दुआओं से लबरेज़ थे… सच कितना अपनापन है यहां भी…कौन क़ुर्बान न हो जाए इस ख़ुलूस और मुहब्बत पर…यही तो सरमाया हुआ करता है उम्रभर का…जिसे हम हमेशा संभाल कर रख लेना चाहते हैं अपनी यादों में…


हर साल हमें सालगिरह के तोहफ़े में कुछ न कुछ ऐसा ज़रूर मिलता है, जो हमारी उम्र का सरमाया बन जाता है…इस बार भी ऐसा एक तोहफ़ा मिला, जो आज से पहले शायद ही किसी भाई ने अपनी बहन को दिया हो… यह अल्लाह का हम पर बहुत बड़ा करम रहा है कि हमें भाई बहुत अच्छे मिले…वो सगे भाई हों या फिर मुंहबोले भाई… हम जिस तोहफ़े का ज़िक्र कर रहे हैं, वो हमें दिया है हमारे मुंहबोले भाई मन्नान रज़ा रिज़वी ने…मन्नान हमें बहुत अज़ीज़ हैं…यह तोहफ़ा दुआओं से लबरेज़ एक नज़्म की सूरत में है…जिसे पढ़कर अहसास हुआ कि किस तरह मुहब्बत ज़र्रे को भी आफ़ताब बना देती है…हमारे भाई मन्नान ने भी तो यही सब किया है…हमें अर्श से उठाकर आसमां की बुलंदियों पर पहुंचा दिया है…


मन्नान से क्या कहें…? हमारे जज़्बात के आगे अल्फ़ाज़ भी कम पड़ गए हैं… एक दुआ है कि अल्लाह हमारे भाई को हमेशा सलामत और ख़ुश रखे…और ऐसा भाई दुनिया की हर बहन को मिले…आमीन…

हम अपने भाई का ख़त और नज़्म पोस्ट कर रहे हैं…

ख़त

अस्सलामु अलैकुम व  रहमतुल्लाही व बरकतुह

उम्मीद है मिज़ाज अक़द्दस बख़ैर होंगे… आपकी ख़ैरियत ख़ुदावंद करीम से नेक मतलूब है…

प्यारी बाजी… आपके योम-ए-पैदाइश के मौक़े पर हम क़लब की इन्तहाई गहराइयों से आपको मुबारकबाद पेश करते हैं…हमारी दुआ है कि  ये दिन आपकी ज़िन्दगी में हर बार नई ख़ुशियों के साथ आए…

ख़ुदा आपके तमाम मक़ासिद हक़ा में कामयाबी अता करते हुए आपकी मसरूफ़ियत में कमी और मक़बूलियत में इज़ाफ़ा फ़रमाये… और हमेशा नज़र-ए-बद से महफ़ूज़ रखे…आमीन…

फ़क़्त ख़ैर अंदेश

मन्नान रज़ा रिज़वी

नज़्म

बयां हो अज़म आख़िर किस तरह से आपका फ़िरदौस

क़लम की जान हैं, फ़ख्र-ए-सहाफ़त साहिबा फ़िरदौस

शुक्रिया फ़िरदौस बेहद शुक्रिया फ़िरदौस…

सहाफ़त के जज़ीरे से ये वो शहज़ादी आई है

मिली हर लफ़्ज़ को जिसके मुहब्बत की गवाही है

हर एक तहरीर पे जिनकी फ़साहत नाज़ करती है

सहाफ़त पर वो और उन पर सहाफ़त नाज़ करती है

वो हैं शहज़ादी-ए-अल्फ़ाज़ यानी साहिबा फ़िरदौस

शुक्रिया फ़िरदौस बेहद शुक्रिया फ़िरदौस…

क़लम जब भी उठा हक़ व सदाक़त की ज़बां बनकर

बयान फिर राज़ दुनिया के किए राज़दां बनकर

मियान-ए-हक़ व बातिल फ़र्क़ यूं वाज़ा किया तुमने

तकल्लुफ़ बर तरफ़ क़ातिल को है क़ातिल लिखा तुमने

तेरा हर लफ़्ज़ बातिल के लिए है आईना फ़िरदौस

शुक्रिया फ़िरदौस बेहद शुक्रिया फ़िरदौस…

कभी मज़मून में पिन्हा किया है दर्दे-मिल्लत को

कभी अल्फ़ाज़ का जामा दिया अंदाज़-ए-उल्फ़त को

यक़ीं महकम, अमल पैहम, मुहब्बत फ़ातहा आलम

सफ़र इस सिम्त में जारी रहा है आपका हर दम

अदा हक़ सहाफ़त आपने यूं है किया फ़िरदौस

शुक्रिया फ़िरदौस बेहद शुक्रिया फ़िरदौस…

हर इक लब रहे जारी कुछ ऐसा साज़ बन जाए

ख़िलाफ़-ए-ज़ुल्म तुम मज़लूम की आवाज़ बन जाओ

हों चर्चे हर ज़बां पर आम इक दिन तेरी शौहरत के

हर  इक तहरीर मरहम सी लगे ज़ख्मों पे मिल्लत के

तुम्हारे हक़ में करते हैं अनस ये ही दुआ फ़िरदौस

शुक्रिया फ़िरदौस बेहद शुक्रिया फ़िरदौस…

-मन्नान रज़ा रिज़वी

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