Posted On: 23 Oct, 2016 Others में
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शहर की ऊंची दीवारों में कैद हो गया मेरा बचपन,
चिमनी भट्टी,शोर-शराबा कैंटीन में चौका बरतन ।।
दिनभर सारा काम करुं तो खाने भर को मिलजाता है,
कुछ पैसे मैं रख लेता हूँ कुछ मेरे घर भी जाता है।।
फटे हुए कपड़े मुन्नी के मां को नहीं दवाई मिलती
अपना भी तन मैं ढक पाऊँ इतनी कहाँ कमाई मिलती?
दिन-रात मैं मेहनत करता फिर भी पैसों की है तरसन,
शहर की ऊंची दीवारों में कैद हो गया मेरा बचपन।।
-अभिषेक शुक्ल
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