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योग्यता या आरक्षण?

वंदे मातरम्
वंदे मातरम्
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एक बात कहूँ मुझे बहुत गर्व है कि मैं एक ऐसे परिवार से आता हूँ जहाँ आरक्षण की मांग नहीं होती।
एक ऐसे परिवार का हिस्सा हूँ जहाँ ये सिखाया जाता है कि तुम इस योग्य बनो कि तुम्हारा जीवन औरों के लिए प्रेरणा बने न की सरकार के अनुग्रह पर पलने के लिए तुम्हें विवश होना पड़े।
अगर मुझमे सामर्थ्य होगा तो मैं बिना आरक्षण के भी उच्च संवैधानिक पदों पर जा सकता हूँ और अगर योग्यता नहीं होगी तो सड़क तो सबको जगह दे देती है..सड़क पर झाड़ू भी लगा सकता हूँ। ये दुनिया सिर्फ उनके लिए हैं जो सही वक्त आने पर वातानुकूलित भवनों में भी रह सकते हैं और बुरा वक्त आने पर फूटपाथ पर सो भी सकते हैं।
(मेरा परिवार पूरा भारत वर्ष है और वे सभी मेरे परिवार के सदस्य हैं जिन्हें आगे बढ़ने के लिए किसी सहारे की ज़रूरत नहीं है…चाहे वे किसी भी वर्ग के, जाति के धर्म के या संप्रदाय के लोग हों )
भारत दुर्दशा के पीछे केवल एक कारण है कि यहाँ के लोग दयनीय,असहाय, पीड़ित बनने के लिए आतुर रहते हैं। समर्थ बनने के लिए कोई प्रयत्न नहीं करते हैं।समर्थ बनने की कोशिश करते तो आरक्षण की मांग कभी नहीं करते। बना बनाया सब कुछ मिल जाये तभी जीवन की सार्थकता है।
जितना बाँट सकते हो खुद को बाँट लो। ये जातियों में बंटे लोग जब देश या धर्म की बात करते हैं तो इन्हें गाली देने का मन करता है। क्या देशभक्ति करेंगे ये जब देश और धर्म दोनों को टुकड़ों में बाँट रहे हैं।
एक बात मेरे समझ में आज तक नहीं आई कि व्यक्ति पिछड़ा होता है या जाति? मुझे तो नहीं लगता कि सारे ब्राम्हण और क्षत्रिय अरबपति हैं। मैंने तो दोनों को दरिद्र ही देखा है।
मेरे कुछ मित्र हैं जो तथाकथित पिछड़े समुदाय से हैं पर अपने मेहनत और लगन से सबको पीछे छोड़ा है और आरक्षण के सख़्त खिलाफ हैं। मेरे बहुत प्रिय और बड़े भाई जैसा स्नेह देने वाले दीपक भइया जो विधिविभाग जे.एन.यू. से रिसर्च स्कॉलर हैं और जे.आर.एफ़ क्वालिफाइड भी हैं कहते हैं कि -“आरक्षण जातिगत आधार पे नहीं आर्थिक आधार पर होनी चाहिए क्योंकि गरीबी जाति देख कर नहीं आती।”
एक अनुरोध आप सबसे है। आप चाहे जिस किसी भी वर्ग के हों,जाति के हों, समुदाय के हों या धर्म के हों कृपया भारतीय बन जाएं। योग्य बनें। हमसे बाद में आज़ाद होने वाला राष्ट्र चीन आज अमेरिका से आगे जाने की कतार में खड़ा है। हमें बहुत पीछे छोड़ दिया है क्योंकि हम इसी लायक हैं।
इस देश में धरना आरक्षण,वेतन और धर्म और सम्प्रदाय के लिए दिया जाता है पर राष्ट्र के लिए, भ्रष्टाचार के लिए,गरीबी और भुखमरी से मरते लोगों के लिए, सुरक्षा के लिए, कश्मीर के लिए, जो सैनिक रोज़ सीमाओं पर शहीद होते हैं पाकिस्तान की गोलियों से उनके लिए,अलगाववादी गतिविधियों पर सरकार की असमर्थता के लिए इन सब के लिए कभी कोई धरना, कोई आंदोलन नहीं किया जाता क्योंकि भारतीय स्वाभाव से ही स्वार्थी होते हैं…यहाँ का का दर्शन है- अपना काम बनता भाड़ में जाये जनता।
घिन आती है इस मानसिकता पर। अब तो बदलो…कब तक जातियों में, धर्मों में विभक्त रहोगे..एक हो जाओ नहीं तो पहले भी आपसी फूट का फायदा दुनिया ने उठाया है और आज भी दुनिया की नियत में कोई परिवर्तन नहीं आया है।

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