Menu
blogid : 14028 postid : 660638

अज्ञात

वंदे मातरम्
वंदे मातरम्
  • 101 Posts
  • 238 Comments

प्रिय तुम मधु हो जीवन की,
तुम बिन कैसी मधुशाला?
जिसमे तुम न द्रवित हुए ,
किस काम की है ऐसी हाला?

तुम शब्द हो मेरे भावों के
तुम पर ही मैंने गीत लिखे,
तुमको सोचा तो जग सोचा,
और समर भूमि में प्रीत लिखे,

अवसाद तुम्ही, प्रमाद तुम्ही,
आशा और विश्वास तुम्ही ,
भावों के आपाधापी की
प्रशंसा और परिहास तुम्ही.

तुम्हे व्यक्त करूँ तो करूँ कैसे?
शब्द बड़े ही सीमित हैं,
किन भावों का उल्लेख करूँ?
जब भाव तुम्ही से निर्मित हैं.

तुम प्राण वायु तुम ही जीवन,
तुमको ही समर्पित तन-मन-धन,
जब -जब भी तुम शून्य हुए
जीवन कितना निर्जन-निर्जन?

तुम व्यक्त, अव्यक्त या निर्गुण हो,
इसका मुझको अनुमान नहीं,
मेरे बिन खोजे ही मिल जाना,
तुम बिन मेरी पहचान नहीं.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply