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“उत्तिष्ठ जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत”

वंदे मातरम्
वंदे मातरम्
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जीवन के कई रहस्य विपद के गर्भ मेँ होते हैँ। उनका होना या न होना सब भविष्य के कपाट मेँ बंद होता है, हाँ अपने भविष्य मेँ झाँकने की इच्छा सबकी होती है मेरी भी है। दर्शक हूँ कुछ आयोजन नहीँ करुँगा क्योँकि दर्शक दीर्घा मेँ बैठने की एक बड़ी कीमत चुकायी है, आयोजन करुँ भी तो क्योँ करुँ? प्रसंगिकता क्या होगी मेरे यत्न की? पूर्वजोँ के सम्मिलित स्वर रहे हैँ-” विपद के लिए आयोजन कैसा?”
जो हो रहा है उसे होने दो कोई आयोजन मत करो। दूसरोँ पर न सही पर अपने पर विश्वास करो। यदि परमशक्ति की सत्ता है तो तुम भी सर्मथ हो, कोई ऐसी बाधा नहीँ है जिसे मानव पार न कर सके। अवरोध आते हैँ पथ कितना भी सरल क्यो न हो; कभी छलाँग लगाना पड़ता है तो कभी राहेँ बनानी पड़ती हैँ। विपरीत परिस्थितियोँ मेँ भी जो अड़िग रहता है वही वीर है और ये दुनिया वीरोँ की है, वीर बनने के लिए यदि कभी कायर भी होना पड़े तो हो जाओ, भगवान राम ने भी कायरता को हथियार बनाया था और भगवान कृष्ण ने भी फिर हम तो सामान्य मानव हैँ, कायर बनने मेँ क्या हर्ज है।
विजेता बनना अनिवार्य है चाहे आप को विजय रण छोड़ कर मिली हो या लड़कर। विजेता का बस वर्तमान होता है, उसके अतीत को कोई नहीँ कुरेदता। हाँ!, कुछ लोग होते हैँ जिनका काम ही होता है इधर-उधर झाँकना, पर उनकी ताक-झांक बस रंगमंच के विदुषक के स्तर की होती है जो बस लोगोँ का दिल बहलाती है।

विजेता बनने का आयोजन मत करो बस यत्न करो, आयोजन वे करते हैँ जिन्हेँ बस जीवन को घसीटना होता है और यत्न वे करते हैँ जिन्हे नायक बनना होता है। लोग कहते हैँ कि मानव योनि विधाता की श्रेष्ठतम कृति है, फिर मानव होकर दु:ख कैसा-अवसाद कैसा? जीवन मेँ उतार-चढ़ाव आते हैँ। कभी-कभी तो सूर्य का रथ भी रुक जाता है, हर पथ पर विँध्य पर्वत अवरोध बन खड़ा है जिसे पार करना पड़ता है। आप मेँ दृढ़ इच्छा है तो चारोँ दिशाओँ मेँ आपके सहायतार्थ अगस्त्य ऋषि हैँ, जिनके एक आदेश से गिरिराज झुक जाते हैँ, और फिर कभी नहीँ उठते। आपके संकल्प ही अगस्त्य ऋषि हैँ और आप स्वयं सूर्य हैं, बाधाएं विंध्य पर्वत इनसे ऐसे पार पाइए की फिर कभी आपका मार्ग रोकने का साहस इनमे न रहे।
कीर्ति-अपकीर्ती, यश-अपयश तो जीवित होने के साक्ष्य हैँ इनसे कैसा व्यथित होना? , इन्हे ही तो हरा कर जीतना है। कुछ भी असाध्य नहीं है, ”जहाँ चाह है वहीँ राह है।” हमारे धर्म ग्रंथों में भी लिखा है- ”वीर भोग्या वसुंधरा” …लड़ो और जीतो.. दुनिया में ऐसी कोई शक्ति नहीं जो सत् संकल्पों के रास्ते में बाधा उत्पन्न कर पाये..जीवन का एक और सत्य- ”कभी कोई हारता या जीतता नहीं”, दोनों स्थितियां बस छडिक हैं..मज़ा लड़ाई में है हार या जीत में नहीं..जीवन के दो दशक मैंने देख लिए हैं थोड़ी सी समझ मुझमे अब आ गयी है, बस इस जिंदगी से इतना सीखा है कि, ” हारो तो हतोत्साहित न हो, और जीतो तो महत्वाकांक्षी न हो ”। परेशानियां परछाईं को भी न पता चले, गम को मुस्कराहट में दबाना सीखो, और खुशियां बिखेरने की कोशिश करो…मस्त रहो-व्यस्त रहो…खुशियों के खजाने की बस यही चाभी है.ढूंढना थोड़ा मुश्किल है पर नामुमकिन नहीं.

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