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धर्म,जाति,नस्ल और भाषा के आधार पर वोट मांगना असंवैधानिक :सुप्रीम कोर्ट

वंदे मातरम्
वंदे मातरम्
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सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार धर्म,जाति,नस्ल और भाषा के आधार पर वोट मांगना असंवैधानिक है. एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र में चुनाव धर्मनिरपेक्ष प्रक्रिया से होना चाहिए क्योंकि धार्मिक,जातीय,नस्लीय और भाषाई विविधता का गलत इस्तेमाल राजनीतिक पार्टियाँ अपने लाभ के लिए चुनावों में करती हैं .
धर्म व्यक्ति की व्यक्तिगत आस्था है जिसे लक्षित कर किसी भी पार्टी का इन अधारों पर वोट मांगना लोकतान्त्रिक प्रक्रिया का हिस्सा नहीं है.चुनाव सुधार के लिए गया यह फैसला यदि प्रवर्तनीय हो जाता है तो इससे भारतीय राजनीति को एक नयी दिशा मिलेगी .
इस फैसले के अनुसार अब किसी भी पार्टी या उस पार्टी के प्रत्याशी द्वारा यदि धर्म ,जाति,समुदाय,नस्ल और भाषा के आधार पर वोट माँगना असंवैधानिक होगा.
कोर्ट का यह निर्णय पहले से दायर इस विषय पर याचिकाओं की सुनवाई करने के बाद आया .
भारतीय न्यायपालिका के सामने धर्मनिरपेक्ष चुनाव की व्याख्या करना सबसे बड़ी चुनौती होती है.हिन्दू और मुस्लिम अतिवादियों के कारण किसी भी चुनाव में निरपेक्षता की स्थिति नहीं रहती. जनता भ्रम की अवस्था में रहती है किस ओर जाएँ?
सात सदस्यीय संविधान पीठ का फैसला भी ३ और 4 के विभाजन के साथ आया है. अल्पमत राय के अनुसार धर्म,जाति,नस्ल और भाषा के आधार पर वोट मांगना एक भ्रष्ट राजनीतिक गतिविधि है किन्तु इन विषयों पर होने वाले चिंतन पर जनता के साथ खड़े होने वाले वादे पर रोक लगाना अलोकतांत्रिक होगा.
इस आपत्ति के बाद भी सामाजिक और राजनीतिक संकीर्णता के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय बहुत आवश्यक था .
धार्मिक संकीर्णता को आधार बना कर राजनीतिक पार्टियों ने भारतीय समाज को वर्षों से बरगलाया है . धार्मिक आस्थाओं के केन्द्रों का राजनीतिकरण करने से धर्म और राजनीति दोनों भ्रष्ट हुए हैं .
सन १९९५ में न्यायपालिका के समक्ष पहली बार यह प्रश्न उठाया गया कि हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगना राजनीति में धर्म का इस्तेमाल क्यों नहीं है?
१९९५ में ही न्यायमूर्ति जे.एस.वर्मा की बेंच ने कहा था कि हिंदुत्व शब्द भारतीय जीवन पद्धति का प्रतिनिधित्व करती है .हिंदुत्व भारतीय जीवन शैली है जिसे केवल धर्म के चश्मे से नहीं देखा जा सकता .
धर्म और राजनीति विषयक नयी याचिकओं सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि १९९५ के पूर्व निर्णय पर विचार करने के बजाय नए सिरे से धर्म और राजनीति की व्याख्या की जाएगी.
यदि इस फैसले का क्रियान्वयन ठीक ढंग से हो जाता है तो प्रत्याशी ही अपने विरोधी पार्टी के प्रत्याशी के गतिविधियों पर नज़र रखेगा जिससे वह इलेक्शन कमीशन तक विरोधी की शिकायत पहुंचा सके.यह निःसंदेह स्वागत योग्य फैसला है.
भारतीय जनता को अब समझदार हो जाना चाहिए जिससे उनका इस्तेमाल राजनीतिक पार्टियाँ न कर सकें . जनता राजनीतिक पार्टियों की कठपुतली न बने और अपना मतदान स्वतंत्रता और निरपेक्षता के साथ करे जिससे लोकतंत्र को मजबूती मिले सके .

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