वंदे मातरम्
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हा! भारत! हा! जन-गण-मन!
क्यों दग्ध ह्रदय को लिए फिरे?
क्या प्रत्यंचाएं टूट गईं
या गाण्डीव रह गए धरे?
धिक! धिक! जन गण मन नायक!
क्यों पुनः यही आभास हुआ
होकर मदान्ध तुम नहुष हुए
फिर भारत का उपहास हुआ।।
क्यों शर फिर सीना तान रहा?
क्यों सिमटा मेरा वितान रहा?
क्यों सहानुभूति उपजे मन में
जिन पर वर्षों अभिमान रहा?
छोड़ो दुख का जाप्य जयद
लेकर निषंग रण में उतरो,
जो विपदाएँ आएं पथ में
बन महादेव कण-कण कुतरो।
-अभिषेक शुक्ल
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