Menu
blogid : 14028 postid : 20

मधुकर

वंदे मातरम्
वंदे मातरम्
  • 101 Posts
  • 238 Comments

मैंने देखा दिवा स्वप्न एक,
जाने कौन कहाँ से आया?
कुछ पल ही नयनों में ठहरा
फिर ओझल हो गया पराया.
कहाँ कोई यहाँ रुक पाता है?
धर्मशाला ये हृदय नहीं है,
बड़े बड़े वीर लौटें हैं
सहज तनिक भी विजय नहीं है.
मैं ठहरा एक रमता जोगी
पल पल बनता नया बसेरा
सफ़र में ही रातें कट जातीं
मेरे लिए क्या सांझ सवेरा?
जितने मधुकर दीखते जग में
सब मेरे अनुयायी हैं
जिन जिन राहों से मैं गुजरा,
सारे पथ दुखदायी हैं.
बहुत दिनों की दीर्घ यात्रा
कदम कदम पीड़ा में गुजरा,
कहाँ कहाँ मधु मैंने खोजा,
अब तो मधुवन को भी खतरा.
बहुत प्रसून मिले मझे पथ पर
भौरे किन्तु थे बहुत प्रबल,
प्रयत्नों से व्यथित हो उठा
प्रतिद्वंदी थे बहुत अटल.
आज फूलों ने मुझको घेरा,
अब मैं मधु ले आऊंगा,
कई मास कास्ट में बीते,
अब बैठे बैठे खाऊंगा.
मिल जाते सुन्दर प्रसून भी,
लगन रहे यदि पथ पर,
चाहे मैं जंगल में जाऊं,
मंडराता रहता कोई नभ पर.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply