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किताब और मैं

Wise Man's Folly!
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इस साल 10 मार्च को, यात्रा की शुरुआत इर्विंग स्टोन की ‘लस्ट फॉर लाइफ’ से की थी| डच चित्रकार विन्सेंट वान गोघ के जीवन पर आधारित इस किताब को पढ़कर वान गोघ से ज्यादा मुझे थिओ से प्यार हो गया| इसका कारण यह है कि मेरे जीवन में भी एक थिओ है, नहीं एक कहना सही नहीं होगा-तीन थिओ है वान गोघ निश्चित ही अनूठे थे, ऋषि थे। लेकिन थिओ के बिना कुछ भी संभव नहीं हो पाता| वान गोघ अगर वान गोघ बन पाए तो सिर्फ थिओ की वजह से| किताब पढ़ने के बाद से अपने थिओ के प्रति अथाह प्रेम से भर गया हूँ|
‘लस्ट फॉर लाइफ’ पढ़ने के तुरंत बाद ही इर्विंग की दूसरी किताब ‘एगोनी एंड एक्सटेसी’ मंगा ली थी। लेकिन किताब आने से पहले दोस्तोवस्की की ‘ब्रदर्स कर्माज़ोव’ शुरू कर दी।क़रीब 700 सौ पेज की इस किताब में दोस्तोवस्की ने मन के कई परतों को खोला है| यहाँ उनका एनालिसिस फ्रायड से भी गहरे जाता है।

 

 

किताब ख़त्म होते-होते एक नशा-सा चढ़ गया था,जो भी मिलता था उसी से किताब की बखान करने लगता था।कई दिनों तक खुमारी में डोलता रहा।आनन-फानन दोस्तोवस्की की तीन और किताब, द इडियट, क्राइम एंड पनिशमेंट, और नोट्स फ्रॉम अंडर ग्राउंड’ मंगा ली। दस दिन के भीतर सब पढ़ डाली, जहाँ ‘ब्रदर्स कर्माज़ोव’ मेरी ज़िन्दगी की सबसे बेहतरीन किताब बन गई, जिसे किसी ग्रंथ की तरह मैं सिरहाने रख कर सोता हूँ, वहीं ‘इडियट’ से मुझे प्यार हो गया। एक ऐसा प्यार जिसे ताउम्र नहीं भूल पाउँगा, किताब के सारे पात्र में संगी-साथी हो गए हैं, रोज़ जीवन के किसी-न-किसी मोड़ पर उनसे मुलाकात हो जाती है।प्रिंस में मुझे अपनी प्रतिछवि दिखती है, और अपना भविष्य भी।
जैसे बुखार में बाद मुंह का स्वाद ख़राब हो जाता है, वैसे ही दोस्तोवस्की को पढने के बाद काफी दिनों तक मुंह का स्वाद ख़राब रहा। कई किताब को पढ़ने के लिए उठाया, लेकिन जल्दी ही जी उचट जाता था। 20-25 पेज पढ़ कर रख देता था। मन को दोस्तोवस्की का स्वाद लग गया था, कुछ नया नीचे उतर ही नहीं रहा था। तीन दिन का ब्रेक लिया फिर बड़ी मुश्किल से, मन को काफी ठोक-पीट कर लियो तोल्स्तोय की ‘रेज़रेक्शन’ पढने के लिए राजी किया। बीस पेज के बाद ही, आगे पीछे क्या पढ़ा था सब भूल गया। दोस्तोवस्की का ख्याल दिन तो क्या कभी सपनो में भी नहीं आया। इससे पहले मैंने तोल्स्तोय की ‘ऐना केरेनिना’ पढ़ी थी, किताब अच्छी लगी थी। लेकिन फिर भी यह समझ नहीं आया था कि तोल्स्तोय में ऐसा क्या था कि गांधी उन्हें अपना गुरु मानते थे और ओशो ने उनकी तुलना ईसा मसीह से की थी? लेकिन ‘रेज़रेक्शन’ पढ़ने के बाद रहस्य पर से पर्दा हट गया। शब्दों से कागज़ पर आग लगाया है तोल्स्तोय ने। किताब पढ़ते हुए कम-से-कम बीस बार रोया, और हर बार मन-ही-मन तोल्स्तोय को प्रणाम किया।

 

इस बीच दो तीन छोटी-छोटी किताबें भी पढ़ी, ‘एट द फीट ऑफ़ मास्टर’, ‘तरकश’ और ‘गीतांजलि’। कृष्णमूर्ति की ‘एट द फीट ऑफ़ मास्टर’ पहले भी पढ़ी थी| लेकिन इस किताब को जितनी बार भी पढ़ी जाए कम है। किताब के बारे में कुछ कहना सूरज को दिया दिखाने जैसा है, साधक को इस किताब की ताबीज़ बना कर गले में पहन लेना चाहिए। 30 पेज की इस छोटी-सी किताब में समस्त उपनिषदों, वेदों और ग्रंथो का सार है।  ‘गीतांजलि’ इससे पहले हिंदी में पढ़ी थी, मजा नहीं आया था। लेकिन इस बार किताब के कई पृष्ट आंसू से गीले हो गए,
इधर चेखव और काफ्का की कुछ लघु कथाएँ भी पढ़ी। यह बड़े गजब की बात है कि रसिया के पांच धुरंधर लेखक ‘तोल्स्तोय, दोस्तोवस्की, तुर्गनेव, गोर्की और चेखव ना सिर्फ समसामयिक थे, बल्कि ये पांचो एक ही शहर में रहते थे, और पांचो दोस्त थे और इन पंचों के कामों में एक दूसरे का जिक्र आता है, समंदर की तरह इन पाँचों का स्वाद एक जैसा है-खारा। ये पांचो अलग-अलग दिशा से एक ही जगह पहुँचते हैं। आप को जो भी जच जाए, उनकी अंगुली पकड़ कर चल पड़िये।

‘रेज़रेक्शन’ के बाद जो मोटी किताब पढ़ी, वो थी हीरानंद सचिदानंद वात्स्यान ‘अज्ञेय’ की ‘नदी के द्वीप’। दोस्तोवस्की, कामू, तोल्स्तोय और चेखव को पढ़ते के बाद हमेशा भीतर एक कसक रहती थी कि अपने हिंदी में एक भी ऐसे लेखक नहीं हैं, जिनकी रचना को इनके समकक्ष रखा जा सकता है। लेकिन ‘नदी के द्वीप’ पढ़ने के बाद यह शिकायत दूर हो गई। हिंदी भाषा में मैंने अब तक इससे बेहतर कोई किताब नहीं पढ़ी है। और मैं मानता हूँ कि इससे बेहतर कोई किताब हो भी नहीं सकती है।अगर कोई होगी भी तो मैं उसे, बिना पढ़े ही, बेहतर मानाने से इंकार करता हूँ। ‘नदी के द्वीप’ पढ़ने के बाद नीत्शे की ‘बियॉन्ड गुड एंड ईविल’, और कृष्णमूर्ति की ‘फर्स्ट एंड लास्ट फ्रीडम’ पढ़ी, दोनों ही किताब के बारे में कोई कमेंट नहीं करूँगा ना तो मेरे पास उतने सुन्दर शब्द हैं, जिनसे उनके बारे में कुछ कह सकूँ, ना ही मेरी बौद्धिक सामर्थ इतनी है कि कोई टिप्पणी कर सकूँ, मैं दोनों बुद्ध पुरुषों के चरण जाता हूँ।

अपने एक लेखक मित्र से निधीश त्यागी की ‘तमन्ना तुम अब कहाँ हो’ के बारे में सुनने के बाद, इसे भी मंगा कर पढ़ी| किताब में कुछ भी ऐसा नहीं है, जिसके बारे कोई कमेंट किया जाए| हां किताब से एक गिफ्ट मिला ‘नैय्यार नूर’ जिन्हें आजकल सावन पर खूब सुन रहा हूँ|
अभी चार दिन पहले कामू की ‘द आउटसाइडर’ पढ़ी| अमेज़न पर जब इस किताब को ‘द आउटसाइडर’ नाम से सर्च कर रहा था, तो वहीं कामू की दूसरी किताब ‘द स्ट्रेंजर’ दिख गई। मैंने दोनों किताब आर्डर कर दी| जब किताब आया तो मैंने थोड़ा दुखी था कि इतनी पतली, कोई सौ पेज की, किताब का दाम 300 रुपया? खैर, सोचा कोई लेता नहीं होगा इसलिए दाम बढ़ा कर रखा है। आदतन किताब मिलते ही प्रथम पृष्ट पर हस्ताक्षर करके डेट लिख दिया। ‘द आउटसाइडर’ पढ़ने के बाद जब ‘द स्ट्रेंजर’ पढ़ने गया तो हैरान रह गया और सिर ठोक लिया| मूल किताब फ्रेंच में है, उसी का एक प्रकाशन ने ‘‘द आउटसाइडर’ नाम से अनुवादित किया था, और दूसरे ने ‘द स्ट्रेंजर’ नाम से। साइन कर देने की वजह से किताब वापिस भी नहीं कर सकता था। एक पूरा दिन दुखी रहा| फिर इस किताब के बारे में गीत चतुर्वेदी की संस्मरण याद आ गई कि कैसे उन्होंने यह किताब चोरी करके पढ़ी थी। सोचा साइन किया हुआ तो क्या हुआ, तीसरे पेज पर साइन हैं कौन चेक करेगा, किताब वापिस कर देता हूँ। लेकिन मन नहीं माना। चोरी पकड़े जाने के बाद गीत चतुर्वेदी जी के साथ क्या हुआ था, यह सोच कर, किताब वापिस करने का विचार तर्क कर दिया। ‘द आउटसाइडर’ के मार्सो, ‘द इडियट’ के प्रिंस और ‘फादर्स एंड संस’ के बज़ारोव को मैं किताब पढ़ने से बहुत पहले से जानता हूँ। ये सब किरदार मेरे लिए नए नहीं है। कामू को पढ़ने के बाद दोस्तोवस्की फिर से याद आ गए। दोस्तोवस्की की तरह कामू भी उसी दुनिया के लोग हैं, जिसे मैं ‘पागलों दुनिया कहता हूँ’। अभी दो दिन से आचार्य चतुरसेन की ‘वैशाली की नगरवधू’ पढ़ रहा हूँ| फिर से हिंदी के प्रेम में पड़ गया हूँ। कहीं-कहीं आचार्य भी उस दुनिया के क़रीब पहुँच जाते हैं| लेकिन जैसे ही मैं रीढ़ सीधी करके सजग होकर पढ़ने लगता हूँ, वे किसी और दिशा में चल देते हैं। इन दो महीने में अमेज़न से कोई 30 किताब मंगाई है। अगर सब सही गया तो इस साल के अंत तक 150 किताब पढने का इरादा है, देखिए कहाँ तक सफल हो पता हूँ।

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