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प्रोन्नति में आरक्षण – सामाजिक विषमता को बढ़ावा या दलित हित का ख्याल

जागरण जंक्शन फोरम
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प्रोन्नति में आरक्षण, यह एक ऐसा मसला है जो समय-समय पर अपनी मौजूदगी दर्ज करवाता रहा है। सितंबर 2012 में संसद में प्रोन्नति में आरक्षण से संबंधित बिल पेश किया गया। पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश से निकली यह आवाज इसी समय पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर सुनाई दी थी। यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने अनुसूचित जाति और जनजाति के कर्मचारियों को प्रमोशन में रिजर्वेशन देने का फैसला किया था लेकिन इस फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गैर-संवैधानिक बताकर नामंजूर कर दिया था। उसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया और इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रोन्नति में आरक्षण को संविधान के मूल आदर्शों के खिलाफ करार दिया था। लेकिन अब सरकार ने संविधान में ही संशोधन कर प्रोन्नति में आरक्षण को कानूनी जामा पहनाने की पूरी तैयारी कर लिया है। सरकार के इस कदम से यह बहस भी बहुत तेज हो गई है कि आखिर प्रोन्नति में आरक्षण देने से सामाजिक दृष्टिकोण से कोई फायदा होगा भी या फिर यह एक वर्ग विशेष के हितों को ध्यान में रखकर उठाया गया मात्र एक पॉलिटिकल स्टंट है।


प्रोन्नति में आरक्षण जैसे विधेयक का विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि अगर यह विधेयक कानून लागू हो गया तो इससे जन सामान्य की योग्यता का हनन ही होगा। पहले सरकारी नौकरियों में आरक्षण और उसके बाद प्रोन्नति में आरक्षण देने से सामाजिक असमानता का जन्म होगा जो किसी के लिए भी हित में नहीं है। इस विधेयक के विपक्ष में खड़े लोगों का स्पष्ट मत है कि इसे सामाजिक मुद्दा कहना बिलकुल गलत है क्योंकि इसका सीधा और एकमात्र संबंध सिर्फ राजनीतिक हित साधने से है। आज के समय की मांग है कि निष्पक्ष होकर कोई भी कदम उठाया जाए और यह तो किसी भी रूप में सामाजिक न्याय भी नहीं कहलाया जा सकता। वहीं प्रोन्नति में आरक्षण को एक ओछी राजनीतिक हरकत ठहराने वाले लोगों का यह भी मानना है कि जिस वर्ग के लोगों के हितों को ध्यान में रखकर इसे कानून बनाने की तैयारी की जा रही है यह उन लोगों के लिए भी लाभप्रद सिद्ध नहीं हो पाएगा क्योंकि प्रोन्नति में आरक्षण केवल उसी को व्यक्ति को ही मिल सकता है जो पहले से ही नौकरी कर रहा है। ऐसे में एक ही व्यक्ति को दो बार लाभ (नौकरी में आरक्षण और बाद में प्रोन्नति में आरक्षण) तो मिलेगा लेकिन दूसरे व्यक्ति को इससे कोई सहायता नहीं मिल पाएगी।


वहीं दूसरी ओर प्रोन्नति में आरक्षण जैसे कानून की पैरोकारी करने वालों का कहना है कि नि:संदेह दलित वर्ग के लोगों को नौकरियों में आरक्षण दिया गया है लेकिन नौकरी मिलने के बाद उनका सामाजिक स्तर बढ़ाने का प्रयास नहीं किया जाता। वह जिस स्थान पर होते हैं वहीं रह जाते हैं। नौकरी मिल जाने के बाद भी दलित और पिछड़े वर्ग के लोग अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाते। उन्हें उच्च ओहदों पर पहुंचने का अवसर प्राप्त नहीं हो पाता। प्रोन्नति में आरक्षण उनका हक है और यह उन्हें मिलना ही चाहिए।


उपरोक्त मुद्दे के दोनों पक्षों पर विचार करने के बाद निम्नलिखित प्रश्न हमारे सामने आते हैं जिनका जवाब ढूंढ़ना नितांत आवश्यक है, जैसे:


1. क्या प्रोन्नति में आरक्षण देने से वाकई समाज के पिछड़े वर्गों का कल्याण हो सकता है?

2. क्या यह आरक्षण संसदीय चुनाव से पहले दिखाई जाने वाली एक लॉलीपॉप के समान है, जिसकी सफलता बेहद संदेहास्पद है?

3. प्रोन्नति में आरक्षण देकर क्या हम सामाजिक विषमता को बढ़ावा नहीं दे रहे हैं?

4. क्या आरक्षण की वजह से योग्यता और समानता अपना अस्तित्व खो रहे हैं?


जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:


प्रोन्नति में आरक्षण – सामाजिक विषमता को बढ़ावा या दलित हित का ख्याल


आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।


नोट:1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हों तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “प्रोन्नति में आरक्षण” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व “प्रोन्नति में आरक्षण – Jagran Junction Forum लिख कर जारी कर सकते हैं।


2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक नयी कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।


धन्यवाद

जागरण जंक्शन परिवार


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