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अभी कुछ दिनों पूर्व भ्रष्टाचार के विरुद्ध सशक्त आंदोलन का नेतृत्व करने वाली टीम अन्ना के सदस्य व वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण से उनके ही चैम्बर में कुछ लोगों द्वारा मारपीट की गई। हमलवारों ने जवाब में यह आरोप लगाया कि प्रशांत भूषण कश्मीर में जनमत संग्रह की बात करके देशद्रोह को अंजाम दे रहे हैं। इसके कुछ ही समय पश्चात टीम अन्ना के एक अन्य सदस्य अरविंद केजरीवाल पर भी चप्पल फेंकने की घटना सामने आई। इस मामले में आरोपी का कहना था कि वह टीम अन्ना से कांग्रेस के विरोध में प्रचार करने के कारण क्षुब्ध था।
उपरोक्त घटनाओं के पूर्व भी अनेक ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें कई बार अपने विचार व्यक्त करने वालों को इसी तरह की प्रताड़ना का सामना करना पड़ा है। लेकिन इस तरह की घटनाओं ने कुछ ऐसे सवाल भी पैदा किए हैं जिन पर निरंतर बहस जारी है।
यह बहस अभिव्यक्ति की आजादी के पैरोकारों और उसे एक सीमा में बांधने के पक्षधरों के बीच है। बहस विरोध के तरीके पर भी है। यानि अभिव्यक्ति की आजादी की क्या कोई सीमा होनी चाहिए? हां तो क्या? और यदि कोई किसी की बात से असहमत हो तो वह अपना विरोध किस प्रकार दर्ज करवाए?
अभिव्यक्ति की पूर्ण आजादी के पक्षधर यह मानते हैं कि किसी को अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है और यही लोकतंत्र का मूल सिद्धांत भी है। इसमें यह नहीं देखना चाहिए कि कही गई बात किसे अच्छी लगती है और किसे बुरी। जबकि अभिव्यक्ति की मर्यादित आजादी के पक्षधर कहते हैं कि अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कुछ भी बोल देना कहीं से भी जायज नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कुछ लोग राष्ट्रद्रोह को बढ़ावा देते हैं या सामुदायिक/धार्मिक/जातीय वैमनस्य को फैलाते हैं।
इसी प्रकार मुखर अभिव्यक्ति के विरोध के तरीके को लेकर भी पक्ष और विपक्ष में अलग-अलग राय है। कुछ लोग मानते हैं कि यदि किसी को किसी अन्य व्यक्ति की बात से आपत्ति है तो इसका समाधान बातचीत और विचार-विमर्श से निकाला जाना लोकतंत्र को और मजबूत बनाता है और अभिव्यक्ति की आजादी को बाधित करने के लिए किसी भी प्रकार की हिंसा या बलप्रयोग असंगत और निंदनीय है। किंतु वहीं ऐसे भी लोग हैं जो किसी भी टिप्पणी को राष्ट्र और समाज के विरुद्ध बताकर बलपूर्वक रोकना अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं।
ऐसे हालात में कुछ जरूरी प्रश्न सामने आते हैं जिन पर चर्चा करना राष्ट्रहित में अनिवार्य है, जैसे:
1. अभिव्यक्ति की आजादी पर किसी प्रकार का प्रतिबंध कहां तक उचित है?
2. क्या अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर राष्ट्रद्रोही विचारों को प्रश्रय मिलता है?
3. क्या अभिव्यक्ति की आजादी को बाधित करने के लिए हिंसात्मक (शारीरिक, मौखिक) कृत्यों को जायज ठहराया जा सकता है?
जागरण जंक्शन इस बार के फोरम मेंअपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:
अभिव्यक्ति की कितनी आजादी?
आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।
नोट: 1.यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हों तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “अभिव्यक्ति की आजादी” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व अभिव्यक्ति की आजादी– Jagran JunctionForum लिख कर जारी करें।
2.पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक नयी कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।
धन्यवाद
जागरण जंक्शन परिवार
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