Menu
blogid : 4920 postid : 147

प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता – कांग्रेस आलाकमान या देश ?

जागरण जंक्शन फोरम
जागरण जंक्शन फोरम
  • 157 Posts
  • 2979 Comments

अभी हाल ही में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश के प्रबुद्ध संपादकों के साथ एक औपचारिक वार्ता आयोजित की थी. संवाद, जनतंत्र की बुनियादी शर्त है और इसकी अपेक्षा हर स्तर पर की जाती है, शायद यही सोचकर प्रधानमंत्री ने देश और जनता के सामने अपनी मटियामेट हो रही छवि को सुधारने की आशा में वरिष्ठ संपादकों के समक्ष अपनी बात रखने की सोची. वर्षों से तमाम संवेदनशील मुद्दों पर चुप्पी साधे रहे प्रधानमंत्री का यह प्रयास भी अपनी कोई छाप छोड़ने में नाकामयाब रहा. पहले की तरह अभी भी वे जनता से दूर, वास्तविकता से अनभिज्ञ ऐसे पदाधारी नजर आते हैं, जिनका संचालन कहीं और से हो रहा हो. देश के प्रति अपने दायित्व बोध को नकारते हुए उनका व्यक्तित्व जनता को अधिकाधिक रहस्यमयी लगने लगा है.


भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह गत कुछ वर्षों से कई आरोपों का सामना कर रहे हैं. इन आरोपों में सर्वप्रमुख है कि वे खुद तो ईमानदार हैं लेकिन राष्ट्र के तमाम संवेदनशील मसलों पर उनकी चुप्पी उन्हें बेईमान बना देती है. धीरे-धीरे पूरा देश ये भी मानने लगा है कि प्रधानमंत्री के पास स्वयं निर्णय लेने की सामर्थ्य नहीं है और वे एक रिमोट चालित रोबोट की भांति कांग्रेस आलाकमान द्वारा नियंत्रित व निर्देशित होते हैं.


पिछले कई वर्षों के दरमियान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कैबिनेट के कई मंत्री भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे, उन मंत्रियों सहित तमाम नौकरशाहों पर हजारों हजार करोड़ रुपए लूटने की बातें होती रहीं, लेकिन प्रधानमंत्री ने देश को कोई सफाई देने की जहमत नहीं उठाई. आखिरकार जब उच्चतम न्यायालय ने भ्रष्टाचार के मामलों को खुद ही संज्ञान में लिया तब कहीं जाकर प्रधानमंत्री चेते और कुछ मंत्रियों पर कार्यवाही कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली.


समस्या तब उठी जबकि उन पर इतने दिनों तक आंखें बंद कर सरकार चलाने की शिकायते आने लगीं. जनता उन्हें बेचारा, असहाय, लाचार और कमजोर यंत्र मानव समझने लगी जिसके अंदर खुद कोई निर्णय लेने की क्षमता ना हो.


प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के देखते-देखते अस्सी हजार करोड़ रुपए का राष्ट्रमंडल घोटाला हुआ, एक लाख 76 हजार करोड़ का टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला संपन्न हुआ, आदर्श सोसायटी घोटाले में नेताओं और अधिकारियों ने मिलकर करगिल के शहीदों की विधवाओं का हक मार लिया, दोषियों को संरक्षण दिया गया, तुष्टीकरण की नीतियों के तहत आतंकवादियों को पनाह दी जा रही है, अफजल गुरु व अजमल कसाब को फांसी देने की बजाय जेल में वीआईपी सुविधा दी जा रही है.


महंगाई के मुद्दे पर प्रधानमंत्री पूरे असहाय ही नजर आते हैं. सब्जियों और रोजमर्रा की चीजों के अलावा पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें आसमान पर पहुंच गई हैं, जिसके दूरगामी असर होते दिख रहे हैं. दागदार अधिकारी पीजे थॉमस को सीवीसी बनाने का प्रधानमंत्री का निर्णय भी संदेह के घेरे में आया और अभी हाल में भारत सरकार की वांटेड लोगों की सूची की वजह से भी किरकिरी हुई. पाकिस्तान को दी गई वांछितों की सूची में शामिल लोग भारत में ही पाए जा रहे हैं.


जिस वक्त पूरा देश घोटालों के आगोश में था, गांधीवादी अन्ना हजारे ने लोकपाल बिल की मांग को लेकर दिल्ली में अनिश्चितकालीन अनशन शुरू कर दिया. प्रधानमंत्री ने अनमने भाव से उनकी मांगें मानने का आश्वासन देकर प्रारूप समिति का गठन किया लेकिन उनके मंत्री अलग ही राग अलापते रहे और प्रधानमंत्री बेबस असहाय से चुपचाप बैठे रहे. बाबा रामदेव के आंदोलन के मामले में तो प्रधानमंत्री आरंभ से ही अनिर्णय की स्थिति में फंसे रहे इसलिए अचानक की गयी सरकारी कार्यवाही के कारण उनकी भारी किरकिरी हुई.


कुल मिलाकर उन्होंने राष्ट्र के सामने स्वयं के कृत्यों से अपनी अजीबोगरीब छवि पेश की है जिसके कुछ नमूने देखिए: एक ईमानदार बुद्धिजीवी किंतु कांग्रेस आलाकमान के प्रति प्रतिबद्ध व्यक्तित्व, एक रबर स्टांप, लाचार और आज्ञाकारी प्रधान आदि.


उपरोक्त को देखते राष्ट्र के समक्ष भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के विषय़ में कुछ संदेह उठते हैं यथा:


1.  भारत राष्ट्र या कांग्रेस की मुखिया सोनिया गांधी में से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की निष्ठा किसके प्रति है?

2.  क्या प्रधानमंत्री खुद कोई निर्णय लेने में सक्षम नहीं हैं?

3.  क्या प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कार्यकाल अब तक के सबसे लाचार व असमर्थ प्रधानमंत्री के कार्यकाल के रूप में जाना जाएगा?

4.  प्रधानमंत्री की त्वरित व विवेकयुक्त निर्णय लेने की अक्षमता क्या दर्शाती है?

5.  क्या प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कार्यशैली उनके रिमोट युक्त रोबोट होने के आरोप की पुष्टि करती है?


जागरणजंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से राष्ट्रहित और व्यापक जनहित केइसी मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है. इस बार का मुद्दा है:


प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता – कांग्रेस आलाकमान या देश !!


आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जारी कर सकते हैं.


नोट: 1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हों तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें. उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता – Jagran JunctionForum लिख कर जारी करें.

2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक नयी कैटगरी भी सृजित की गयी है. आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं.


धन्यवाद

जागरण जंक्शन परिवार


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh