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लिव इन रिलेशनशिप – सांस्कृतिक बदलाव या भटकाव

जागरण जंक्शन फोरम
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कुछ समय पहले पूर्व फ्लाइंग अफसर अंजलि गुप्ता और हाल ही में आईआईएम की छात्रा मालिनी मुर्मू ने लिव इन संबंधों से उत्पन्न तनाव के कारण आत्महत्या कर ली जिससे समाज में लिव इन संबंधों को लेकर एक नई बहस छिड़ चुकी है। भारतीय समाज में लिव इन रिलेशनशिप को लेकर मुखरता हाल के सालों में बढ़ी है। पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं में भी आर्थिक स्वावलंबन बढ़ने और समाज में उदारवादी विचारों को जगह मिलने से खासकर शहरी परिवेश में कई जोड़े बिना विवाह किए एक साथ जीवन व्यतीत कर रहे हैं और वे एक-दूसरे के सुख-दुख में बराबर के साझीदार भी बन रहे हैं। यही कारण है कि गत कुछ वर्षों से लिव इन संबंधों को कानूनी मान्यता दिलाने की कवायद भी जारी है ताकि ऐसे संबंधों में रह रहे जोड़े में से किसी एक को कोई समस्या होने पर उसे उचित न्याय मिल सके। पिछले साल उच्चतम न्यायालय ने लिव इन संबंधों पर कुछ फैसले भी दिए जिसके तहत लिव इन में गुजारा भत्ते की कुछ शर्तें लगाई गयी हैं। उन फैसलों में कोर्ट की कुछ टिप्पणियों पर काफी विवाद भी रहा। इससे लिव इन संबधों और इसके तहत रहने वाले युगल के अधिकारों को लेकर एक लंबी बहस शुरू हो गयी।


लिव इन के पैरोकारों का मत है कि लिव इन संबंधों को सामान्य रूप से होने वाले वैवाहिक रिश्तों के समान ही अधिकार दिए जाने चाहिए और यदि इस संबध के दौरान किसी बच्चे का जन्म होता है तो उसे भी परंपरागत उत्तराधिकार मिलना चाहिए। लिव इन के समर्थक इसे प्राकृतिक मानवाधिकार के रूप में परिभाषित करते हैं और तर्क देते हैं कि जीवन जीने के ढंग पर कोई पाबंदी लगाना अनुचित है।


वहीं भारत में ऐसे भी लोग हैं जो लिव इन संबंधों को समाज की परंपरागत मान्यताओं के खिलाफ मानते हुए इसे वैवाहिक संस्था के खिलाफ मानते हैं। लिव इन के विरोधी ऐसे संबंधों में रहने वालों को किसी भी अधिकार से नवाजे जाने के विरुद्ध है। साथ ही उनका ये भी कहना है कि यदि कोई लिव इन के तहत रहते हुए किसी अधिकार की मांग को माने जाने से सामाजिक ताने-बाने पर चोट पहुंचती है।


लिव इन रिलेशनशिप पर जारी वाद-विवाद और बहस को देखते हुए कुछ अहम सवाल खड़े होते हैं, जैसे:


1. क्या लिव इन संबंध में रहने वाले जोड़े विवाह संबंध में रहने वाले दंपत्ति के समान अधिकार पाने के हकदार हैं?

2. क्या लिव इन संबंध भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विरुद्ध है?

3. यदि लिव इन संबंध को वैवाहिक संबंध के बराबर अधिकार मिल जाए तो क्या दोनों के बीच अंतर खत्म हो जाएगा?

4. लिव इन संबंधों को कानूनी वैधता दिए जाने के क्या लाभ है?


जागरण जंक्शन इस बार के फोरम मेंअपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:


लिव इन रिलेशनशिप – सांस्कृतिक बदलाव या भटकाव


आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।


नोट: 1.यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हों तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “लिव इन रिलेशनशिप” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व लिव इन रिलेशनशिप – Jagran JunctionForum लिख कर जारी करें।

2.पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक नयी कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।


धन्यवाद

जागरण जंक्शन परिवार


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