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मुजफ्फरनगर के सांप्रदायिक दंगों के बाद दंगा पीड़ितों के पुनर्वास और उनके लिए किए जा रहे राहत कार्यों में धांधली जैसे सवालों में घिरने के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की प्रदेश में शांति व्यवस्था बनाए रखने जैसी उनकी मंशा और काबीलियत पर भी सवाल उठने लगे हैं। बढ़ती ठंड की वजह से राहत शिविरों में रह रहे लोग सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे और दिनोंदिन उनकी बिगड़ती हालत के मद्देनजर सभी विपक्षी दल एक सुर में प्रदेश सरकार की नाकामयाबियां गिनाने लगे हैं, जबकि सरकार की ओर से अपने बचाव में अन्य कई तर्क दिए जा रहे हैं।
सपा के विपक्षी खेमे से यह आवाज बुलंद होने लगी है कि प्रदेश सरकार राहत शिविरों में रह रहे दंगा पीड़ितों के हितार्थ काम करने में या तो सक्षम नहीं है या फिर वह ऐसे किसी कार्य में दिलचस्पी नहीं ले रही है। इतना ही नहीं सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव पर तो यह भी आरोप लगे हैं कि वह राहत शिविरों में रह रहे दंगा पीड़ितों की संख्या को कम दिखाने के लिए उन्हें खदेड़ने का भी प्रयास कर रहे हैं। इतना ही नहीं वह पीड़ितों को पीड़ित मानने तक से भी इंकार कर रहे हैं। सपा की कार्यप्रणाली से त्रस्त लोगों का यह भी कहना है कि दंगा पीड़ितों को अपने हाल पर छोड़, सैफई रंगारंग महोत्सव में प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की मौजूदगी उनकी नजरअंदाजगी का एक बेहद शर्मनाक नमूना है।
जबकि दूसरी तरफ अपने पक्ष को साफ करते हुए समाजवादी पार्टी के मुखिया और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को बेबुनियाद बता रहे हैं। मुलायम सिंह का कहना है कि “इनमें से बहुत से लोग केवल मुआवजे के लालच में यहां रह रहे हैं वहीं कुछ को विपक्षी दलों द्वारा यहां रखा गया है ताकि किसी ना किसी रूप में सरकार को बदनाम किया जा सके, जबकि सच यह है कि सरकार अपनी ओर से हर संभव प्रयत्न कर रही है ताकि राहत शिविरों में रह रहे दंगा पीड़ितों के लिए पर्याप्त इंतजाम किए जा सकें। और जहां तक बात है सैफई महोत्सव की तो वह प्रदेश में मनाई जाने वाली सालाना परंपरा है, जिसे संपन्न करना और उसमें शामिल होना प्रदेश सरकार का दायित्व है, इसलिए उसे राहत शिविरों में रह रहे लोगों के साथ जोड़ना पूरी तरह बेमानी है।
उपरोक्त मुद्दे के दोनों पक्षों पर गौर करने के बाद निम्नलिखित प्रश्न हमारे सामने आते हैं जिनका जवाब ढूंढ़ना नितांत आवश्यक है, जैसे:
1. सपा सरकार की कार्यप्रणाली पर संदेह करना किस हद तक सही कहा जा सकता है?
2. दंगा पीड़ितों के दयनीय हालातों पर चढ़ाया जा रहा यह सियासी रंग किस हद तक जायज है?
3. सपा सरकार पर पहले भी कई बार शांति व्यवस्था को स्थापित ना रख पाने जैसे आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में इन सभी आरोपों को कितना नजरअंदाज किया जा सकता है?
4. मुलायम सिंह यादव का कहना है कि राहत शिविरों में रह रहे लोग केवल मुआवजे के लालच में वहां टिके हुए हैं। आप इस कथन से कितना सहमत हैं?
जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:
दंगा पीड़ितों पर सियासी राग – क्या है आपकी राय?
आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।
नोट: 1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हैं तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक ‘दंगे पर सियासी रंग’ है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व दंगे पर सियासी रंग – Jagran Junction Forum लिख कर जारी कर सकते हैं।
2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।
धन्यवाद
जागरण जंक्शन परिवार
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