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भाजपा यह लड़ाई सिर्फ विकास के एजेंडे पर नहीं ‘कांग्रेस के प्रथम परिवार‘ और ‘पिछड़े वर्ग से आए गरीब मोदी‘ के बीच वर्ग अंतराल के आधार पर भी लड़ेगी – नरेंद्र मोदी
जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने अपने एक कथन में नरेंद्र मोदी को चाय वाला बताते हुए यह कहा कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री तो नहीं बन सकते लेकिन कांग्रेस के सम्मेलनों में चाय जरूर बांट सकते हैं तो इस कथन पर पलटवार करते हुए भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में कहा कि ऊंचे परिवारों (कांग्रेस) वाले पिछड़े वर्ग के प्रत्याशी से चुनाव लड़ने में अपनी बेइज्जती महसूस करते हैं। नरेंद्र मोदी ने अपने वक्तव्य में जिस तरह जातिवाद का उपयोग किया है वह एक बहुत बड़ी बहस का विषय बन गया है कि आखिर प्रधानमंत्री बनने से पहले ही नरेंद्र मोदी द्वारा जातिवाद का सिक्का उछालने के पीछे क्या मंतव्य है?
बुद्धिजीवियों का एक वर्ग ऐसा है जिसका मानना है कि नरेंद्र मोदी का ऐसा वक्तव्य संवैधानिक तौर पर हमारी एकता और अखंडता के साथ खिलवाड़ तो है ही साथ ही जातिवाद जैसा मुद्दा स्वयं आरएसएस की विचारधाराओं के भी उलट है। एक प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी होने जैसी बड़ी जिम्मेदारी निभाते हुए नरेंद्र मोदी का ऐसा कहना किसी भी हाल में स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि यह जाति के आधार पर विभाजित करने जैसा संकेत दे रहा है और इस समय देश को विभाजित करने वाले नहीं बल्कि एक साथ एक धागे में बांधकर रखने वाले नेतृत्व की जरूरत है। इस वर्ग में शामिल लोगों का यह कहना है कि यूं तो नरेंद्र मोदी अभी तक अपने ऊपर लगे सांप्रदायिक होने जैसे दाग को मिटा पाने में सफल नहीं हो पाए हैं और ऐसे में अब जब वह जातिवाद को भी अपना हथकंडा बनाने पर तुले हैं तो उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता।
वहीं दूसरी ओर वे बुद्धिजीवी हैं जिनके अनुसार अपने आप को पिछ्ड़े वर्ग का कहना जातिवादी नहीं है। इस वर्ग में शामिल लोगों का कहना है कि हम चाहे लाख कोशिश कर लें या फिर कितना ही इस बात को नजरअंदाज कर लें लेकिन सच यही है कि ‘जाति’ भारतीय समाज का प्रमुख अभिलक्षण है। सदियों से जातिगत भेदभाव होते रहे हैं तथा इसे मिटाने के लिए सोशल इंजीनियरिंग का सिद्धांत सामने आया है। असमानता मिटाने के लिए भारत की राजनीति और जातिवाद को एक-दूसरे से अलग रखना सही नहीं है। नरेंद्र मोदी के कथित वक्तव्य को इसी रूप में देखा जाना चाहिए।
उपरोक्त मुद्दे के दोनों पक्षों पर गौर करने के बाद निम्नलिखित प्रश्न हमारे सामने आते हैं जिनका जवाब ढूंढ़ना नितांत आवश्यक है, जैसे:
1. लोकसभा चुनावों के मद्देनजर मोदी का जातिवाद जैसा ट्रंपकार्ड क्या उनकी विजय की गारंटी बन सकता है?
2. आज जब भारतीय राजनीति में परिमार्जन जैसा मुद्दा महत्वपूर्ण बना हुआ है तो ऐसे में मोदी का फिर से जातिवाद का सिक्का उछालना कितना सही कहा जा सकता है?
3. इस बात में कोई संदेह नहीं है कि भारत में जातिवाद और राजनीति को एक-दूसरे से पृथक नहीं किया जा सकता तो ऐसे में मोदी के बयान को विवादास्पद बनाना कितना जायज है?
4. मोदी लहर अपने चरम पर है ऐसे में यह विवाद उनकी लोकप्रियता को बढ़ाएगा या फिर कम करेगा?
जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:
मोदी का ‘पिछड़ा कार्ड’ क्या उनके जीत की गारंटी बनेगा?
आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।
नोट: 1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हैं तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक ‘जातिवाद और मोदी’ है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व जातिवाद और मोदी – Jagran Junction Forum लिख कर जारी कर सकते हैं।
2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।
धन्यवाद
जागरण जंक्शन परिवार
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