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कैसे मिटेगा नक्सलवाद ?

जागरण जंक्शन फोरम
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हाल ही में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के काफिले पर हुए घातक नक्सली हमले, जिसमें प्रदेश के शीर्ष कांग्रेसी नेताओं समेत लगभग 30 लोगों की जानें गईं और कई लोग गंभीर रूप से घायल हुए, को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि ‘रेड कॉरिडोर’ अब और अधिक विस्तृत और खतरनाक होता जा रहा है। मध्य-प्रदेश के घने और आदिवासी इलाकों में फैला नक्सलवाद अब और अधिक खतरनाक होता जा रहा है और जो हिमाकत इस बार उन्होंने दिखाई उसे देखते हुए इस नक्सली हमले को अब तक का सबसे बड़ा नक्सली हमला करार दिया जा रहा है। आतंकवाद से भी कहीं ज्यादा विनाशक नक्सलवाद देश की अंदरूनी सुरक्षा को एक ऐसा खतरा है जिस पर आज तक नियंत्रण नहीं पाया जा सका है, इसके विपरीत यह अपने पांव अब और ज्यादा पसारने लगा है।


भारत की सीमाओं के भीतर पनप रही इस विरोधी लहर को जड़ से समाप्त करने के लिए बुद्धिजीवियों के दो वर्ग अलग-अलग कार्यवाहियों की मांग कर रहे हैं, जिसमें से कुछ नक्सलवाद को समाप्त करने के लिए केवल सैनिक कार्यवाही को ही एकमात्र विकल्प बता रहे हैं तो कुछ सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था में सुधार लाकर इस खतरे को टालने की पैरवी कर रहे हैं। हालांकि दोनों ही वर्ग देश के अंदरूनी हालातों को सुरक्षित करने के पक्ष में हैं लेकिन नक्सलवाद को खत्म करने के मामले पर एक-दूसरे से पूरी तरह असहमत प्रतीत होते हैं जिसकी वजह से इस बार यह मुद्दा एक गंभीर बहस में परिवर्तित हो गया है।


सैनिक कार्यवाहियों के पक्षधर बुद्धिजीवियों का कहना है कि भले ही इस बार के नक्सली हमले में ज्यादा संख्या में जानें गई हों लेकिन नक्सली शुरुआत से ही इतना ही ज्यादा निर्मम और हत्यारे प्रवृत्ति के रहे हैं। हर बार उन्होंने निर्दोष लोगों की जान ली है और उन पर कभी भी बातचीत का कोई असर नहीं हुआ है। इसके विपरीत हर बार वह और वहशीपन के साथ अवतरित होते आए हैं। देश के लिए खतरा बन चुके नक्सलवाद को समाप्त करने का एकमात्र उपाय सिर्फ और सिर्फ सैनिक कार्यवाही ही है। उनका कहना है कि हमारे पास इतने सक्षम सैनिक हैं कि वह मात्र कुछ दिनों में नक्सलियों की कौम को समाप्त कर देंगे और अगर व्यवहारिक रूप में देखा जाए तो आज हमारे पास यही एक उपाय भी है। सरकार के आगे हर समय नई मुश्किलें पैदा करने वाले नक्सलियों के सिर पर हर समय खून सवार रहता है और वह नहीं देखते कि जो उनका शिकार बन रहा है वो कौन है, ऐसे में उनके प्रति किसी भी तरह की सांत्वना रखना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है इसीलिए सख्त कदम तो उठाने ही पड़ेंगे।


वहीं दूसरी ओर इस विचारधारा के विपरीत पक्ष रखने वाले लोगों, जिनका मानना है कि भारत के राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक हालातों में सुधार कर नक्सलवाद की समस्या पर काबू पाया जा सकता है, का कहना है कि नक्सली हत्यारे नहीं बल्कि हमारी नीतियों से प्रभावित आदिवासी और गरीब तबके के लोग हैं। उनकी जमीनों पर अतिक्रमण कर, उनसे उनके रहने और फलने-फूलने के सभी साधनों को छीनकर, हमने उन्हें अपने खिलाफ कर लिया है। अगर हम वाकई नक्सलवाद को समाप्त करने और देश की सुरक्षा के लिए गंभीर हैं तो हमें उन आदिवासियों से वार्तालाप कर इस समस्या का हल खोजना पड़ेगा, उन्हें हर वो हक देने होंगे जिनके ऊपर उनका अधिकार है। भारतीय सरकारों की नीतियों से आक्रोशित भारत के ही कुछ लोग भारत के खिलाफ हो गए हैं, उनकी समस्याओं को सुलझाए बिना किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता। इस वर्ग में शामिल लोगों का कहना है कि उन पर हुए अत्याचारों और अन्यायों की ही वजह से आज वह यह खूनी खेल खेलने के लिए मजबूर हुए हैं। उनकी दुर्दशा को समझते हुए सैनिक कार्यवाही जैसा विकल्प ना सिर्फ मानवाधिकारों के विरुद्ध है बल्कि घोर अमानवीय भी है क्योंकि इसमें ना सिर्फ नक्सली अपनी जान गवाएंगे बल्कि कई अन्य निर्दोष लोगों की भी जाने जाएंगी। इसीलिए बेहतर विकल्प सामाजिक और आर्थिक नीतियों में सुधार कर प्रत्येक भारतीय, भले ही वह नक्सली ही क्यों ना हो, को अपने साथ लेकर चलना ही है।


उपरोक्त चर्चा और नक्सलवाद जैसी समस्या के समाधान से जुड़े दोनों पक्षों पर विचार करने के बाद निम्नलिखित प्रश्नों का जवाब ढूंढ़ा जाना नितांत आवश्यक है, जैसे:


1. क्या नक्सलवाद का समाधान सिर्फ सैनिक कार्यवाही से ही संभव है?

2. क्या वाकई नक्सली भारत की सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक नीतियों से पीड़ित लोग हैं?

3. बातचीत की कोशिश तो पहले भी कई बार की गई है, लेकिन कभी कोई नतीजा नहीं निकला। ऐसे में नक्सलियों को एक और मौका देना कितना सही होगा?

4. क्या नक्सलवाद स्वार्थ से ओत-प्रोत राजनीति का ही उत्पाद है?

5. देश की सुरक्षा के लिए खतरा बन चुके नक्सलियों के प्रति हमदर्दी रखना कितना जायज है?


जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:

कैसे मिटेगा नक्सलवाद ?


आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।


नोट: 1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हैं तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “नक्सलवाद” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व नक्सलवाद – Jagran Junction Forum लिख कर जारी कर सकते हैं।


2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक नयी कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।

धन्यवाद

जागरण जंक्शन परिवार


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