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गरीबी का नया पैमाना – हकीकत या फ़साना

जागरण जंक्शन फोरम
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लगता है भारत में गरीबी अचानक बहुत तेजी से विलुप्त हो जाने वाली है। बचे-खुचे गरीब भी कुछ ही समय में अमीर की श्रेणी में आ जाएंगे और कोई भी गरीब शख्स ढूंढ़ना बेहद मुश्किल काम होगा। जी हां, यह चमत्कार किया है भारत के योजना आयोग ने जिसने उच्चतम न्यायालय में एक हलफनामा दाखिल करते हुए बताया है कि भारत के शहरों में बत्तीस रुपए व गांवों में छब्बीस रुपए एक दिन में खर्च कर सकने वाले लोगों को गरीब नहीं माना जाना चाहिए। योजना आयोग के अनुसार ऐसे लोग जो उपरोक्त सीमा से ऊपर आय अर्जित करते हैं उन्हें गरीबों के लिए चल रही सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलना चाहिए और उनको बीपीएल कार्ड भी नहीं दिया जाना चाहिए।


योजना आयोग ने नई गरीबी रेखा को परिभाषित करते हुए कहा है कि दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और चेन्नई में चार सदस्यों वाला परिवार यदि महीने में 3860 रुपये खर्च करता है, तो वह गरीब नहीं कहा जा सकता। लेकिन यदि योजना आयोग की गरीबी की नई परिभाषा को जमीनी हकीकत से जोड़कर देखा जाए तो बात गले नहीं उतरती। दिल्ली, मुंबई, बंगलुरु और चेन्नई जैसे महानगरों की अत्यधिक महंगी जिंदगी की बात ही क्या करनी, जहॉ आमजन को शहर में जीविकार्जन के लिए आवागमन में ही पचास-साठ रुपए प्रतिदिन खर्च करना पड़ता है। क्या कोई व्यक्ति बिना कुछ खाए-पीए या आवासीय किराया दिए बिना निर्वाह कर लेगा। अगर योजना आयोग ने हलफनामा दायर करते समय इस सामान्य से तथ्य को ध्यान में रखा होता तो ज्यादा अच्छा होता।


योजना आयोग की गरीबी संबंधी इस रिपोर्ट को सरकार और कुछ महत्वपूर्ण अर्थशास्त्रियों का समर्थन प्राप्त है लेकिन देश के अधिकांश लोगों को इस रिपोर्ट में भारी खामी नजर आ रही है। कुछ बौद्धिक वर्गों ने इस रिपोर्ट को सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि योजना आयोग सच का सामना करने से कतरा रहा है इसलिए उसने ऐसी रिपोर्ट पेश की है ताकि सरकारी नाकामी पर पर्दा डाला जा सके। इस रिपोर्ट पर सवाल उठाने वाले लोगों के अनुसार, योजना आयोग व सरकार के पास व्यावहारिक दृष्टिकोण का अभाव है और आंकलन करते समय नित्य प्रति बढ़ती बेलगाम महंगाई और मूल्य वृद्धि की उपेक्षा कर दी गई है। यहॉ तक कि आरोप ये भी लगाए जा रहे हैं कि ऐसा करके सरकार दिखाना चाहती है कि देश में गरीबी पर प्रभावी रूप से रोक लगी है।


गरीबी पर योजना आयोग के हलफनामे को देखते हुए कुछ बेहद जरूरी सवाल उत्पन्न होते हैं, जैसे:


1. क्या वाकई शहरों में बत्तीस रुपए व गांवों में छब्बीस रुपए एक दिन में खर्च कर सकने वाले लोगों को गरीब नहीं माना जाना चाहिए?

2. क्या योजना आयोग का गरीबी संबंधी आंकलन व्यावहारिक है?

3. भारत में गरीबी में अचानक कमी आ गई है या यह सरकारी छलावा मात्र है?

4. क्या सरकार गरीबी के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेंकने की तैयारी में है?


जागरण जंक्शन इस बार के फोरम मेंअपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:


गरीबी का नया पैमाना – हकीकत या फ़साना


आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।


नोट: 1.यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हों तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “गरीबी का नया पैमाना” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व गरीबी का नया पैमाना – Jagran JunctionForum लिख कर जारी करें।

2.पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक नयी कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।


धन्यवाद

जागरण जंक्शन परिवार


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