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क्या वाकई हमारे नेता महिला मुद्दों पर संवेदनशील नहीं हैं?

जागरण जंक्शन फोरम
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अभिजीत मुखर्जी (जंगीपुर से सांसद और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पुत्र): हर मुद्दे पर कैंडल मार्च निकालने का फैशन चल पड़ा है, लड़कियां दिन में सज-धज कर कैंडल मार्च निकालती हैं और रात में डिस्को जाती हैं

अनीसुर रहमान (सीपीएम के सीनियर नेता): आप (ममता बनर्जी) रेप के लिए कितना चार्ज लेंगी?

शरद यादव (महिला आरक्षण के मुद्दे पर): इस विधेयक के जरिये आप परकटी महिलाओं को सदन में लाना चाहते हैं?

सुशील कुमार शिंदे (अभिनेत्री और राज्यसभा सांसद जया बच्चन से): मैडम मैडम जरा ध्यान से सुनिए, यह (असम मुद्दा) कोई फिल्मी इशू नहीं है

मुलायम सिंह यादव (महिला आरक्षण बिल पर): यह बिल पास होने से सदन में ऐसी महिलाएं भर जाएंगी जिन्हें देखकर लोग सीटियां बजाएंगे।


महिला आरक्षण बिल का मुद्दा हो या फिर असम में हुई हिंसा और अब दिल्ली में हुए गैंग रेप की अत्याधिक निंदनीय वारदात, लगभग सभी गंभीर मसलों पर राजनेता बयानबाजी करने से नहीं चूकते. लेकिन यहां मुद्दा उनके द्वारा समय-समय पर दिए जाने वाले बयान का नहीं बल्कि यह है कि उनके लगभग सभी बयान महिलाओं को ही घेरते प्रतीत होते हैं। महिलाओं पर नेताओं की ऐसी बयानबाजी के कारण ही आज महिलाओं के प्रति उनकी संवेदनशीलता पर भी सवालिया निशान लग गया है।


नेताओं की ऐसी बयानबाजी पर बहुत से लोगों का कहना है कि ऐसे बयानों का कुछ खास अर्थ नहीं होता या फिर नेताओं के बयानों को तोड़-मरोड़कर पेश किया जाता है। पीत पत्रकारिता के तहत नेताओं के भाषणों या उनके कथनों का बस वही हिस्सा पेश किया जाता है जिससे जन भावनाएं आक्रोशित हों और मीडिया संस्थानों की टीआरपी बढ़े। इस वर्ग में शामिल बौद्धिक लोगों का पक्ष है कि राजनेता किसी खास मुद्दे के संदर्भ में अपना बयान देते हैं लेकिन मीडिया में उसे नकारात्मक रूप देकर पेश किया जाता है। उनका पूरा बयान पढ़ने के बाद यह समझ में आता है कि आखिर उन्होंने ऐसा क्यों कहा।


वहीं दूसरी ओर बहुत से लोगों का यह मानना है कि नेताओं का व्यक्तित्व सार्वजनिक होता है और ‘पब्लिक फिगर’ होने के कारण उन्हें कभी गलती से भी ऐसे वक्तव्य नहीं कहने चाहिए जिन पर विवाद उत्पन्न हों। अगर हमारे नेता, जिनके हाथ में सामाजिक हित में कार्य करने जैसी बड़ी जिम्मेदारी है, ही महिलाओं के प्रति ऐसी ओछी सोच रखते हैं तो आम जनता से तो वैसे भी कोई उम्मीद नहीं की जा सकती। विशेषकर शीर्ष स्तर पर बैठे राजनेताओं को तो अपनी मर्यादा का ध्यान रखकर ही कोई वक्तव्य देना चाहिए। वह इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि उनके द्वारा कहे गए हर एक शब्द का महत्व होता है, अगर इसके बावजूद वह कथित रूप से निंदित बातें अपने मुंह से निकालते हैं तो यह जानबूझकर की जाने वाली हरकत ही कही जाएगी।


नेताओं की वक्त-बेवक्त की बयानबाजी से जुड़े इस गंभीर मुद्दे से संबंधित दोनों पक्षों को जानने के बाद कुछ गंभीर सवाल हमारे सामने उपस्थित हैं जिनका जवाब ढूंढ़ना नितांत आवश्यक है, जैसे:


1. क्या वाकई हमारे नेता महिलाओं के मुद्दों पर संवेदनशील नहीं हैं?

2. मीडिया पर यह आरोप लगाना कि वह पीत पत्रकारिता के तहत ऐसा कर रही है, कहां तक सही है?

3. महिलाओं के प्रति ऐसे गैर-जिम्मेदाराना बयान देने के बावजूद नेताओं का अपना पक्ष रखना जायज है?

4. अगर वाकई नेताजन महिलाओं के प्रति ऐसी सोच रखते हैं तो उनसे महिला सुधार की कितनी उम्मीद की जा सकती है?


जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:

क्या वाकई हमारे नेता महिला मुद्दों पर संवेदनशील नहीं हैं?


आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।


नोट:1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हैं तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “संवेदनहीनता की पराकाष्ठा”  है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व संवेदनहीनता की पराकाष्ठा – Jagran Junction Forum लिख कर जारी कर सकते हैं।


2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक नयी कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।

धन्यवाद

जागरण जंक्शन परिवार


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