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केवल आरोप के आधार पर राजनैतिक जीवन पर प्रतिबंध – कितना जायज?

जागरण जंक्शन फोरम
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हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में यह कहा था कि 2 साल से ज्यादा की सजा पाने वाले सांसदों और विधायकों की सदस्यता खत्म कर दी जानी चाहिए। लेकिन कैबिनेट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटते हुए नए अध्यादेश की मंजूरी दे दी जिसके चलते सरकार ने दागी नेताओं को राहत देने का काम किया था। ऐसे हालातों में जब कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने स्वयं कैबिनेट द्वारा पारित उस अध्यादेश को बेकार करार देते हुए उसे फाड़कर फेंकने की बात कही तो चारों तरफ ये चर्चा आम होने लगी कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की छवि उन्हीं की पार्टी में कमजोर है और उनकी अपनी पार्टी के लोग ही उनके फैसले को महत्ता नहीं देते। खैर यह तो पुरानी बात हुई लेकिन राहुल गांधी और सुप्रीम कोर्ट से एक कदम आगे बढ़ते हुए केन्द्रीय कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कैबिनेट के सामने एक प्रस्ताव पेश किया है जिसके अनुसार बलात्कार, हत्या, अपहरण आदि जैसे गुनाहों (जिनमें न्यूनतम सात वर्ष तक की सजा होती है) के आरोपियों को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। कपिल सिब्बल के इस प्रस्ताव के साथ ही यह बहस भी तेज हो गई है कि जब तक आरोप साबित नहीं हो जाता कोई भी व्यक्ति दोषी नहीं होता, ऐसे में सिर्फ आरोप के बिना पर किसी के राजनैतिक जीवन पर प्रतिबंध कैसे लगाया जा सकता है?


बुद्धिजीवियों का वो वर्ग जो कपिल सिब्बल के प्रस्ताव पर अपनी स्वीकृति दे रहा है, का कहना है कि कपिल सिब्बल द्वारा पेश यह प्रस्ताव राजनीति में सुधार और सुधार की राजनीति का एक बड़ा उदाहरण बन सकता है। वर्तमान समय में भी भारत की राजनीति में कई ऐसे नेता हैं जो भिन्न-भिन्न आरोपों का सामना कर रहे हैं और यह कहना भी गलत नहीं होगा कि राजनीति में आने से पहले ही वे ऐसे कई आरोप अपने साथ लेकर आए थे। लेकिन सत्ता, पैसे और ताकत के नशे ने उनके चरित्र को और अधिक गिरा दिया। ऐसे में अगर पहले से ही साफ और परिष्कृत छवि वाले नेताओं को राजनीति में प्रवेश दिया जाए तो राजनीति की दुर्दशा से तो बचा जा सकता है, साथ ही जनता और समाज के कल्याण के लिए भी यह उपयोगी सिद्ध होगा।


वहीं दूसरी ओर बुद्धिजीवियों का एक वर्ग ऐसा भी है जो इस प्रस्ताव को बचकाना करार दे रहा है। उनका कहना है कि शायद कपिल सिब्बल इस बात से अनजान हैं कि आरोप तो झूठे भी लगाए जा सकते हैं। अर्थात कोई व्यक्ति राजनीति में प्रवेश करने का इच्छुक है और उस पर किसी ने हत्या, बलात्कार आदि जैसे झूठे आरोप लगा दिए तो बगैर गलती के भी उसका राजनैतिक जीवन समाप्त हो जाएगा। यह किसी भी रूप में और किसी भी तरीके से न्याय तो नहीं कहा जा सकता। सिर्फ आरोप के आधार पर किसी को राजनीति में आने से रोकना या उसकी मंशाओं पर संदेह रखना सही नहीं ठहराया जा सकता। इसके विपरीत होना तो यह चाहिए कि जब तक आरोप साबित ना हो जाए तब तक किसी फैसले पर ना पहुंचा जाए।


कानून मंत्री कपिल सिब्बल के प्रस्ताव से जुड़े दोनों पक्षों पर गौर करने के बाद निम्नलिखित प्रश्न हमारे सामने उपस्थित हैं जिनका जवाब ढूंढ़ना नितांत आवश्यक है, जैसे:


1. निश्चित रूप से कपिल सिब्बल का यह प्रस्ताव राजनीतिक सुधार की ओर अगला कदम साबित हो सकता है। ऐसे में इस प्रस्ताव का विरोध करना कितना जायज है?

2. ये बात सही है कि आरोप तो झूठे भी हो सकते हैं। तो फिर किस तरह इस प्रस्ताव को स्वीकार किया जा सकता है?

3. क्या राजनीति में सुधार का कोई और तरीका ढूंढ़ा जा सकता है?

4. सुधार की राजनीति के अंतर्गत जनता और समाज के हित में क्या सही निर्णय होगा?



जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:


केवल आरोप के आधार पर राजनैतिक जीवन पर प्रतिबंध – कितना जायज?


आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।


नोट: 1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हैं तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “दागी नेता” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व दागी नेता – Jagran Junction Forum लिख कर जारी कर सकते हैं।


2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।


धन्यवाद

जागरण जंक्शन परिवार

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