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क्या भारत में नस्लीय भेद की परंपरा है?

जागरण जंक्शन फोरम
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पिछले दिनों अरुणाचल प्रदेश के छात्र नीडो तनिया की दिल्ली में पीटकर हुई हत्या का मामला सामने आने के बाद एक बाद फिर नस्लीय विवाद का मुद्दा गहरा गया है। अरुणाचल प्रदेश से उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली आया नीडो तो कोई सामान्य व्यक्ति न होकर विधायक का बेटा था। इसके बावजूद नस्लीय आधार पर मजाक उड़ाते हुए घटना के तूल पकड़ने पर नीडो की बुरी तरह पिटाई की गई और जो बाद में उसकी मौत की वजह भी बनी। इस घटना के बाद बड़े स्तर पर उत्तर-पूर्वी भारतीयों की उपेक्षा और देश के अन्य हिस्सों में उनकी सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े किए जाने लगे हैं तथा नस्लीय भेद बनाम सामान्य आपराधिक वारदात के बीच एक तीखी बहस भी उभर कर सामने आ रही है।


पहला पक्ष उन लोगों का है जो ऐसी घटनाओं को नस्लीय, क्षेत्रीय आधार पर विभेद मानते हैं। इनके अनुसार देश के विभिन्न विकसित प्रांतों में पिछड़े या कम उन्नत क्षेत्रों से शिक्षा या रोजगार की तलाश में आने वालों को उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाता है। इनके अनुसार यह ‘लक्षित नस्लीय आक्रमण’ है जिसमें भाषा तथा क्षेत्र के आधार पर विभेद करते हुए उन्हें कमतर महसूस कराया जाता है। असम से बिहारियों को निकालने के लिए हुईं हिंसात्मक घटनाएं अथवा महाराष्ट्र में भाषा व क्षेत्र के आधार पर बिहारियों को पीटे जाने की घटनाएं अथवा देश के किसी भी प्रदेश में ऐसी क्षेत्रीय विभेद की घटनाओं के पीछे वे इसी मनोवृत्ति को कारक मानते हैं। इसमें कहीं अहं तो कहीं अपनी स्थिति छीने जाने का डर भी होता है। दोनों ही स्थितियों में ऐसी घटनाएं जन्म लेती हैं।


दूसरा एक और पक्ष उन लोगों का है जो भारत जैसे समता और सद्भावना वाले देश में ऐसे नस्लीय विभेद की संभावना को सिरे से खारिज करते हैं। उनके अनुसार ऐसी घटनाएं क्षेत्र या राज्य विशेष की समूल भावना को परिभाषित नहीं कर सकतीं। इन घटनाओं में जिनका हाथ होता है वे अपराधी तत्व होते हैं। समूचे भारत में किसी भी क्षेत्र या राज्य में नस्लीय या क्षेत्रीय आधार पर भाषा, रंग-रूप, रहन-सहन के आधार पर भेद किए जाने की कोई परंपरा नहीं है। यहां सदियों से कई रंग-रूप, भाषा और पहनावे वाले लोग मिल-जुलकर साथ रहते आए हैं और  इसीलिए भारत विविधताओं का देश भी कहा जाता है। इनके अनुसार क्षेत्रीय आधार पर होने वाली हिंसा की घटनाएं समाज में मौजूद उन शरारती और आपराधिक तत्वों द्वारा की जाती हैं जिनका क्षेत्र के विकास और अवसान से कोई नाता नहीं होता। राह चलते ऐसे लोगों के लिए यह उनके मनोरंजन का साधन भी हो सकता है या सामान्य हिंसात्मक प्रतिक्रिया भी हो सकती है जिसमें सामने आने वाली किसी भी लड़की को छेड़ते हुए वे यह नहीं सोचते कि वह असम की है या बिहार की; या किसी भी लड़के का मजाक उड़ाते या पीटते हुए वह यह नहीं सोचते कि वह बंगाल का है या महाराष्ट्र का।


उपरोक्त मुद्दे के दोनों पक्षों पर गौर करने के बाद निम्नलिखित प्रश्न हमारे सामने आते हैं जिनका जवाब ढूंढ़ना नितांत आवश्यक है, जैसे:


1. सामाजिक समता और सद्भावना के लिए पहचाने जाने वाले भारत में क्या नस्लीय भेद की परंपरा है?

2. क्या नीडो तनिया जैसी हिंसा की घटनाएं क्षेत्रीय भावना को वरीयता देती हिंसा की घटनाएं हैं या यह समाज में आतंक का पर्याय बन चुके सामान्य आपराधिक तत्वों की हिंसात्मक आपराधिक प्रवृत्ति के बढ़ने की ओर इशारा करता हैं?

3. नीडो तनिया जैसी घटनाएं क्या वास्तव में लक्षित नस्लीय आक्रमण होते हैं अथवा समूचे समाज के लिए घातक हिंसात्मक घटनाओं को राजनीतिक रंग देकर इसे नस्लीय बना दिया जाता है?

4. क्या ऐसी हिंसात्मक घटनाएं क्षेत्रीय भावना को बढ़ावा दे रही हैं?


जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:


क्या भारत में नस्लीय भेद की परंपरा है?


आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।


नोट: 1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हैं तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “नस्लीय भेद की परंपरा”  है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व “नस्लीय भेद की परंपरा” – Jagran Junction Forum लिख कर जारी कर सकते हैं।


2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।


3. अगर आपने संबंधित विषय पर अपना कोई आलेख मंच पर प्रकाशित किया है तो उसका लिंक कमेंट के जरिए यहां इसी ब्लॉग के नीचे अवश्य प्रकाशित करें, ताकि अन्य पाठक भी आपके विचारों से रूबरू हो सकें।


धन्यवाद

जागरण जंक्शन परिवार

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