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प्रोन्नति में आरक्षण – दलितोत्थान की नीयत या वोट बैंक का ख्याल ?

जागरण जंक्शन फोरम
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भारतीय संविधान में आरक्षण की पैरवी करते समय संविधान निर्माता और दलित समाज के मसीहा माने जाने वाले डॉ. भीमराव अंबेडकर ने यह भी प्रयास किया था कि आरक्षण को धीरे-धीरे खत्म भी कर दिया जाए। लेकिन वोट बैंक और जाति के नाम पर होने वाली राजनीति ने आज आरक्षण को एक ज्वलंत मुद्दा बना दिया है।


हाल ही में संसद में प्रोन्नति में आरक्षण का बिल पेश किया गया। यूपी की राजनीति से निकली यह आवाज अब संसद में गूंजने लगी है। यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने अनुसूचित जाति और जनजाति के कर्मचारियों को प्रमोशन में रिजर्वेशन देने का फैसला किया था। लेकिन इसे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संविधान की भावना के खिलाफ बताकर नामंजूर कर दिया था। फिर मामला सुप्रीम कोर्ट में गया और सुप्रीम कोर्ट ने भी इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि संविधान में आरक्षण की व्यवस्था केवल ‘मूल पद पर नियुक्ति’ तक ही सीमित है, इसलिए सरकारी नौकरियों में प्रोन्नति में आरक्षण असंवैधानिक है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि देश में नौकरी कर रहे अनुसूचित जाति और जनजाति के ‘पिछड़ेपन’ का आंकड़ा कितना है, जिसके आधार पर प्रमोशन में रिजर्वेशन की मांग की जा रही है।


पर सरकार ने संविधान में ही संशोधन के जरिए नौकरी में आरक्षण को कानूनी जामा पहनाने की तैयारी कर ली है। अब सवाल उठता है कि ऐसाआरक्षण दिया जाना चाहिए या नहीं?


प्रोन्नति में आरक्षण की मांग करने वालों का कहना है कि सरकार ने नौकरियों में तो दलितों और पिछड़ों को आरक्षण दे उनका सामाजिक स्तर बढ़ाने की दिशा में कुछ कार्य किया लेकिन नौकरी मिलने के बाद अकसर दलितों को उच्च स्तर और बड़े पोस्टों पर पहुंचने के अवसर नहीं मिल पाते। उनके अनुसार आज भी किसी विभाग में उच्च पदों पर दलितों की संख्य नगण्य है।


वहीं दूसरी ओर प्रोन्नति में आरक्षण का विरोध करने वालों का मानना है कि इससे योग्यता और क्षमताओं का अर्थ ही खत्म हो जाएगा। अगर प्रोन्नति में रिजर्वेशन मिलने लगेगा तो जहां एक तरफ दलितों को बहुत जल्दी प्रमोशन मिलेगा तो वहीं दूसरी ओर हो सकता है अधिक कार्य क्षमता वाले अधिकारी का प्रमोशन बहुत धीरे स्तर पर हो। ऐसे लोगों का कहना है कि जब कोई व्यक्ति प्रशासनिक कार्यों के लिए या किसी बड़े सरकारी विभाग में नियुक्त होता है तो उसे जाति और धर्म से ऊपर उठ कर काम करना चाहिए। उनका कहना है कि पहले ही आरक्षण लागू करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 335 में संशोधन कर अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों को अर्हता के तमाम मानकों में छूट दी जा चुकी है। इतना ही नहीं सरकार के इस कदम से असहमत लोगों का यह भी कहना है कि यह मामला सामाजिक पिछड़ेपन का तो है ही नहीं बल्कि यह मात्र राजनीतिक लाभ से प्रेरित है।


प्रोन्नति में आरक्षण दिए जाने के विषय पर उपरोक्त चर्चा के बाद निम्नलिखित प्रश्न हमारे सामने उठते हैं, जिनका जवाब ढूंढ़ना नितांत आवश्यक है, जैसे:


1. क्या प्रोन्नति में आरक्षण देने से ही दलितों का वास्तविक कल्याण होगा?

2. क्या प्रोन्नति में आरक्षण देने के मामले में जातिवाद पर आधारित राजनीति हावी हो रही है?

3. क्या भारत में आरक्षण योग्यता और श्रेष्ठता को धीरे-धीरे खत्म कर रहा है?

4. क्या प्रोन्नति में आरक्षण देने से देश में वैसे ही हालात पैदा हो सकते हैं जैसे मंडल आयोग के लागू होने पर हुए थे?

5. ‘प्रोन्नति में आरक्षण होना ही चाहिए’ इसके पक्ष में क्या-क्या तर्क दिए जा सकते हैं?


जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:


प्रोन्नति में आरक्षण – दलितोत्थान की नीयत या वोट बैंक का ख्याल ?


आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।


नोट:1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हों तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “प्रोन्नति में आरक्षण” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व “प्रोन्नति में आरक्षण – Jagran Junction Forum लिख कर जारी कर सकते हैं।

2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक नयी कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।


धन्यवाद

जागरण जंक्शन परिवार


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