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निगमानंद का बलिदान – व्यवस्था का नंगा सच !!

जागरण जंक्शन फोरम
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राष्ट्र हित के लिए समर्पित सन्यासी स्वामी निगमानंद ने राष्ट्रीय नदी गंगा को बचाने के लिए अनशन का फैसला लिया. उस गंभीर व्यक्तित्व वाले साधु के अनशन की ओर ना तो सरकार ने कोई ध्यान दिया और ना ही हर मामले का सच उजागर करने का दावा करने वाली मीडिया ने. हद तो तब नजर आयी जबकि समाज का इस मामले पर असंवेदी रवैया दिखा. परिणाम वही हुआ जो हर सच्चे राष्ट्रवादी के साथ होता है……….एक निःशब्द मृत्यु.


स्वामी निगमानंद की मृत्यु सरकार, समाज, मीडिया सहित व्यवस्था के हर एक उपादानों की पोल खोलती नजर आती है. गंगा की गोदी में अवैध खनन जैसी गतिविधियों पर लगाम लगाने को लेकर छेड़ा गया अनशन आखिर क्यों लोगों को जागरुक नहीं कर सका? मीडिया की भूमिका तो इस मामले पर निश्चय ही काफी संदेहास्पद रही. सरकार का रवैया तो पहले से ही साफ है कि वह आखिर अपने विरुद्ध खड़े हुए व्यक्ति या आंदोलन को कैसे तरजीह देगी.


अगर हम गत दिनों से देश में चल रहे कुछ आंदोलनों पर नजर डालें तो स्थिति का बेहतर जायजा लिया जा सकता है. भ्रष्टाचार के विरुद्ध सिविल सोसायटी के द्वारा संचालित अनशन को देश ने काफी महत्व दिया. मीडिया ने मामला उछाला और सरकार ने घुटने टेक दिए. योगाचार्य द्वारा किए गए आंदोलन व अनशन के दृश्य मीडिया की टीआरपी बढ़ाने में खासे कामयाब रहे, विपक्षी दलों ने इसे अपना मुद्दा बना कर देश व्यापी प्रदर्शन किया. सरकार भी उनकी अगवानी के लिए आगे आती नजर आयी. जबकि उसी समय चुपचाप अपने अभियान को आगे बढ़ाते हुए स्वामी निगमानंद मृत्यु का ग्रास बनने की तैयारी कर रहे थे. किंतु चूंकि वे चकाचौंध व समर्थकों से दूर एक सादगी भरा अनशन कर रहे थे इसलिए किसी को क्या फर्क पड़ता उनके आंदोलन में शरीक होकर………….?


उपरोक्त के आलोक में कई ऐसे महत्वपूर्ण प्रश्न हैं जिनका समाधान खोजा जाना आवश्यक प्रतीत होता है. आइए देखते हैं उन प्रश्नों को:


व्यक्ति के व्यक्तित्व व भीड़ जुटाने की क्षमता के आधार पर अनशन व सत्याग्रह के मामले को महत्व मिलना कहॉ तक जायज है?


व्यावसायिक हितों के आगे राष्ट्रहित के मुद्दों को उपेक्षित किया जाना किस सीमा तक उचित है?


क्या हम लोग चकाचौंध से प्रभावित होकर ही किसी राष्ट्रहित के आंदोलन में सम्मिलित होते हैं?


क्या स्वामी निगमानंद की मृत्यु समाज व मीडिया को उनके सच से रूबरू करवाएगी?


क्या सरकारें केवल कुर्सी छिनने के भय से ही संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने की सोचेंगी?


जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से राष्ट्रहित और व्यापक जनहित के इसी मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है. इस बार का मुद्दा है:


निगमानंद का बलिदान – व्यवस्था का नंगा सच !!


आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जारी कर सकते हैं.


नोट: 1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हों तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें. उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “निगमानंद का बलिदान” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व निगमानंद का बलिदान – Jagran JunctionForum लिख कर जारी करें.

2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक नयी कैटगरी भी सृजित की गयी है. आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं.


धन्यवाद

जागरण जंक्शन परिवार

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