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भारत अपनी तकदीर पर चीत्कार कर रहा है. रहनुमा बन कर सत्तासीन ताकतें उसकी इस बेबसी पर भयानक हंसी से सराबोर हो रही हैं. सरकार अपनी उपलब्धियों का ढिंढोरा पीटते हुए अपनी छाती खुद ही ठोंक रही है, जबकि जनता जिसे कभी जनार्दन कहा जाता था, आज मजबूर और असहाय होकर उनके इस क्रूर मजाक को खून के आंसू जज्ब कर सहन करते जा रही है. केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने अपने शासन के दो वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में अपनी सफलताओं और अक्षमताओं की रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में बड़ी चालाकी से अपनी सफलताओं को उजागर करते हुए सरकार ने उन खामियों को दबा दिया है जिन पर उसकी और केवल उसकी जवाबदेही बनती है.
“भय, भूख, भ्रष्टाचार हटाओ” का नारा देते हुए सरकार ने भारत की जनता को इन्हीं तीन मारक तत्वों के आगोश में ला खड़ा किया. सरकार का मुखिया भीष्म की तरह आंख मूंदकर सारे अनर्थों का साक्षी बना हुआ है. आला कमान के आदेशों का इंतजार देश पर भारी पड़ता रहा लेकिन प्रधानमंत्री को इसकी परवाह कहां! यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान ही भ्रष्टाचार और तमाम अनियमितताओं की नींव पड़ चुकी थी जिसके खुलासे उसके दूसरे कार्यकाल के दौरान हुए. इस बीच बेलगाम भ्रष्टाचार की वजह से बेतहासा बढ़ती महंगाई ने आम जनता की कमर तोड़ दी. रही-सही कसर तेल की कीमतों में अनियंत्रित उछाल ने पूरी कर दी, लेकिन सरकार के कानों पर जूं नहीं रेंगी. सबसे शर्मनाक बात तो यह रही कि उसने भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध न्यायालय द्वारा लिए गए कठोर निर्देशों के आलोक में की गयी कार्यवाही पर खुद की पीठ थपथपाने में देर नहीं की.
देश के सामने गंभीर हालात मौजूद हैं. आतंकवाद और नक्सलवाद जैसी आक्रामक और अलगाववादी गतिविधियां बदस्तूर जारी हैं. अराजक तत्व गाहे-बेगाहे सिर उठाते फिर रहे हैं, घाटी की हालत जग जाहिर है. पाकिस्तान के साथ संबंधों को लेकर दुविधापूर्ण स्थिति बनी हुई है. उत्तर-पूर्व के राज्य उपेक्षित हैं. संवैधानिक दायित्वों का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है. ऐसे में कई सवालात ऐसे हैं जिनका समाधान खोजना राष्ट्र हित में अनिवार्य है. यथा, क्या सरकार का दायित्व केवल अपनी सत्ता बचाने और मंत्रियों व मातहतों का स्वार्थ सिद्ध करने तक है या उसके दायरे में पूरा देश और आम जनता का हित आता है? यूपीए सरकार की कार्यशैली जनहित और राष्ट्रहित की दिशा में किस सीमा तक उपयुक्त है? आतंकवादियों के प्रति बरती जा रही नरमी का गुनाहगार कौन है? भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देती सरकार से देश हित की दिशा में किस सीमा तक उम्मीद की जा सकती है?
जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से इसी मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है. इस बार का मुद्दा है:
यूपीए सरकार की रिपोर्ट कॉर्ड – भय भूख भ्रष्टाचार !!
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नोट: 1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हों तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें. उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “लाचार सरकार की कारस्तानी” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व लाचार सरकार की कारस्तानी – Jagran JunctionForum लिख कर जारी करें.
2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक नयी कैटगरी भी सृजित की गयी है. आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं.
धन्यवाद
जागरण जंक्शन टीम
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