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स्त्री चिंतन और विमर्श पर आधारित लेखकों और रचनाकारों ने नारी मुक्ति की दिशा में एक व्यापक अभियान छेड़ रखा है। इसके अंतर्गत उनका मानना है कि स्त्री स्वतंत्रता में सबसे बड़ा अवरोध उनके साथ आबद्ध प्रतीक चिह्नों का होना है। यह प्रतीक चिह्न नारी दासता के परिपोषक तो हैं ही इसके साथ ही उन्हें खुले वातावरण में सांस लेने से भी रोकते हैं। 1960-70 के दशक से आरंभ हुआ नारी मुक्ति और सशक्तिकरण का अभियान स्त्री विमर्श की अतिरंजित व्यंजना के कारण काफी विवादास्पद रहा है और इस हेतु समाज के अलग-अलग वर्गों में इस पर विभिन्न प्रकार की बहस होती रही है।
इस परिप्रेक्ष्य में नारी मुक्ति के कर्णधारों ने काफी सचेत ढंग से यह आवाज उठाई है कि नारी के सशक्तिकरण और स्वावलंबन के साथ उनकी मुक्ति की राह तभी अपने सही अर्थ को प्राप्त कर सकेगी जबकि उनके साथ दासता के तौर पर आबद्ध अनेकानेक प्रतीक चिह्नों से छुटकारा मिले। यह प्रतीक चिह्न (मंगल सूत्र, सिंदूर आदि) स्त्रियों को इस बात पर मजबूर करते हैं कि वे अपनी सीमाओं से बाहर जाना ना भूलें। स्त्रियां शास्त्रीय मर्यादाओं और पुरुष प्रधान समाज द्वारा बनाए गए मानदण्डों का सख्ती से पालन करें और उनके अंतर्गत रहते हुए ही अपने अस्तित्व का विकास करें।
यकीनन स्त्री चिंतकों की सोच के विपरीत एक दूसरा पक्ष हमेशा मौजूद रहा है जिसमें ना केवल पुरुष वर्ग के प्रतिनिधि हैं बल्कि ऐसी नारियां भी हैं जो स्त्री चिंतकों की विचारधारा से अलग हटकर सोचती हैं। ऐसे लोगों का का मानना है कि नारी विमर्श पर स्वयंप्रभु ठेकेदारों का यह कहना है कि प्रतीक चिह्नों से मुक्ति स्त्रियों के विकास और उन्नति के रास्ते खोलेगी पूरी तरह गलत है। सही मायने में प्रतीक चिह्न सिर्फ संस्कार के रूप में निर्धारित ऐसे प्रेरक तत्व हैं जिनसे स्त्री व पुरुष के बीच सामंजस्य और सौहार्द की सृष्टि होती है। इसके साथ ही मर्यादित, नैतिक व आचरणिक परिशुद्धता भी कायम रहती है। प्रतीक चिह्नों का स्त्री मुक्ति या स्त्री दासता से कोई संबंध नहीं है वरन् यह पारंपरिक मान्यताओं की निरंतरता के ही द्योतक हैं।
स्त्री चिंतकों और उनके विरोध में सोचने वाले सामाजिक वर्गों या व्यक्तियों के बीच जारी इस अंतर्विरोध पर हमारे सामने विचार-विमर्श करने के लिए निम्नलिखित प्रश्न उपस्थित होते हैं, जैसे:
1. क्या वाकई महिला चिह्नों के मिटने से नारी मुक्ति का रास्ता खुल सकता है?
2. क्या महिलाओं द्वारा स्वीकृत यह प्रतीक उन्हें सदैव पुरुषों के अधीन रहने के लिए बाध्य करते हैं?
3. विवाहित संबंध में बंधने के बाद अगर महिला अपने पति के प्रति समर्पण दर्शाने के लिए इन प्रतीकों को अपनाती है तो क्या इससे उसकी स्वतंत्रता बाधित होती है?
जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:
महिला प्रतीक चिह्न – दासता के परिचायक या भावनात्मक समर्पण की पहचान ?
आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।
नोट:1.यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हों तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “महिला चिह्न दासता के परिचायक” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व महिलाचिह्न दासता के परिचायक – Jagran Junction Forum लिख कर जारी करें।
2.पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक नयी कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।
धन्यवाद
जागरण जंक्शन परिवार
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