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यहां देवी-माँ को भेंट स्वरुप ताले चढ़ाए जाते हैं ! नवरात्र पर विशेष…

kuchhalagsa.blogspot.com
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#हिन्दी_ब्लागिंग    

जी हाँ ! यह सच है ! हमारा देश तो विचित्रताओं से भरा पड़ा है। अब आप भगतों की श्रद्धा, आस्था, प्रेम को क्या कहेंगे ! उसे जो अच्छा लगता है, जैसा समझ में आता है, जिस चलन पर उसका विश्वास जमता है वह वैसी ही राह अख्तियार कर लेता है।  हम  में से  कोई  भी जब किसी मंदिर या धार्मिक स्थल पर जाता है तो खाली हाथ नहीं जाता, मिष्टान,  नारियल,  फल-फूल या मुद्रा कुछ न कुछ उपहार स्वरुप जरूर ले कर जाता है पर कानपुर शहर के एक काली मंदिर में माँ को तालों की भेंट चढ़ाई जाती है। हैरानी की बात तो है पर यह बिल्कुल सच है।  

कानपुर के  बंगाली मोहल्ले (मोहाल) में  काली माता का एक मंदिर है,  जिसका निर्माण सन 1949 का बताया जाता है। यहां की मान्यता है  कि कोर्ट-कचहरी के मामलों में माँ निर्दोषों को न्याय दिलवाती हैं।   इसीलिए बड़ी 

संख्या में भक्तजन    यहां देवी के  सामने अपनी समस्यों के समाधान के लिए आते हैं।  नवरात्रि के दिनों में, यहां भक्तों की संख्या हजारों में पहुंच जाती है,   सिर्फ  उत्तर-प्रदेश ही नहीं,   बल्कि देश भर  से  भक्त  अपनी मनोकामना लेकर इस मंदिर में आते हैं।   पर वे फल – फूल  या  मिष्टान ही  अर्पित नहीं  करते  बल्कि माँ को  तालों की भेंट चढ़ाते हैं।   आम तौर पर लोहे के ताले ही चढ़ाए जाते हैं पर  कुछ लोग  अपनी    हैसियत के अनुसार सोने – चांदी के ताले भी अर्पित करते हैं। ताले सीधे माता की मूर्ति के   सामने नहीं रखे   जाते     बल्कि मूर्ति से   कुछ दूर बने खम्भोँ में लगी रस्सियों में बांध दिए जाते हैं। पर उसके पहले मन में  अपनी मनोकामना को  रख पूरे  विधि-विधान से उनकी पूजा अर्चना की जाती है। 

इस परंपरा के पीछे तरह-तरह की कथाएं हैं। कहते हैं कि  करीब 60-65 साल   पहले  यहाँ के पहले पुजारी ताराचंद जी   के  एक   अभिन्न मित्र  और   देवी  के भगत  को  एक झूठे  मुकद्दमे   में  फंसा  दिया  गया था।   काफी कोशिशों के बाद   भी  न्याय ना  मिलने पर  ताराचंद ने देवी माँ  को ही  ताले-जंजीर से  बाँध  कर  प्रतिज्ञा   की, कि जब    तक    देवी माँ   भगत को आशीर्वाद नहीं देंगी और उसे निर्दोष साबित  नहीं करेंगी वह  ताला जंजीर  नहीं खोलेंगे।     भगत को जेल हो जाने के बाद ताराचंद जी ने सामान्य पूजा-आरती भी बंद कर दी।  ऐसा कई महीनों तक चला।  आखिर में भगत को न्याय मिला और अदालत ने उसे बरी कर दिया।  तब से  यहां ताले का चढ़ावा चढ़ाने की विलक्षण रीति का आरंभ हुआ और आज भी यह परंपरा चली आ रही है। 


ऐसी ही एक और कथा है,  जिसके अनुसार इस मंदिर  में रोज सुबह नियम से  पूजा-अर्चना के लिए आने वाली एक  महिला भगत बहुत परेशान रहा करती थी। एक दिन उसको मंदिर प्रागंण में ताला  लगाते देख पुजारी के कारण पूछने पर उसने बताया कि  देवी मां ने सपने में आकर कहा है कि तुम एक ताला मेरे नाम से मेरे मंदिर

में लगा देना तुम्हारी हर इच्छा पूरी हो जाएगी। ताला लगाने के बाद वो महिला फिर कभी नहीं दिखी। अचानक बरसो बाद उस महिला द्वारा लगाया गया ताला भी एक दिन गायब हो गया। साथ ही दीवार पर यह लिखा मिला कि मेरी मनोकामना पूरी हो गई है इस कारण अपना ताला खोल रही हूँ।  उसके  बाद  से  ही यहां ताला अर्पित करने का चलन पड़ गया और माँ का नाम ताले वाली देवी पड़ गया। यहां के पुजारी जी के अनुसार हर अमावस्या को माता का दरबार पूरी रात खुला रहता है। पूरी रात पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन होता है।  अगले दिन माता के दरबार में भंडारा भी कराया जाता है।



है ना ! अनोखी बात, अनोखा चलन, अनोखा मंदिर ? कभी भी कानपुर जाना हो तो यहां माँ के दर्शन जरूर कर के आएं। जय माता की ! 

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