क्या बालाजी धाम का ट्रस्ट 20-25 की.मी. की सड़क का रख-रखाव भी नहीं कर सकता ?
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धार्मिक स्थलों की यात्रा करने वाला हर यात्री आस्था, श्रद्धा, विश्वास से ओत-प्रोत हो कर ही अपने आराध्य के दर्शन करने हेतु तन-मन-धन से समर्पित हो घर से निकलता है। पर उसके भक्ति-भाव को तब ठेस पहुंचती है जब उसे धर्मस्थलों पर पैसों के लिए कुछ भी होते-करते दिखता है। पर उस सब को भी अपने धार्मिक स्वभाव के कारण वह उसे भी प्रभू की इच्छा मान सहज स्वीकार कर अपनी आस्था में कमी नहीं होने देता। पर मन में कहीं ना कहीं दुःख तो होता ही है। ऐसा ही एक बार फिर इस बार की सालासर धाम की यात्रा के दौरान हुआ।
इस बार बैसाखी के दिन तेरह अप्रैल को फिर सालासर का कार्यक्रम बना। इस बार भी कोरम में पिछली यात्रा पर जाने वाले सारे सदस्य थे। आठ बड़े और दो बच्चे। पर इस बार सिर्फ सालासर बालाजी के दर्शनों का ही लक्ष्य रखा गया था। हनुमान जयंती बीत चुकी थी, इसलिए भीड़-भाड़ बहुत
कम थी। दर्शन भी बहुत आराम और तसल्ली से हुए। पर वहीँ एक छोटी सी बात भी खटकी। दर्शनों के दौरान वहाँ खड़े पंडों में से एक ने मेरे सामने वाले तोंदियल पंडे को, चढ़ावे में से लोगों को कुछ दे देने को कहा, पर सामने वाले ने साफ़ मना कर दिया। एक क्षण के लिए मन में आया कि कैसे लालची लोग प्रभू की सेवा में नियुक्त हुए, हुए हैं। जो मुफ्त के चढ़ावे को भी वितरित न कर खुद हड़पना चाहते हैं। जबकि दर्शनार्थियों की जेब से तरह-तरह के बहानों से पैसा निकलवाने से नहीं चूका जाता। लगता है भगवान भी पंडों और ट्रस्टियों की अमानत बन कर रह गए हैं। नहीं तो ऐसा क्यों कि ट्रस्टियों, पंडों, उनके रिश्तेदारों या उनके जान-पहचान के लोगों को अलग से सहूलियतें दी जाती हैं, गर्भ-गृह तक जाने की इजाजत मिलती है, पूजा में समय अड़चन नहीं बनाया जाता, और इधर आम इंसान लाइन में लगा कीर्तन ही करता रहता है। TRUST यानी भरोसा। मतलब जिन पर भरोसा कर प्रभू की पूजा, अर्चना, रख-रखाव सौंपा जाता है वही अपने-आप को आम से ख़ास मान सुविधाएं संजोने लगता है। पंडे-पुजारी तो भगवान् को अपनी धरोहर ही समझते आए हैं सदा से !! दूसरी ओर आम इंसान, जिसकी आस्था और धन पर स्थल को ख्याति मिलती है उसके हिस्से में धक्के ही आते हैं !!!
बात तो खटकने वाली ही है, चाहे सरकार हो, नेता हो, संत्री हो, मंत्री हो, पंडा हो पुजारी हो सब के लिए मध्यम वर्ग, गरीब की बकरी है जिसे कभी भगवान् के नाम पर, कभी सहूलियत के नाम पर, कभी देश के नाम पर, कभी कानून के नाम पर जो आता है, अपनी मर्जी से दुह कर चल देता है और चाहा जाता है कि वह उफ्फ भी ना करे ! इधर दो-तीन साल से लक्ष्मण गढ़ की तरफ से, #राजमार्ग_65_से_सालासर_बालाजी_धाम तक जाने वाली #सड़क को यात्रियों की सुविधा के नाम पर #टोल_मार्ग कर दिया गया है। पहली नजर में तो यह बात अच्छी लगती है, पर करोड़ों रुपयों का चढ़ावा संभालने वाला #बालाजी_धाम-का_ट्रस्ट-क्या #20-25_की.मी. की सड़क का रख-रखाव भी नहीं कर सकता जबकि पंडों-पुजारियों के घरों की कीमत पचासों लाख के भी ऊपर है। ऊपर से यह मार्ग ट्रस्टियों, ख़ास लोगों, पण्डे-पुजारियों की गाड़ियों के लिए कर मुक्त है। देश में सैकड़ों ऐसे धर्म-स्थल हैं, जहां की आमदनी की कोई हद नहीं है। पर कुछेक को छोड़ कर किसी की ओर से भी जनता के पैसे को जनता के लिए शायद ही खर्च किया जाता हो।जबकि उनसे जुड़े लोगों के घर, महल-अट्टालिकाओं में बदलते रहते हैं। हम सदा से धर्म-भीरु रहे हैं। जन्मों-जन्म से धर्म के नाम पर लुटते-पिटते आए हैं। जानते-बुझते जगह-जगह जेबें ढीली कर देते हैं। पर ऐसी जगहों पर होती अनियमितताओं के खिलाफ कभी खड़े नहीं होते। कभी विरोध न होने की वजह भी है कि सामनेवाला सदा मध्यम-वर्ग को कोई तवज्जो नहीं देता।
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