Menu
blogid : 25529 postid : 1328352

आप भी ऐसी माँ तो नहीं हैं कहीं ?

kuchhalagsa.blogspot.com
kuchhalagsa.blogspot.com
  • 110 Posts
  • 6 Comments
पिछले दिनों रायपुर से दिल्ली आना हो रहा था। वातानुकूलित शयन यान II का कोच। हमारे सामने की दोनों बर्थ पर एक दंपत्ति अपने सात-आठ साल के बच्चे के साथ  विराजमान थे। बच्चा कुछ अजीब सा लग रहा था। बेतरतीब बिखरे बाल, रूखी-सूखी त्वचा, चेहरे पर बाल सुलभ भोलापन गायब, कपडे-जूते कीमती पर रख-रखाव से दूर। गाडी चलने के कुछ ही समय के बाद बेटे की फरमाइश हुई कुछ पीने को दो, तो महिला रूपी माँ ने डांट  कर कहा, अभी कुछ नहीं मिलेगा, रुको थोड़ी देर ! अभी तो घर से पी कर चले हो !!
बच्चा बिदक गया, कुछ भी नहीं देते हो, जब मांगता हूँ। प्यास लगी है ! माँ ने आँखें तरेरीं, पर उस पर कोई असर नहीं। तभी उसके पापा, जो कुछ शांत स्वभाव के लग रहे थे,  ने कहा, दे दो, मानेगा थोडे ही ना। फ्रूटी का डिब्बा निकला, बच्चा जीत की हंसी के साथ जुट गया उसे खाली करने पर। राजनांदगांव आते-आते फिर शुरू हो गयी मांगे, इस बार कुछ खाने को चाहिए था। वैसा ही कार्यक्रम दोहरा कर पैकेट थमा दिया गया उसके हाथ में। उसके खाली होते ही उछल-कूद शुरू, कभी ऊपर की बर्थ पर कभी नीचे, कभी साइड रेलिंग पकड़ कर जिम्नास्टिक, कभी हमारी ऊपर की बर्थ पर कभी किनारे की पर। मैं पढ़ रहा था उसमें बार-बार व्यवधान पड़ने से बेचैनी हो रही थी, उधर किनारे वाली बर्थ के मुसाफिर भी परेशान थे, एक-दो बार इशारों और हाव-भाव से जताया भी गया पर ना ही बच्चे पर असर पड़ा नाहीं उसके अभिभावकों पर। कुछ देर बाद खिड़की के पास बैठने की बात मनवा उसने अपनी माँ से मोबाईल फोन माँगा, इस बार गेम खेलने की चाहत उत्पन्न हुई थी। सदा की तरह माँ ने झिड़का, बैटरी ख़त्म हो जाएगी, किसी का फ़ोन आ जाएगा इत्यादि-इत्यादि। पर वहाँ किसने सुनना था, एक ही रट, बोर हो रहा हूँ, गेम खेलना है ! माँ  फोन पकड़ा दिया बड़बड़ाते हुए कि बैटरी ख़त्म हुई तो देखना, गाडी से उतार दूँगी !

भाई साहब उधर फोन में व्यस्त हुए, इधर कुछ शांति छाई। तब तक श्रीमती जी का सहयात्रियों से वार्तालाप शुरू हो चुका था। पता चला महिला किसी स्कूल में कार्यरत हैं, श्रीमती जी भी शिक्षिका रह चुकी हैं, बस फिर क्या था, बहनापा जुड़ गया। सामने वाली ने बताया कि स्कूल में उनका काफी रौब-दाब है। उनकी एक ही आवाज से बच्चे दुबक जाते हैं। प्रिंसिपल तक बिना उनके परामर्श के कोई कदम नहीं उठातीं। मैं सोच रहा था, नमूना तो यहां दिख ही रहा है ! बातों ही बातों में औपचारिकता कुछ कम होने लगी, खान-पान का लेन-देन हुआ। बच्चे  की फिर कोई मांग उठी उसका शमन यह कहते हुए किया गया कि बहुत जिद्दी है, अपनी बात मनवा कर ही हटता है। बीच में ही बात काट कर श्रीमती जी बोलीं पर बच्चा माँ-बाप के कारण ही जिद्दी होता है।  मैं देख रही हूँ कि पहले आप हर चीज के लिए मना करते हैं और फिर कुछ देर बाद पकड़ा देते हैं, वह भी समझ गया है कि जिद करने पर मेरी बात मान ली जाएगी इसी लिए वह ऐसा करता है। यदि आपको कुछ देना है तो तुरंत दे दें नहीं तो कितना भी कहे अपनी बात पर कायम रहें तो उसे भी समझा आ जाएगा कि जिद करने से कुछ नहीं होने वाला।

अब बच्चे के पापा की बारी थी बोले, स्कूल में तो बिलकुल कुछ बोलता ही नहीं है। क्लास टीचर तो बहुत इम्प्रेस है इससे, कहती है बहुत डिसिप्लिंड बच्चा है। शार्प भी बहुत है मुझे कई बार मोबाईल फोन की बात समझाता है। मोबाईल गेम में तो इसको कोई हरा ही नहीं सकता। इसकी अपनी घर की आया से बहुत बनती है। उसके बिना तो इसका दिन निकलना मुश्किल है। इसका बहुत ख्याल रखती है। वह भी बतलाती है कि फोन पर बड़े-बड़े स्कोर करता है। टी.वी. पर हफ्ते भर की आने वाली फिल्मों की लिस्ट इसको याद रहती है। फिर हसते हुए बोले, पर टेबल याद करने में हफ्ता लगा देता है फिर भी पूरा नहीं हो पाता। हमारी समझ में सब आ रहा था। बच्चा आया के पास पलता है। माँ-बाप पूरा समय नहीं दे पाते। इस कमी को उसकी हर जिद पूरी कर दूर करने की कोशिश कर बच्चे को जिद्दी और अक्खड़ बना दिया है। गलती उनकी भी नहीं है समय ही ऐसा चल रहा है जिसमें अपना तथाकथित कैरियर बनाने के चक्कर में सारे नाते-रिश्ते, फर्ज, संबंध, जिम्मेवारियां सब तिरोहित हो गए हैं। कुछ-कुछ समझ जाने के बावजूद फिर मैंने पूछ लिया आपकी शादी को कितना समय हो गया ? उत्तर मिला बारह साल हो गए। मामला साफ़ था बढती उम्र में संतान-लाभ हुआ था, तो प्रेम उड़लना स्वाभाविक था, नतीजा उद्दंड संतान।

काफी देर हो चुकी थी छोटे भाई साहब को फोन पर बिना सर उठाए, पलकें झपकाए, खेलते हुए, माँ को याद आया तो झपट कर फोन छीना फिर जैसे ही निगाह बैटरी पर पड़ी, चीखीं, बेवकूफ बैटरी पांच परसेंट रह गयी है, बंद हो गया तो क्या करेंगे। चार्जर भी नहीं है। इधर मैं सोच रहा था, गलती किस की है ?

जैसे-तैसे रात कटी, सुबह बच्चे को जगाया जाने लगा, उठ बेटा घर आने वाला है, ओ मेरा राजा बाबू, मेरा राजकुमार उठ बेटा। अब राजकुमार तो उठने में मनुहार करवाएगा ही। नजाकत से उठे। अभी ठीक से आँख खुली भी नहीं थी कि मांग शुरू। नमकीन दो। माँ बाग़-बाग़, कौन सा खाएगा बेटा ? खट्टा-मीठा या दूसरा ? जवाब मिला दूसरा। तुरंत पैकेट हाजिर। आँखें खुल नहीं रहीं, होठों पर लार काबिज पर नमकीन ठूंसा जा रहा, बाकायदा। श्रीमती जी से रहा नहीं गया, बोलीं अरे पेस्ट तो कर लो ! जवाब माँ की तरफ से आया, ये ऐसा ही है, सुनेगा नहीं, बिना खाए तो खटिए से हिलता भी नहीं। इतना कह फिर उसकी तीमारदारी में लग गयीं। सोना, बिस्कुट खाएगा ? उधर कब ना थी ! तीन सेर का सर हिला दिया। कौन सा खाएगा क्रीम वाला या चॉकलेट वाला ……….
निजामुद्दीन स्टेशन आने वाला था, गाड़ी धीमी हो रही थी। हम अपना सामान समेटे वितृष्णा से एक सूखी, निर्बल सी काया को बिस्कुट चबाते देख रहे थे।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh