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एक थे दगडूसेठ, पुणे के

kuchhalagsa.blogspot.com
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दगडूसेठ गडवे जी का चित्र
वर्षों पुरानी बात है एक सज्जन, सपरिवार कर्नाटक से आ कर पुणे में बस गए। जीवन-यापन के लिए यहां उन्होंने अपना पुश्तैनी हलवाई का कारोबार शुरू करते हुए अपनी मिठाई की दूकान खोल ली।   प्रभू की  कृपा से काम चल निकला और ख्याति

इतनी बढ़ गयी कि उनका उपनाम ही हलवाई पड़ गया। ये सज्जन थे दगडूसेठ गडवे। आज भी उनकी वह दूकान पुणे में बुधवार पेठ में दत्ता मंदिर के पास काका हलवाई के नाम से मौजूद है।

जब सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था तभी शहर में प्लेग की बिमारी का प्रकोप हुआ जिसमें दगडूसेठ के लड़के की भी मौत हो गयी। इस वज्र-प्रहार से पति-पत्नी गहरे सदमे में चले गए, हर चीज से किनारा कर लिया। उनको इस हालत से उबरने के लिए उनके गुरु श्री माधवनाथ महाराज ने उन्हें एक गणेश मंदिर बना समाज सेवा के लिए उद्यत किया। दगडूसेठ और उनकी पत्नी लक्ष्मीबाई दोनों प्राणपण से इस काम में जुट गए। यह मंदिर1893 में बन कर तैयार हुआ। जिसे सभी दगडूसेठ हलवाई गणपति मंदिर के नाम से जानने लगे। धीरे-धीरे पुणे के इस गौरवशाली मंदिर की ख्याति महाराष्ट्र से से होते हुए पूरे देश में फ़ैल गयी। आज जिस तरह मुंबई के

सिद्धि विनायक की महिमा है उसी तरह देश-विदेश सब जगह इस मंदिर की भी ख्याति व्याप्त है।  दूर-दूर से लाखों भगत हर साल प्रभु गणेश के दर्शन हेतु आने लगे। देश की बड़ी-बड़ी विभूतियाँ भी अपनी मनोकामना लेकर गणपति के आशीष के लिए यहां पहुंचती रही हैं। गणेशोत्सव के दस दिनों में महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री का यहां आना तो एक परंपरा ही बन गया है। कहते हैं श्री लोकमान्य तिलक जी के साथ दगडूसेठ की बहुत आत्मीयता थी। तिलक जी को उनके मंदिर निर्माण तथा गणपति जी के प्रति समर्पण देखा तो उन्हें गणेशोत्सव मना कर लोगों को एकजुट करने का विचार आया और तभी से हर साल सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव मनाने की परंपरा चल पड़ी।

शनिवारवाडा के नजदीक बुधवार पेठ के इलाके में स्थित इस मंदिर की बनावट में इतनी सादगी है कि बाहर सड़क से भी अंदर की कार्यवाही के दर्शन किए जा सकते हैं। इसमें 7.5 फिट ऊँची और 4 फिट चौड़ी गणेश जी की

भव्य प्रतिमा स्थापित है, जिसे करीब आठ किलो सोने से सजाया गया है। जिसका बीमा एक करोड़ रूपए का किया गया है। पूरे मंदिर की देख-रेख का जिम्मा “दगडुशेठ हलवाई ट्रस्ट” द्वारा संभाला जाता है। जिसकी एक महत्त्वपूर्ण व जिम्मेदार संस्थाके रूप में पहचान है. अपनी संस्कृति-संवर्धन और समाज सेवा  के लिए पूरी तरह समर्पित मानी जाती है। इसके द्वारा लाखों रुपयों से एक पिताश्री नामक वृद्ध आश्रम की स्थापना, करीब चालीस निराश्रित बच्चों के खान-पान-पढाई के इंतजाम के साथ ही गरीबों की सहायता और इलाज का भी बंदोबस्त किया जाता है। संस्था एम्बुलेंस सेवा भी प्रदान करती है।

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