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कोलकाता में बालीगंज के तिलजला इलाके का एक संकरा सा मार्ग श्रीधर राय रोड। यहीं के एक अपार्टमेंट में रहता है संजय पाटोदिया परिवार। इस परिवार के लोग “ऑल बेंगाल अमिताभ बच्चन फैंस एसोसिएशन (ABABF) के मेंबर हैं और इनके घर में भगवान की नहीं एक इंसान की पूजा की जाती है जो और कोई नहीं हिंदी फिल्म जगत के प्रसिद्ध अभिनेता अमिताभ बच्चन हैं। इन लोगों का मानना है कि कोई अलौकिक शक्ति तो जरूर है अमिताभ में, जिसके कारण तक़रीबन पचास साल (48) से वे सबके चहते बने हुए हैं। इसीलिए यहां उनकी पूजा की जाती है।
हालांकि कोलकाता में ही अधिकाँश लोगों को इस जगह का पता नहीं है, इसके साथ ही, देश में एकाधिक व्यक्तियों के मंदिर होने के बावजूद, लोग व्यक्ति पूजा को उचित नहीं मानते और इसे पागलपन या मजाक का विषय समझते हैं। पर इन सब से किसी की रूचि को तो बदला नहीं जा सकता। शायद इसीलिए पाटोदिया परिवार ने अपने घर के एक हिस्से में एक मंदिर नुमा म्यूजियम बना रखा है जिसमें अमिताभ की एक प्रतिमा स्थापित है। अमिताभ की रियल लम्बाई से भी कुछ ऊँची, फायबर से बनी 25 किलो की इस मूर्ति को सुब्रत बोस नाम के कारीगर ने तीन महीने में बनाया है। इसकी लागत करीब एक लाख रुपये आई है।
पर इस क्लब के कुछ मेंबर इससे असंतुष्ट भी हैं जिसका कारण इस मूर्ति का प्रारूप फिल्म “सरकार तीन” के सुभाष नागरे जैसा तथा उसके सिंहासन का अमिताभ की एक और फिल्म “अक्स” की हरे रंग की कुर्सी का होना है। दोनों ही चीजें मन में एक नकारात्मक सोच उत्पन्न करती हैं। ये लोग उनके जबरदस्त प्रशंसक तो हैं पर उन्हें भगवान मानने से हिचकते हैं।
पर इस सब से पाटोदियों को कोई फर्क नहीं पड़ता। उनके मंदिर के द्वार पर फ्लोरोसेंट लाइट से “जय अमिताभ बच्चन” जगमगाता रहता है और अंदर किसी देवता की तरह झांझ-मजीरे-घंटियों के साथ उनके भजन और आरती पूरे विधि-विधान व अनुष्ठान और पूरे जोशो-खरोश के साथ गायी जाती है। संजय पाटोदिया ने तो पूरे नौ पेज की अमिताभ चालीसा भी लिख रखी है, जिसका “हर-हर अमिताभ” और “जय श्री अमिताभ” छपा शाल ओढ़कर, सस्वर पाठ किया जाता है। इन सब के बाद प्रसाद का वितरण भी होता है।
मंदिर के अगले हिस्से की दीवारें, वाल-पेपर पर लिखे “जय अमिताभ” से पटी हुई हैं, जिन पर अमिताभ की फिल्मों के पोस्टर, उनकी तस्वीरों की भरमार है। इसी के साथ वहीँ एक कांच के बॉक्स में फिल्म “अग्निपथ” में उनके द्वारा पहने गए सफ़ेद चमड़े के जूते भी रखे हुए हैं, जिन्हें इन लोगों के अनुसार अमिताभ ने इनके निवेदन पर यहां भिजवाया था। ये लोग इसकी तुलना भरत की खड़ाऊं से करते हैं।
रोज की पूजा-अर्चना के साथ-साथ इनकी भी पूजा की जाती है। साल में दो दिन यहां ख़ास कार्यक्रम भी होते हैं। पहला 11 अक्टूबर, अमिताभ के जन्म दिन पर और दूसरा, 2 अगस्त, जब फिल्म “कुली” के हादसे के बाद उन्होंने स्वास्थ्य लाभ किया था। जिसे उनका दूसरा जन्म माना जाता है। इस दिन ख़ास पूजा वगैरह के बाद रक्तदान के साथ-साथ वस्त्र वितरण तथा अमिताभ से जुडी प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं।
संजय पाटोदिया अपने-आप को अमिताभ का फैन नहीं भक्त कहलाना पसंद करते हैं। उनका जनून तो इतना बढ़ गया है कि उन्होंने मंदिर में लिख रखा है कि “हे प्रभू ! क्षमा करें ! हम आपसे ज्यादा अमिताभ को पूजते हैं।” उनके अनुसार कोलकाता में अमिताभ की हर फिल्म की रिलीज पर वह उसकी सफलता के लिए प्रार्थना करते हैं।
उनके जैसे कपड़े पहनकर हॉल पर जा मिठाई का प्रसाद बांटते हैं। अमिताभ की हर एक गतिविधि का लेखा-जोखा रखा जाता है। इन लोगों के लिए उनकी हर बात प्रभू का आदेश है सिवा इसके कि उनको इंसान माने भगवान नहीं। कोलकाता के लोगों के मन में एक प्रश्न अक्सर सर उठाता है कि पाटोदिया परिवार का यह सारा ताम-झाम कहीं खुद को प्रचारित करने के लिए तो नहीं ? कुछ ऐसा अलग सा करना कि देश-विदेश में नाम हो? लोग जानें, जगह-जगह उनकी चर्चा हो, जिसमें वे पूरी तौर पर तो नहीं पर कुछ तो सफल हो ही गए हैं।
क्योंकि कोई भी हस्ती पूजा करवाने की हद तक तब पहुंचती है, जब बिना अपने स्वार्थ के उसका समाज के उत्थान में बहुत बड़ा हाथ हो, देश के लिए परिवार समेत समर्पण हो, बहुत ही ख़ास आध्यात्मिक, चारित्रिक या बौद्धिकता की मिसाल कायम की गयी हो। शायद अमिताभ जी को भी तथाकथित मंदिर को लेकर यहां के अधिकाँश लोगों में उसके बारे में उनकी सोच, मानसिकता और उदासीनता का पता है, इसीलिए दसियों साल बीत जाने पर भी उन्होंने अभी तक यहां आना उचित नहीं समझा है। आगे की भगवान् जानें।
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